मप्र उच्च न्यायालय ने सफल परीक्षण के बाद यूनियन कार्बाइड के कचरे के निपटान की अनुमति दी

मप्र उच्च न्यायालय ने सफल परीक्षण के बाद यूनियन कार्बाइड के कचरे के निपटान की अनुमति दी

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  • Publish Date - March 27, 2025 / 08:20 PM IST,
    Updated On - March 27, 2025 / 08:20 PM IST

जबलपुर, 27 मार्च (भाषा) मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को भोपाल स्थित बंद पड़े यूनियन कार्बाइड कारखाने के रासायनिक कचरे का पीथमपुर संयंत्र में निपटान करने की अनुमति बृहस्पतिवार को दे दी।

उच्च न्यायालय ने यह आदेश यह बताए जाने के बाद दिया कि परीक्षण के तौर पर कचरे को जलाने के दौरान कोई प्रतिकूल परिणाम नहीं हुआ।

मुख्य न्यायाधीश एस के कैत और न्यायमूर्ति विवेक जैन की पीठ ने कहा कि चार दशक पुराने खतरनाक कचरे का 72 दिनों के भीतर धार जिले के संयंत्र में सुरक्षित तरीके से निपटान किया जाएगा।

सरकार ने इस कचरे के निस्तारण की प्रक्रिया को पूरा करने के लिए 72 दिन का समय मांगा था।

पीथमपुर के कुछ स्थानीय संगठन शहर के पास कचरे के निपटान का विरोध कर रहे थे, लेकिन सरकार ने बृहस्पतिवार को अदालत के समक्ष दायर अपने हलफनामे में कहा कि निपटान के तीन परीक्षण सफल रहे और इसका कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ा।

इसके बाद अदालत ने सरकार को निर्देश दिया कि वह सभी सुरक्षा उपाय सुनिश्चित करे और कचरे का निपटान करे।

याचिकाकर्ता दिवंगत आलोक प्रताप सिंह का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता नमन नागरथ ने बताया कि सरकार को 30 जून को रिपोर्ट दाखिल करने को कहा गया है।

सिंह ने 1984 गैस रिसाव आपदा के केंद्र में रहे एवं भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड कारखाने से अपशिष्ट को हटाने के संबंध में 2004 में रिट याचिका दायर की थी।

उच्च न्यायालय ने 18 फरवरी को राज्य सरकार को पीथमपुर में तीन चरणों में परीक्षण के तौर पर एक निश्चित मात्रा में कचरे का निस्तारण करने की अनुमति दी थी।

अदालत की अनुमति के बाद दो जनवरी को कुल 337 टन कचरा राज्य की राजधानी से लगभग 250 किलोमीटर दूर पीथमपुर में एक निजी कंपनी द्वारा संचालित कचरा निपटान संयंत्र में ले जाया गया।

भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड के कीटनाशक कारखाने से दो और तीन दिसंबर 1984 की दरमियानी रात अत्यधिक जहरीली मिथाइल आइसोसाइनेट गैस का रिसाव हुआ था।

गैस रिसाव के कारण कम से कम 5,479 लोगों की मौत हो गई थी और हजारों अन्य लोगों को दिव्यांगता और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ा। इसे विश्व की सबसे बुरी औद्योगिक आपदाओं में से एक माना जाता है।

भाषा धीरज सुरेश

सुरेश