भोपाल : MP Politics : नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने राजगढ़ पुलिस पर दलित युवक के साथ प्रताड़ना और अमानवीय बर्ताव करने का संगीन आरोप लगाया है। दूसरी ओर बीजेपी ने बालाघाट के एक कांग्रेसी नेता पर आदिवासी के साथ जुल्मो-सितम करने का आरोप मढ़ा है। इन घटनाओं की सच्चाई क्या है। इसको अगर थोड़ा किनारे कर आगे बढ़ें तो साफ ये दिखता है कि प्रदेश के दोनों प्रमुख दलों का पूरा ध्यान आदिवासी और दलितों पर राजनीति को हवा देने में है। अब तो चुनाव भी नहीं है। ऐसे में इनसे हटकर जमीनी मुद्दों की भी बात हो सकती है, लेकिन एक तरफ बात तो मप्र को नई ऊंचाइयों पर ले जाने की होती है, लेकिन पूरी राजनीति होती है सिर्फ आदिवासी और दलित के नाम पर आखिर कब बदलेगी ये स्थिति?
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MP Politics : मध्यप्रदेश में दलित आदिवासियों पर जमकर सियासत होती रही है, आज भी ये दस्तूर कायम है। बड़े मुद्दे भले छूट जाएं लेकिन दलित आदिवासियों के मुद्दों पर हंगामा करना ना सिर्फ विपक्ष का मजबूत हथियार है बल्कि सत्ता पक्ष भी दलित आदिवासियों पर हो रहे जुल्म का जिम्मेदार अमूमन कांग्रेस को ठहरा कर नए मुद्दे की तलाश में बढ़ जाती है। खैर आज नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने जाहिर है कांग्रेस के निशाने पर फिर बीजेपी की सरकार है।
उधर कांग्रेस दलितों के मामले में बीजेपी सरकार की घेराबंदी कर रही है, तो दूसरी तरफ बीजेपी बालाघाट के यूथ कांग्रेस नेता पर दो आदिवासियों की पिटाई करने के मामले को हवा देकर कांग्रेस की खिंचाई कर रही है।
MP Politics : दरअसल, मध्यप्रदेश में 23 फीसदी आबादी आदिवासियों की है यानि तकरीबन डेढ करोड़, वहीं मध्यप्रदेश में दलितों की आबादी 15 फीसदी है। एमपी में 47 विधानसभा सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं, तो अनुसूचित जाति के लिए 35 सीटें रिजर्व हैं। हाल के चुनावों में 82 रिजर्व सीटों में से बीजेपी ने 50 सीटों पर जीत हासिल की है। जबकि 2018 के चुनाव में बीजेपी 33 सीटें जीती थी। जाहिर है ये आंकड़े बता रहे हैं कि सत्ता के सिंहासन तक पहुंचने के लिए दलित आदावासियों की सियासत कितनी ज़रुरी है।
मध्यप्रदेश में दलित आदिवासियों की ताकत का एहसास दोनों दलों को है। शायद इसलिए ही कांग्रेस ने अपना नेता प्रतिपक्ष आदिवासी समाज से ही बनाया है और खबरें तो ये भी है कि बीजेपी दलित आदावालियो के दिलों में जगह बनाने के लिए अब पार्टी का नया अध्यक्ष भी आदिवासी समाज से ही बनाने की तैयारी मे है।