प्रयागराज: Mahila Naga Sadhu Ke Niyam 13 जनवरी से महाकुंभ 2025 का आगाज हो चुका है। महाकुंभ का पहला अमृत स्नान 14 जनवरी मकर संक्रांति के शुभ अवसर पर शुरू हुआ है। पौष पूर्णिमा स्नान के सफल समापन के बाद बुधवार महाकुंभ में नागा साधुओं का आखाड़ा अमृत स्नान किया। महाकुंभ मेला हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण आयोजन है, जो हर 12 वर्ष में संगम तट पर होता है।
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Mahila Naga Sadhu Ke Niyam इस मेले में लाखों श्रद्धालु अपनी आस्था के साथ संगम में स्नान करते हैं, वहीं नागा साधु शाही स्नान से पहले एक विशेष प्रक्रिया से गुजरते हैं, जिसे देखकर कई लोग चकित हो जाते हैं। महिला नागा साधु भी पुरुष नागा साधुओं की तरह महाकुंभ में भाग लेती हैं और अमृत स्नान सहित अन्य धार्मिक क्रियाकलापों में सक्रिय रहती हैं। नागा साधुओं के बारे में तो अक्सर लोग जानकारी रखते ही है, लेकिन क्या आप महिला नागा साधुओं की रहस्मय दुनिया के बारे में जानते हैं? आइए, जानते हैं महिला नागा साधुओं के रहस्यमय संसार के बारे में।
दरअसल, पुरुष नागा साधुओ से महिला साधुओं की जीवन अलग होता है। महिला नागा साधु सांसारिक जीवन छोड़कर आध्यात्मिक जीवन अपना लेती हैं। ये गृहस्थ जीवन त्याग देती हैं। इनका दिन पूजा-पाठ से शुरू और खत्म होता है। महिला नागा साधु शिव और पार्वती के अलावा माता काली की भक्त भी मानी जाती हैं। महाकुंभ जैसे धार्मिक समागमों में इनकी उपस्थिति एक प्रमुख आकर्षण का कारण बनती है। महिला नागा साधुओं के जीवन में कई सख्त नियम और परंपराएं शामिल हैं, खासकर पीरियड्स के दौरान। आइए जानते हैं कि महिला नागा साधु पीरियड्स के दौरान महाकुंभ में स्नान और अन्य धार्मिक प्रक्रियाओं को कैसे संपन्न करती हैं।
आपको बता दें, पुरुष नागा साधु दिगंबर रहते हैं (बिना वस्त्रों के), जबकि महिला नागा साधु के लिए विशेष नियम होते हैं, जिनमें वस्त्र धारण, पूजा-पाठ और अन्य जीवनशैली से जुड़ी कई बातों का ध्यान रखा जाता है। महिला नागा साधु दिगंबर (निर्वस्त्र) नहीं रह सकतीं। उन्हें सार्वजनिक स्थलों पर वस्त्र पहनने की आवश्यकता होती है। उनका यह वस्त्र उनकी धार्मिक आस्था और नियमों का पालन करने का प्रतीक होता है।
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महिलाओं के लिए नागा साधु बनने का रास्ता बेहद कठिन है। इसमें 10 से 15 साल तक कठोर ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना पड़ता है। गुरु को अपनी योग्यता और ईश्वर के प्रति समर्पण का प्रमाण देना होता है। महिला नागा साधुओं को जीवित रहते हुए अपना पिंडदान और मुंडन भी अनिवार्य है। नागा साधु बनने की प्रक्रिया में महिलाओं को कई कठिन परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है।
कुंभ मेले में महिला नागा साधु भी शामिल होती है। वे किसी भी अवस्था में दिगंबर नहीं रह सकतीं। महिला नागा साध्वियां केसरिया रंग के बिना सिले वस्त्र पहनती हैं। इस वस्त्र की वजह से वे पीरियड्स में भी एक छोटा वस्त्र बहाव के स्थान पर लगा लेती हैं। साथ ही पीरियड्स के दौरान, वह गंगा स्नान नहीं करतीं, बस गंगा जल छिड़क लेती हैं।
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