Tax on Kumbh: साल 2025 में उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में महाकुंभ मेला लगने वाला है। इसे लेकर तैयारियां अब अंतिम चरण पर है। बता दें कि, महाकुंभ मेला भारत का सबसे बड़ा धार्मिक मेला है, जो हर 12 साल में एक बार प्रयागराज में आयोजित होता है। इसमें लाखों श्रद्धालु गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों के संगम स्थल पर आकर स्नान करते हैं। इस मेले के महत्व को देखते हुए राज्य और केंद्र सरकार द्वारा सभी आवश्यक व्यवस्थाएं की जा रही हैं। ऐसे में आज हम आपसे कुंभ मेले से जुड़ी एक ऐसी बात बताने जा रहे हैं, जो शायद ही किसी को मालूम हो।
क्या आपको पता है कि, किसी जमाने में कुंभ मेले में जाने वाले श्रद्धालुओं से लगान वसूला जाता था? जी हां.. आज भले ही लोग बिना किसी एंट्री फीस के कुंभ मेले में जा सकता है। लेकिन, अकबर के समय में कुंभ मेले में घुसने से पहले टैक्स भरना पड़ता था। इतिहासकारों के मुताबिक, ‘जजिया कर’ खत्म करने वाले अकबर ने पहली बार कुंभ पर टैक्स लगाया था। मुगल बादशाह ने तो ये कर वापस ले लिया, लेकिन अंग्रेज आए तो ये टैक्स भी दोबारा लागू हुआ। अकबर के शासनकाल से पहले भी इतिहास में कई जगह कुंभ का जिक्र मिलता है।
हालांकि, कुछ समय बाद अकबर ने कुंभ पर टैक्स खत्म कर दिया था, लेकिन अंग्रेजों ने ये टैक्स दोबारा वसूलना शुरू कर दिया। एस.के. दुबे की किताब ‘कुंभ सिटी प्रयाग’ के अनुसार, 1822 में अंग्रेज सरकार कुंभ में आने वाले हर यात्री से सवा रुपए का लगान वसूल रही थी। इस लगान की वजह से उस साल कुंभ मेले में सन्नाटा पसरा हुआ था। उस समय सिर्फ 1 रूपए में पूरे महीने के भोजन का इंतजाम हो सकता था। ऐसे में सवा रूपए का टैक्स बहुत ज्यादा था।
1840 में अंग्रेज गवर्नर जनरल लॉर्ड ऑकलैंड ने तीर्थ यात्रियों से वसूले जाने वाले पिलग्रिमेज टैक्स को खत्म कर दिया। लेकिन, कुंभ मेले में काम करने वाले कारोबारियों से टैक्स वसूलना फिर भी जारी रहा। डॉ. धनंजय चोपड़ा के मुताबिक, 1882 में प्रयाग में आयोजित कुंभ में अंग्रेजी हुकूमत ने कुल 20,228 रुपए खर्च किए थे, जबकि लगान से कुल कमाई 49,840 रूपए थी। साल 1906 में सरकार की कमाई 62 हजार रुपए के ऊपर जा चुकी थी।
इतिहास में 12वीं शताब्दी से ही कुंभ के भव्य आयोजन का जिक्र मिलने लगता है। हालांकि, सीधे तौर पर कुंभ का इतिहास कहीं भी दर्ज नहीं किया गया है। इंडोलॉजिस्ट एन.एन. बनर्जी की किताब ‘हिंदुत्व’ के मुताबिक, कुंभ की परंपरा प्राचीन होने के बावजूद किसी ने भी कुंभ के इतिहास को रिकॉर्ड नहीं किया है। आजादी के बाद भारत में पहला कुंभ प्रयागराज में 1954 में हुआ था। इस समय तक कुंभ में आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या करोड़ों में पहुंच गई थी। हालांकि, इसके साथ एक दुखद घटना भी जुड़ी है। जी हां.. मौनी अमावस्या के दिन 3 फरवरी को शाही स्नान के दौरान यहां भगदड़ मच गई थी, जिसमें 800 लोगों ने अपनी जान गंवा दी थी।
महाकुंभ मेला 2025 का आयोजन 13 जनवरी से 26 फरवरी तक प्रयागराज में होगा।
महाकुंभ में संगम आने वाले श्रद्धालुओं और पर्यटकों को भारत की परंपराओं के साथ यहां की कलाओं और उसके विविध विधाओं के भी दर्शन हो इसके लिए कुंभ क्षेत्र तीन बड़े सांस्कृतिक मंच बनाए जा रहे हैं।
महाकुंभ में शास्त्रीय संगीत, लोक संगीत, नृत्य, नाट्य प्रदर्शन, और अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे।
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19 hours ago