Famous Mandir In Prayagraj : प्रयागराज में 13 जनवरी से महाकुंभ का आयोजन होने जा रहा है। इस महाकुंभ में साधु संतों के साथ-साथ लाखों की संख्या में श्रद्धालु भी नजर आएंगे, जो देश के कोने-कोने से यहां पवित्र स्नान के लिए आते हैं। प्रयागराज में कई पवित्र मंदिर हैं जिनका उल्लेख पुराणों में मिलता है। कुंभ-स्नान के दौरान जिनका दर्शन करना बहुत शुभ माना जाता है। कहा जाता हैं इन मंदिरों के दर्शनों के बिना कुंभ की यात्रा अधूरी है। आइए, इन दिव्य मंदिरों के बारे में विस्तार से जाने…
प्रयागराज में स्थित कल्याणी देवी मंदिर एक प्राचीन और पवित्र स्थल है, जो धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व का केंद्र है। यह मंदिर विशेष कर अपनी 32 अंगुल ऊंची मां कल्याणी की प्रतिमा के लिए प्रसिद्ध है, माना जाता है कि इस मूर्ति की स्थापना महर्षि याज्ञवल्क्य की थी। बताया जाता है कि महर्षि ने इस स्थान पर ध्यान और साधना करके आध्यात्मिक सिद्धियां प्राप्त की थी ।
वहीं मंदिर का जीर्णोद्धार 1892 में हुआ था, लेकिन विभिन्न शासकों ने समय-समय पर इस मंदिर का पुनर्निर्माण कराया। इस मंदिर के वास्तुकला प्राचीन शैली में बनाई गई है, जो इसके धार्मिक और ऐतिहासिक महत्ता को दर्शाती है। देवी मां की मूर्ति विशेष पत्थर से बनी हुई है, जो अपनी सुंदरता और आकर्षक से भक्तों को मंत्रमुग्ध कर देती है। नवरात्रि और महाकुंभ के अवसरों पर यहां भक्तों की भारी भीड़ उमड़ पड़ती है।
इस मंदिर में नागों के राजा वासुकी विराजमान हैं, जो भी श्रद्धालु प्रयागराज आते है वो इस मंदिर में दर्शन करने अवश्य जाते है। गम स्नान के बाद नागवासुकी के दर्शन करने से जीवन में शुभ फल की प्राप्ति होती है । यह मान्यता है कि वासुकी नाग ने देवताओं से कहा था कि संगम में स्नान करने के बाद उनके दर्शन करेंगें, तभी भक्तों को स्नान का पुण्य फल प्राप्त होगा। इस कारण महाकुंभ के दौरान नागवासुकी मंदिर के दर्शन का विशेष महत्व है।
प्राचीन कथाओं के अनुसार, नागवासुकी को सर्पराज के रूप में जाना जाता है। वासुकी को समुद्र मंथन के दौरान देवताओं और असुरों ने रस्सी की तरह इस्तेमाल कर अमृत प्राप्त किया था। इस दौरान नागावासुकी का शरीर जब घावों से भर गया, तो उन्होंने प्रयागराज के त्रिवेणी संगम पर आकर विश्राम किया और यहीं स्नान करने से उनके घाव ठीक हुए थे। तभी से और उन्होंने एक शर्त रखी कि अब वे यहीं स्थायी रूप से निवास करेंगे
प्रयागराज के त्रिवेणी संगम पर स्थित अक्षयवट का दर्शन, कुंभ मेले के दौरान बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। ऐसा माना जाता है अक्षयवट की पूजा से शरीर निरोग और दीर्घायु की कामना पूरी होती है। जीवन में अक्षय सुख, शांति और समृद्धि लाने वाले इस वृक्ष के नीचे ध्यान और भक्ति करने से जीवन-मरण के चक्र से भी मुक्ति मिलती है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस वृक्ष को माता सीता ने आशीर्वाद दिया था कि प्रलय काल में जब धरती जलमग्न हो जाएगी और सब कुछ नष्ट हो जाएगा तब भी अक्षयवट हरा-भरा रहेगा। एक मान्यता और भी है कि बालरूप में श्रीकृष्ण इसी वट वृक्ष पर विराजमान हुए थे। बाल मुकुंद रूप धारण करके श्रीहरि भी इसके पत्ते पर शयन करते हैं। पद्म पुराण में अक्षयवट को तीर्थराज प्रयाग का छत्र कहा गया है।
पातालपुरी मंदिर,जो अपने आप में मुगल काल का एक ऐतिहासिक चमत्कार है। यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है और प्रयागराज के सबसे पवित्र मंदिरों में से एक माना जाता है। यह मंदिर, कुंभ मेले के दौरान श्रद्धालुओं से भरा रहता है। कुंभ मेले के दौरान, पातालपुरी मंदिर में आने वाले तीर्थयात्रियों को शांति का अनुभव मिलता है। यह मंदिर, इलाहाबाद किले के अंदर बना है, इस मंदिर में भगवान अर्धनारीश्वर रूप में हैं। यहां तीर्थों के राजा प्रयाग की मूर्ति है यहां भगवान शनि की अखंड जोत जो साल भर जलती रहती है।
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, पातालपुरी मंदिर वह स्थान माना जाता है जहाँ पूज्य ऋषि मार्कंडेय ने घोर तपस्या की थी और भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त किया था। भक्तों का मानना है कि इस मंदिर में आने और पातालपुरी तीर्थ के जल में डुबकी लगाने से उनके पाप धुल जाते हैं और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। मंदिर का आंतरिक भाग जटिल नक्काशी और मूर्तियों से सुसज्जित है, जिसमें हिंदू पौराणिक कथाओं और भगवान विष्णु के विभिन्न अवतारों के दृश्य दर्शाए गए हैं।
यह मंदिर प्रयागराज में गंगा किनारे स्थित है। यह लेटे हुए हनुमान मंदिर के नाम से भी जाने जाते हैं। मान्यता है कि हर साल सबसे पहले गंगा मां लेटे हुए हनुमान को स्नान कराती हैं। हनुमान जी की यह विचित्र प्रतिमा 20 फीट लंबी है। ऐसी मान्यता है कि संगम का पूरा पुण्य हनुमान जी के इस दर्शन के बाद ही पूरा होता है। इस मंदिर में आने वाले भक्त बजरिंग बली को सिंदूर दान करते हैं, इसे बहुत ही शुभ माना जाता है
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब लंका जीतने के बाद बजरंग बलि अपार कष्ट से पीड़ित होकर मरणा सन्न अवस्था मे पहुंच गए थे। तब माता जानकी ने इसी जगह पर उन्हें अपना सिन्दूर देकर नया जीवन और हमेशा आरोग्य और चिरायु रहने का आशीर्वाद दिया था। इसके साथ ही मां जानकी ने ये भी कहा था कि, जो भी इस त्रिवेणी तट पर संगम स्नान पर आयेंगा उस को संगम स्नान का असली फल तभी मिलेगा जब वह हनुमान जी के दर्शन करेगा।
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