खरगोन: Who is Sant Siyaram Baba? : मध्य प्रदेश के खरगोन जिले के प्रसिद्ध संत सियाराम बाबा का निधन हो गया है। भट्टयान बुजुर्ग आश्रम में सुबह 6 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। वे लंबे समय से बीमार चल रहे थे। SP धर्मराज मीना ने उनके निधन की पुष्टि की है। संत सियाराम बाबा मां नर्मदा, भगवान राम और हनुमान जी के उपासक थे। बाबा की उम्र 100 वर्षों से अधिक बताई जाती है। बाबा के निधन से प्रदेश में शोक की लहर है। वहीं उनके निधन के बाद अब श्रद्धांजलि देने का दौर भी शुरू हो चुका है।
Who is Sant Siyaram Baba? : बता दें कि बाबा के स्वास्थ्य में कुछ खराबी आई थी और उसके बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उन्हें निमोनिया की शिकायत थी। खुद मुख्यमंत्री ने खरगोन कलेक्टर को संत सियाराम बाबा का ध्यान रखने के निर्देश दिए थे। अस्पताल में कुछ दिन इलाज के बाद उन्हें वापस भट्टयान आश्रम लाया गया था।
Siyaram Baba Passed Away अनुयायी बताते हैं कि संत सियाराम बाबा का जन्म 1933 में गुजरात के भावनगर में हुआ था। 17 वर्ष की आयु में उन्होंने गृहस्थ जीवन त्याग आध्यात्मिक मार्ग पर अग्रसर हो गए। अपने गुरु के साथ कई वर्षों तक शिक्षा ग्रहण करने व तीर्थ भ्रमण बाद वे नर्मदा तट स्थित भट्याण गांव पहुंचे। यहीं एक पेड़ के नीचे खड़े रहकर मौन रहकर कठोर तप किया। उनकी साधना पूर्ण हुई तो उन्होंने सियाराम उच्चारण किया। तभी से उन्हें सियाराम बाबा के नाम से बुलाने लगे।
बाबा का जन्म 1933 में गुजरात के भावनगर में हुआ था। 17 साल की उम्र में उन्होंने आध्यात्मिक मार्ग पर चलने का फ़ैसला किया था। उन्होंने कई सालों तक गुरु के साथ पढ़ाई की और तीर्थ भ्रमण किया। वे 1962 में भट्याण आए थे। यहां उन्होंने एक पेड़ के नीचे मौन रहकर कठोर तपस्या की। जब उनकी साधना पूरी हुई तो उन्होंने ‘सियाराम’ का उच्चारण किया, जिसके बाद से ही वे सियाराम बाबा के नाम से जाने जाते हैं। वे भगवान हनुमान के परम भक्त हैं।
आश्रम पर मौजूद अन्य सेवादारों ने बताया कि उनकी दिनचर्या भगवान राम व मां नर्मदा की भक्ति से शुरू होकर यही खत्म होती थी। बाबा प्रतिदिन रामायण पाठ का पाठ करते और आश्रम पर आने वाले श्रद्धालुओं को स्वयं के हाथों से बनी चाय प्रसादी के रूप में वितरित करते थे। समीपस्थ ग्राम सामेड़ा के रामेश्वर सिसोदिया ने बताया कि बाबा की वर्तमान आयु लगभग 95 वर्ष है। बाबा के लिए गांव से पांच छह घरों से भोजन का टिफिन आता था, जिसे बाबा एक पात्र में मिलाकर लेते थे। खुद की जरूरत के अनुसार भोजन निकाल कर बचा भोजन पशु-पक्षियों में वितरित कर देते थे।
सियाराम बाबा की प्रसिद्धि उनके सेवा कार्यों और दान के लिए भी है। नर्मदा किनारे के घाटों के विकास के लिए उन्होंने दो करोड़ रुपये की राशि दान की। इतना ही नहीं, बाबा के आश्रम में केवल 10 रुपये का दान लिया जाता है, और इससे अधिक की राशि लौटा दी जाती है। यही कारण है कि उन्हें “10 रुपये दानी बाबा” कहा जाता है। संत सियाराम बाबा का जीवन सादगी का प्रतीक है। किसी भी मौसम में वे केवल एक लंगोट में ही तप और साधना करते हैं। उनका शरीर इस जीवनशैली का अभ्यस्त हो चुका है। अपने भोजन के लिए वे किसी पर निर्भर नहीं रहते; यहां तक कि अपना भोजन स्वयं पकाते हैं। कई बार वे केवल फलाहार पर ही जीवित रहते हैं।