भोपाल: तीन विधानसभा सीटों और एक लोकसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव से पहले एमपी की सियासत में रोज नए-नए दांव चले जा रहे हैं। एक दूसरे की किलेबंदी में सेंध लगाने की कोशिश जारी है। इसी बीच खंडवा लोकसभा सीट को लेकर पूर्व सांसद अरुण यादव की नाराजगी की खबरे हैं। हालांकि सिंधिया के नाम के बहाने अरुण यादव ने अपनी नाराजगी का खंडन किया, लेकिन बीजेपी को कांग्रेस की एकजुटता पर सवाल उठाने का मौका जरूर दे दिया है।
मध्यप्रदेश में उपचुनाव से पहले कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव को लेकर सियासत गरमाई हुई है। पहले कांग्रेस की चुनाव तैयारियों की बैठक में शामिल नहीं होने को लेकर अरुण यादव की नाराजगी की खबरे सामने आई, अब जिस तरीके सोशल मीडिया पर अरुण यादव के बीजेपी के नेताओं से सम्पर्क होने की खबरें वायरल हुई। अरुण यादव ने ट्वीट कर अपनी नाराजगी की खबरों का खंडन तो जरूर किया, लेकिन जिस तरीके से उन्होंने ट्वीट किया उसको लेकर फिर राजनितिक गरमा गई। अरुण यादव ने लिखा। मेरे शरीर व परिवार के रक्त की एक-एक बूंद में कांग्रेस विचारधारा का प्रवाह होता है, मुझ सहित समूचे परिवार के नाम के आगे “यादव” लिखा जाता है “सिंधिया” नहीं । अलगाववादी ताकतों को मुंह की खाना पड़ेगी। अरुण यादव ने नाम भले ही सिंधिया का लिया पर उनका इशारा साफ़ था कि कांग्रेस के अंदर उनके खिलाफ जो गुट है उसे मुंह की खानी पड़ेगी। अरुण यादव को पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह का साथ मिला, लेकिन इसके बाद बीजेपी के बड़े नेताओं के बयान अरुण यादव के पक्ष में आने लगे , दरअसल अरुण यादव की नाराजगी के बहाने बीजेपी प्रदेश में ओबीसी को लेकर छिड़ी बहस में कांग्रेस को ही कठघरे में खड़ा करना चाहती है।
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कांग्रेस में अरुण यादव की कथित नाराजगी की कई वजह हैं। कांग्रेस नेताओं ने उपचुनाव में सर्वे के आधार पर टिकट देने की बात कही है। जबकि अरुण यादव खंडवा के जमीनी नेता हैं, यहां से सांसद रहे, केंद्रीय मंत्री भी बने। बतौर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का साढ़े चार साल का कार्यकाल रहा। हालांकि कांग्रेस के नेता अरुण यादव के बीजेपी में जाने और उनकी नाराजगी की खबरों से इत्तफाक नहीं रखते। वहीं, बीजेपी में एक वर्ग ऐसा है जो उनके बीजेपी में आने के लिए सहमत नहीं है।
हिंदू महासभा के बाबूलाल चौरसिया के कांग्रेस में शामिल होने के दौरान पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के खिलाफ दिए बयान के बाद से अरुण यादव कांग्रेस में अलग थलग पड़े हुए है। उन्हें केवल दिग्विजय सिंह का साथ मिला हुआ है। उनकी नाराजगी तब और बढ़ गई जब पत्नी के लिए टिकट मांगने वाले निर्दलीय विधायक सुरेश सिंह शेरा समर्थकों के साथ कमलनाथ से मिलने आए, तो उन्हें खूब तवज्जो मिली। इधर बीजेपी इस मामले में कांग्रेस को दो तरफ से घेरने की कोशिश में है। पहला यदि अरुण यादव बीजेपी में आ जाते हैं, तो कांग्रेस को बड़ा झटका लगेगा, यदि वे कांग्रेस में ही रहते हैं तो ऐसी कवायद से उनकी निष्ठा सवालों के घेरे में आ जाएगी और कांग्रेस में अंदरुनी बिखराव होगा, जिसका फायदा बीजेपी को मिल सकेगा।