इंदौर, 23 सितंबर (भाषा) मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय की इंदौर पीठ ने कथित तौर पर क्रूरतापूर्ण बलात्कार के एक मामले में पीड़ित और आरोपी पक्ष के बीच समझौते के आधार पर प्राथमिकी रद्द करने से इनकार करते हुए कहा है कि महिलाओं के पवित्र वजूद की हर हाल में रक्षा आवश्यक है।
इस मामले के आरोपी के खिलाफ अपनी प्रेमिका की आपत्तिजनक तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया पर प्रसारित करने की धमकी देकर उसके साथ जबरन शारीरिक संबंध बनाने का इल्जाम है।
आरोपी ने पीड़ित महिला के साथ हुए समझौते के आधार पर याचिका दायर करते हुए उच्च न्यायालय से गुहार की थी कि उसके खिलाफ इंदौर के एक पुलिस थाने में इस साल तीन मई को दर्ज प्राथमिकी और निचली अदालत की लंबित कार्यवाही रद्द कर दी जाए।
उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति प्रेमनारायण सिंह ने अलग-अलग नजीरों की रोशनी में यह याचिका 20 सितंबर को खारिज कर दी और कहा कि कानूनी प्रावधान बलात्कार के जघन्य मामले में महज इस तरह के समझौते के आधार पर आरोपी को दोषमुक्त किए जाने की अनुमति नहीं देते।
अदालत ने कहा,’एक महिला हर व्यक्ति की मां, पत्नी, बहन और बेटी आदि के रूप में जीवित रहती है। उसका शरीर उसके अपने मंदिर के रूप में जाना जाता है क्योंकि वह खास तौर पर अपने बलिदानों के लिए पहचानी जाती है। उसके पवित्र वजूद की हर परिस्थिति में रक्षा आवश्यक है।’
उच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि देश में महिलाओं के शील और पवित्रता की हमेशा पूजा की जाती है।
अभियोजन पक्ष के मुताबिक पीड़ित महिला ने यह इल्जाम लगाते हुए याचिकाकर्ता पर प्राथमिकी दर्ज कराई थी कि वर्ष 2022 में शहर के एक क्लब में मुलाकात के बाद उसने शादी का झांसा देकर उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए।
महिला को जब शक हुआ कि आरोपी अन्य युवतियों के भी संपर्क में है, तो दोनों के बीच विवाद हुआ और इसके बाद उसने महिला से कथित तौर पर मारपीट व गाली-गलौज करते हुए उसके साथ क्रूरता से शारीरिक संबंध बनाए जिससे वह घायल हो गई।
महिला ने यह आरोप भी लगाया था कि आरोपी के इस बर्ताव के बाद जब उसने उसके साथ शारीरिक संबंध बनाने से इनकार कर दिया, तो उसने यह धमकी देकर उससे दुष्कर्म किया कि वह उसके आपत्तिजनक फोटो और वीडियो सोशल मीडिया पर प्रसारित कर देगा। भाषा हर्ष नरेश
नरेश
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