रिपोर्ट- नवीन कुमार सिंह, भोपाल: issue of Khargone and Seoni क्या खरगोन और सिवनी में जो कुछ भी हुआ उस पर राजनीतिक बढ़त या एक दूसरे पर आरोप मढ़ना ठीक था और मध्य प्रदेश की जनता को साक्षी मानकर आप पूरी इमानदारी से कह सकते हैं कि नहीं हमने इस पर राजनीति नहीं की। कोई कुछ बोले आप ने आग में घी नहीं डाला। चुप भी तो रहा जा सकता था, पर वो आप से हुआ नहीं। अगर आपने जो कुछ भी कहा वो जनता के भले से जुड़ा हुआ था।
issue of Khargone and Seoni सिवनी में बीस लोगों ने घेरकर जिस बेहरमी से दो लोगों को मार डाला। ये उसी का आक्रोश था, जो बीजेपी के जांच दल पर फूटा और ये दूसरी तस्वीर खरगोन की है। यहां राम नवमी के जूलूस पर हुए हमले के बाद शहर में हो रही राजनीति से जनता गुस्से से भरी थी और वहीं गुस्सा कांग्रेस के जांच दल को झेलना पड़ा। तो ये पब्लिक है, जो सब जानती है, ये सत्ता तक पहुंचाती भी है और यही बेदखल भी करती है। तो राजनीति कब और कहां नहीं करनी है? ये इसने दोनों राजनीतिक दलों को बता भी दिया।
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दरअसल सियासी दलों को सियासत के लिए एजेंडे की तलाश रहती है। कोशिश ये भी होती है कि अपनी जिम्मेदारी दूसरों पर डाल दी जाए। भले फरियादी को इंसाफ मिले न मिले, लेकिन अब मध्यप्रदेश का आम आदमी समझ चुका है। आसानी से बहलाया फुसलाया नहीं जा सकता। दोनों घटनाओं के बाद बीजेपी कांग्रेस भी समझ चुकी है कि अब ऐसी राजनीति ठीक नहीं।
जाहिर है मातम के वक्त तो लोग आंसू पोंछने आते हैं, लेकिन इस दौरान अगर राजनीति चमकाई जाने लगे तो अफसोस होता है। गुस्सा फूटता है उस शख्स का जिसने अपने को खोया है। भले ही वो सत्ताधारी दल हो या फिर विपक्ष, लेकिन जिस तरह से सियासी बिरादरी इस पर राजनीति करने लगते हैं वो ज़रुर हैरान करता है। उम्मीद है कि सिवनी और खरगोन की घटना से राजनैतिक दल सबक ज़रुर लेंगे।
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