2008 का मालेगांव विस्फोट मामला: पीड़ित 16 बाद भी इंसाफ की बाट जोह रहे |

2008 का मालेगांव विस्फोट मामला: पीड़ित 16 बाद भी इंसाफ की बाट जोह रहे

2008 का मालेगांव विस्फोट मामला: पीड़ित 16 बाद भी इंसाफ की बाट जोह रहे

:   Modified Date:  September 28, 2024 / 06:14 PM IST, Published Date : September 28, 2024/6:14 pm IST

मुंबई, 28 सितंबर (भाषा) महाराष्ट्र में 29 सितंबर, 2008 के मालेगांव विस्फोट मामले में 16 साल बाद अब जाकर सुनवाई करीब अंतिम चरण में पहुंची है। इस विस्फोट में छह लोगों की मौत हो गई थी जबकि 100 से अधिक अन्य व्यक्ति घायल हुए थे।

अभियोजन पक्ष इस मामले में अपनी आखिरी दलीलें पेश कर चुका है जबकि बचाव पक्ष के 30 सितंबर से अपनी अंतिम दलीलें पेश किये जाने की संभावना है।

इस घटना में जान गंवाने वालों के परिवारों और घायल हुए लोगों के लिए यह इंसाफ की लंबी लड़ाई है।

महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई से करीब 200 किलोमीटर दूर मालेगांव में 29 सितंबर, 2008 को एक मस्जिद के समीप एक मोटरसाइकिल पर रखी विस्फोटक सामग्री में धमाका होने से छह लोगों की मौत हो गयी थी एवं 100 से अधिक अन्य घायल हो गये थे।

लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित, भाजपा नेता प्रज्ञा ठाकुर, मेजर (सेवानिवृत) रमेश उपाध्याय, अजय रहीरकर, सुधाकर द्विवेदी, सुधाकर चतुर्वेदी और समीर कुलकर्णी अवैध गतिविधि रोकथाम अधिनियम एवं भारतीय दंड संहिता के प्रावधानों के तहत सुनवाई का सामना कर रहे हैं।

प्रारंभ में महाराष्ट्र के आतंकवाद निरोधक दस्ते ने इस मामले की जांच की। बाद में 2011 में इसकी जांच राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण को सौंप दी गयी।

हताहतों का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील शाहिद नदीम ने कहा, ‘‘ सुनवाई समापन के करीब है। हम आशा करते हैं कि अदालत शीघ्र उसका समापन करेगी।’’

उन्होंने कहा कि इंसाफ की खातिर प्रभावित लोगों ने दखल दिया एवं आरोपियों की रिहाई एवं जमानत अर्जियों का विरोध किया लेकिन इस मामले में एटीएस का दिलचस्पी नहीं लेना सबसे बड़ी चिंता रही।

विस्फोट में अपने बेटे सईद अजहर को गंवा चुके निसार अहमद ने सुनवाई की धीमी गति पर खिन्नता प्रकट की लेकिन कहा कि उन्हें अदालत पर विश्वास है।

अहमद ने कहा कि सुनवाई 16 साल खिंच गयी क्योंकि कथित आरोपी प्रभावी लोग हैं।

उन्होंने अदालत से अनुरोध किया कि किसी को भी इसे हल्के में न लेने दिया जाए। उन्होंने प्रभावित लोगों के हित में मामले के शीघ्र निपटान पर बल दिया।

सुनवाई के दौरान अभियोजन पक्ष ने 323 सरकारी गवाहों से जिरह की जिनमें से 34 अपने बयान से मुकर गये। बचाव पक्ष के गवाहों से भी जिरह की गई है।

मामला अपने हाथ में लेने के बाद एनआईए ने 2016 में आरोपपत्र दाखिल किया और उसमें ठाकुर एवं तीन अन्य आरोपियों – श्याम साहू, प्रवीण टकलकी और शिवनारायण कलसांगरा को ‘क्लीन चिट’ दे दी। एनआईए ने कहा कि उनके खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला और उन्हें मामले से बरी किया जाना चाहिए।

एनआईए अदालत ने केवल साहू, कलसांगरा और टकलगी को बरी किया तथा आदेश में कहा कि ठाकुर को आरोपों का सामना करना पड़ेगा।

भाषा राजकुमार संतोष

संतोष

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)