रायसेन। मध्य प्रदेश के रायसेन में तोप की आवाज सुनकर मुस्लिम समाज के लोग रोज़ा खोलते हैं और सेहराई खाना बंद करते है। यह तकरीबन 300, साल पुरानी परंपरा है जो आज भी रायसेन में कायम है। सहरी और इफ्तार की सूचना देने के लिए किले की पहाड़ी पर चलती है तोप।
नवाबी शासन काल से चली आ रही परंपरा
मध्यप्रदेश के रायसेन जिले में रमजान के महीने में सहरी और इफ्तार के समय की जानकारी देने के लिए तोप चलाए जाने की परंपरा है। यह परंपरा पिछले करीब 300 साल से निभाई जा रही है। यहां आज भी मुस्लिम समाज के लोग किले की पहाड़ी से चलने वाली तोप की आवाज सुनकर ही रोजे खोलते हैं। नवाबी शासन काल से यह परंपरा चली आ रही है। इस तोप की गूंज करीब 30 गावों तक सुनाई देती है। किले पर तोप सालों से एक ही परिवार चलाता आ रहा है। तोप को चलाने के लिए बाकायदा जिला प्रशासन द्वारा एक माह का लाइसेंस जारी किया जाता है। रमजान की समाप्ति पर ईद के बाद तोप की साफ-सफाई कर इसे सरकारी गोदाम में जमा कर दिया जाता है।
आधे घंटे पहले करनी पड़ती है तैयारी
तोप चलाने के लिए आधे घंटे पहले तैयारी करना पड़ती है, तब कहीं जाकर समय पर तोप चल पाती है। तोप चलाने से पहले दोनों टाइम मार्कस वाली मस्जिद से सिग्नल मिलता है। सिग्नल के रूप में मस्जिद की मीनार पर लाल रंग बल्ब जलाया जाता है। उसके बाद किले की पहाड़ी से तोप चलाई जाती है। ऐसा बताया जाता है देश में राजस्थान में तोप चलाने की परंपरा है। उसके बाद देश में मप्र का रायसेन दूसरा ऐसा शहर है, जहां पर तोप चलाकर रमजान माह में सहरी और अफ्तारी की सूचना दी जाती है। IBC24 से संतोष मालवीय की रिपोर्ट
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