Rai Folk Dance of Bundelkhand : भोपाल। लोक नृत्य राई, भारतीय लोक नृत्यों में से एक महत्वपूर्ण और लोकप्रिय नृत्य है, जो खासकर मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड में प्रचलित महत्वपूर्ण सांस्कृतिक कला है। यह नृत्य मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा किया जाता है और इसे विशेष अवसरों पर, जैसे त्योहारों, विवाह समारोह और अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों के दौरान गाया और नृत्य किया जाता है। राई नृत्य का मुख्य उद्देश्य उत्सव मनाना, आनंद फैलाना और समुदाय की एकता को दर्शाना होता है।
राई लोक नृत्य में लोक संगीत का महत्वपूर्ण स्थान होता है। इस नृत्य के साथ पारंपरिक वाद्य यंत्र जैसे ढोल, नगड़िया और बांसुरी बजाए जाते हैं। ये वाद्य यंत्र नृत्य की रिदम और उत्साह को बढ़ाते हैं, जिससे नृत्य और गाने का आनंद दोगुना हो जाता है। संगीत की ताल पर महिलाएँ सामूहिक रूप से नृत्य करती हैं।
राई नृत्य में पारंपरिक वेशभूषा का उपयोग किया जाता है। राई नृत्य में नर्तकी की मुख्य पोशाक-लहंगा ओढ़नी और साड़ी होती है। वस्त्र विभिन्न चमकदार रंगों के होते हैं। पुरुष वादक के तौर पर बुंदेलखंडी पगड़ी, सलूका और धोती पहनते हैं।
यह नृत्य मुख्य रूप से फसल कटाई के समय किया जाता है, जहां किसान अपनी मेहनत का जश्न राई नृत्य करके मनाते हैं और अपने फसल की प्रगति का आभार व्यक्त करते हैं।
खजुराहो में लोक नृत्य और संगीत की समृद्ध विरासत है। वैसे तो यह शहर शास्त्रीय नृत्य शैलियों को प्रदर्शित करने वाले वार्षिक नृत्य महोत्सव के लिए बहुत लोकप्रिय है। राई इस क्षेत्र का एक और प्रसिद्ध नृत्य है और इसका नाम सरसों के बीज से लिया गया है और जैसे ही सरसों का बीज कटोरे में डाला जाता है। वह चारों ओर घूमता है। नर्तक भी ढोल की संगत के साथ घूमते हैं। यह नर्तक और ढोल के बीच एक युगल नृत्य है और दोनों एक दूसरे से मेल खाने की कोशिश करते हैं, जिससे एक आकर्षक प्रदर्शन होता है।
रामायण के अनुसार बताया जाता है कि रंगपंचमी के दिन मप्र के अशोकनगर के करीला गांव में स्थित वाल्मीकि आश्रम में लव-कुश का जन्म हुआ था। माना जाता कि करीला में महर्षि वाल्मीकि ने लवकुश के जन्मदिन को बडे धूमधाम से मनाया था। इस उत्सव में बेड़िया जाति की हजारों नृत्यांगनाएं जमकर नाची थीं। तब से यह प्रथा आज तक निभाई जा रही है।
यही नहीं अब तो लोग यहां मन्नत पूरी होने पर भी राई नृत्य करवाते हैं। माता सीता के इस मंदिर को लेकर मान्यता है कि यहां जो भी मन्नत मांगी जाती है वह पूरी हो जाती है। इसके बाद लोग यहां राई नृत्य करवाते हैं। कहा जाता है कि यहां नि:संतान दंपती की झोली माता सीता भर देती हैं। इसके बाद लोग राई नृत्य करवाते हैं। करीला धाम का मंदिर दुनिया में एक मात्र सीता माता का मंदिर है।
युद्धों के संदर्भ में, राई नृत्य का उपयोग सैनिकों को उत्साहित करने और उन्हें प्रेरित करने के लिए किया जाता था। जब आदिवासी लोग युद्ध के लिए जाते थे, तो वे राई नृत्य करते थे ताकि वे अपने साहस को बढ़ा सकें और एकजुटता का अनुभव कर सकें। यह नृत्य युद्ध के दौरान सामूहिक शक्ति और सहयोग की भावना को भी प्रकट करता था। इसके अलावा, राई नृत्य की लय और संगीत सैनिकों के मनोबल को ऊँचा रखने में मदद करता था, जिससे वे युद्ध की चुनौतियों का सामना करने के लिए मानसिक रूप से तैयार हो जाते थे।
नृत्य के दौरान, विभिन्न प्रकार के हथियारों का प्रदर्शन भी किया जाता था, जो युद्ध की तैयारी और कौशल को दर्शाता था। इस प्रकार, राई नृत्य का युद्धों में एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और मनोवैज्ञानिक भूमिका होती थी, जो न केवल सामूहिकता को बढ़ावा देती थी, बल्कि आदिवासी पहचान और परंपराओं को भी मजबूती प्रदान करती थी।
राई नृत्य की लोकप्रियता के कई कारण हैं। सबसे पहले, यह नृत्य आदिवासी संस्कृति और परंपराओं को दर्शाता है, जो इसे सांस्कृतिक धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनाता है। इसके अलावा राई नृत्य में सामूहिकता का तत्व होता है, जो लोगों को एकजुट करता है और सामुदायिक भावना को बढ़ावा देता है। यह नृत्य न केवल मनोरंजन का साधन है, बल्कि यह सामाजिक मेलजोल और एकता का प्रतीक भी है।
राई नृत्य का विकास समय के साथ हुआ है, और यह आजकल शहरी क्षेत्रों में भी लोकप्रिय हो रहा है। इसके प्रदर्शन विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों में, जैसे कि लोक महोत्सवों, कला उत्सवों, और स्कूलों में आयोजित कार्यक्रमों में किया जाता है। इसके माध्यम से नई पीढ़ी को अपनी सांस्कृतिक धरोहर से जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है।
राई लोक नृत्य मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण और लोकप्रिय नृत्य है, जो विशेष अवसरों पर महिलाओं द्वारा किया जाता है। यह नृत्य समुदाय की एकता, आनंद और उत्सव मनाने का प्रतीक है।
राई नृत्य में मुख्य रूप से ढोल, नगड़िया और बांसुरी जैसे पारंपरिक वाद्य यंत्रों का उपयोग किया जाता है, जो नृत्य की ताल और उत्साह को बढ़ाते हैं।
राई नृत्य में महिलाएं पारंपरिक लहंगा, ओढ़नी और साड़ी पहनती हैं, जबकि पुरुष वादक बुंदेलखंडी पगड़ी, सलूका और धोती पहनते हैं। इन परिधानों में विभिन्न चमकदार रंगों का उपयोग होता है।
राई नृत्य न केवल मनोरंजन का साधन है, बल्कि यह सामूहिकता, सामाजिक मेलजोल और एकता का प्रतीक भी है। यह आदिवासी संस्कृति और परंपराओं को दर्शाता है और समय के साथ शहरी क्षेत्रों में भी लोकप्रिय हो रहा है।
युद्धों में राई नृत्य का उपयोग सैनिकों को उत्साहित करने, साहस बढ़ाने और सामूहिक शक्ति का अनुभव कराने के लिए किया जाता था। इस नृत्य के माध्यम से सैनिक अपने मनोबल को ऊँचा रखते थे और युद्ध की चुनौतियों का सामना करने के लिए मानसिक रूप से तैयार होते थे।