roar of tigers will reverberate in these sanctuaries too: भोपाल। (शिखिल ब्यौहार) टाइगर स्टेट मध्यप्रदेश में जितनी तेजी से बाघों की संख्या बढ़ी उतनी ही तेजी से बाघों के मौत के मामले भी सामने आए। अब बाघों की मौत के बढ़ते आंकड़ों पर लगाम लगाने के लिए वन विभाग ने तैयारी पूरी कर ली है। दरअसल, वन विभाग ने बाघों के वर्चस्व को लेकर आपसी लड़ाई के आंकड़ों पर लगाम लगाने के लिए बाघ विहीन या कम बाघों वाले अभ्यारण्यों में इनकी शिफ्टिंग का प्लान तैयार कर लिया है।
roar of tigers will reverberate in these sanctuaries too:वन विभाग के आंकड़े बताते हैं कि वन विभाग के आंकड़े बताते हैं कि बीते छह सालों में 184 बाघों ने अलग-अलग कारणों से दम तोड़ा। लेकिन चिंता की बात तो यह है कि 119 बाघ क्षेत्र में वर्चस्व की लड़ाई में मारे गए। जब वन महकमें और नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी (एनटीसीए) ने मौतों का अध्ययन किया तो पाया कि प्रदेश के टाइगर रिजर्व, नेशनल पार्क और अभ्यारण्यों में क्षमता से अधिक बाघों की मौजूदगी है। लिहाजा अब इनकी शिफ्टिंग का रूपरेखा तैयार कर ली गई है। तीन साल पहले हुए सर्वे में मध्यप्रदेश में कुल 526 बाघों की मौजूदगी थी। ताजा रिपोर्ट के मुताबिक इनकी संख्या में 25 फीसदी इजाफा हुआ है। कहीं डेढ़ तो कहीं क्षमता से दोगुने बाघ एमपी के वन क्षेत्रों में मौजूद हैं।
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आइए बताते हैं आपको कहां-कहां हैं संख्या से अधिक बाघ
– बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व की क्षमता 75 बाघों की हैं, लेकिन यहां के जंगलों में 124 बाघ पनाहगार हैं।
– कान्हा टाइगर रिजर्व की क्षमता 70 के मुकाबले यहां 108 बाघ हैं।
– यही स्थिति पेंच की है जहां 82 और सतपुड़ा टाइगर रिजर्व जहां 50 बाघ क्षमता से अधिक हैं।
– एक बाघ औसतन 50 से 60 वर्ग किलोमीटर को अपना वर्चस्व का क्षेत्र होता है।
– लिहाजा मध्यप्रदेश में बाघों का कम वर्चस्व क्षेत्र ही टेरेटोरियल फाइट की सबसे बड़ी वजह हैं।
टाइगर शिफ्टिंग से पहले होगी तैयारी
roar of tigers will reverberate in these sanctuaries too:वन विभाग के अधिकारियों ने बताया कि बाघों की शिफ्टिंग से पहले उनके अनुकूल अभ्यारण्यों को तैयार किया जाएगा। इसमें ग्रास लैंड, शिकार के लिए अन्य वन्य प्राणियों जैसे चीतल, हिरन, जंगली सुअर, सांभर आदि का विस्थापन, सुरक्षित आवाजाही के लिए टाइगर कॉरिडोर का निर्माण भी कराया जाएगा। वन विभाग चिन्हित अभ्यारण्यों में तालाब, पौखर और बड़े स्तर पर पौधारोपण की भी तैयारी कर रहा है।
फिलहाल इन बाघ विहीन या कम बाघों के अभ्यारण्य में गूजेंगी दहाड़
– देवास जिले में आने वाले खिवनी अभ्यारण्य।
– मंदसौर जिले का गांधीसागर अभ्याण्य।
– शिवपुरी जिले में आने वाले माधव राष्ट्रीय उद्यान।
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बाघों को वर्चस्व के लिए चाहिए 40 से 60 वर्ग किलोमीटर का दायरा
roar of tigers will reverberate in these sanctuaries too: बाघों के जानकार राशिद नूर खान बताते हैं कि एक टाइगर का वर्चस्व क्षेत्र 40 से 60 वर्ग किलोमीटर का होता है। वर्चस्व का क्षेत्र सिर्फ बाघ ही नहीं बल्कि बाघिन भी बनाती है। यदि वर्चस्व क्षेत्रों में बाघों की संख्या अत्याधिक हो जाए तो इनके व्यवहार पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है। संरक्षण के लिए बाघों को पर्याप्त क्षेत्र संरक्षित करना भी सरकार की जिम्मेदारी है। एमपी के बाघों की दहाड़ से गूंज रहे जंगलों में अवैध कटाई और वन माफिया के अवैध अन्य गतिविधियों के कारण भी बाघों का वर्चस्व क्षेत्र कम हो रहा है।
क्या कहते हैं एमपी वन विभाग के मुखिया
roar of tigers will reverberate in these sanctuaries too: आईबीसी 24 को वन विभाग के प्रमुख सचिव अशोक बर्णवाल ने बताया कि बीते सर्वे के मुताबिक अब एमपी में बाघों की संख्या में 25 फीसदी का इजाफा हुआ है। बाघों की मौत चिंता का विषय भी है। हम अन्य अभ्यारण्यों में बाघों की शिफ्टिंग करने की दिशा में काम कर रहे हैं। जल्द ही पूरी सावधानी और अध्ययन के आधार पर बाघों को शिफ्ट किया जाएगा।
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