इंदौर (मध्यप्रदेश), 29 दिसंबर (भाषा) वर्ष 1984 की भोपाल गैस त्रासदी के लिए जिम्मेदार ‘यूनियन कार्बाइड’ कारखाने के 337 टन जहरीले कचरे को इंदौर के पास पीथमपुर की एक औद्योगिक अपशिष्ट निपटान इकाई में नष्ट किए जाने की उल्टी गिनती शुरू हो गई है। अधिकारियों ने रविवार को यह जानकारी दी।
यह अपशिष्ट राज्य की राजधानी में स्थित ‘यूनियन कार्बाइड’ कारखाने में पड़ा है जहां से दो और तीन दिसंबर 1984 की दरमियानी रात जहरीली गैस ‘मिथाइल आइसोसाइनेट’ का रिसाव हुआ था। दुनिया की सबसे भीषण औद्योगिक त्रासदियों में गिनी जाने वाली इस घटना में 5,479 लोगों की मौत हो गई थी और पांच लाख से अधिक लोग स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं और दीर्घकालिक विकलांगताओं से पीड़ित हो गए थे।
अधिकारियों ने बताया कि भोपाल गैस त्रासदी के बाद से बंद पड़े ‘यूनियन कार्बाइड’ कारखाने के 337 टन रासायनिक कचरे को पीथमपुर में एक निजी कंपनी की अपशिष्ट निपटान इकाई तक पहुंचाने के लिए व्यवस्थाओं को अंतिम रूप दिया जा रहा है। पीथमपुर, राज्य का प्रमुख औद्योगिक क्षेत्र है।
मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने भोपाल गैस त्रासदी के 40 साल बाद भी ‘यूनियन कार्बाइड’ कारखाने के जहरीले कचरे का निपटारा नहीं होने पर नाराजगी जताते हुए तीन दिसंबर को राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि इस कचरे को तय अपशिष्ट निपटान इकाई में चार हफ्तों के भीतर भेजा जाए।
राज्य के गैस राहत और पुनर्वास विभाग के निदेशक स्वतंत्र कुमार सिंह ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘भोपाल गैस त्रासदी का कचरा एक कलंक है जो 40 साल बाद मिटने जा रहा है। हम इसे सुरक्षित तौर पर पीथमपुर भेजकर नष्ट करेंगे।’
उन्होंने कहा कि इस रासायनिक कचरे को भोपाल से पीथमपुर भेजने के लिए करीब 250 किलोमीटर लंबा ‘ग्रीन कॉरिडोर’ बनाया जाएगा। ‘ग्रीन कॉरिडोर’ का मतलब सड़क पर यातायात को व्यवस्थित करके कचरे को कम से कम समय में गंतव्य तक पहुंचाने से है।
सिंह ने इस कचरे को पीथमपुर भेजकर नष्ट करने की प्रक्रिया शुरू किए जाने की कोई विशिष्ट तारीख बताने से इनकार कर दिया, लेकिन सूत्रों का कहना है कि उच्च न्यायालय के निर्देश के मद्देनजर यह प्रक्रिया जल्द शुरू हो सकती है।
गैस राहत और पुनर्वास विभाग के निदेशक ने बताया कि पीथमपुर की अपशिष्ट निपटान इकाई में शुरुआत में कचरे के कुछ हिस्से को जलाकर देखा जाएगा और इसके ठोस अवशेष (राख) की वैज्ञानिक जांच की जाएगी ताकि पता चल सके कि इसमें कोई हानिकारक तत्व तो बचा नहीं रह गया है।
सिंह ने कहा, ‘‘अगर जांच में सब कुछ ठीक पाया जाता है, तो कचरे को तीन महीने के भीतर जलाकर भस्म कर दिया जाएगा। वरना इसे जलाने की रफ्तार धीमी की जाएगी जिससे इसे भस्म होने में नौ महीने तक लग सकते हैं।’’
उन्होंने बताया कि भस्मक में कचरे के जलने से निकलने वाले धुएं को चार स्तरों वाले विशेष फिल्टर से गुजारा जाएगा ताकि आस-पास की वायु प्रदूषित न हो और इस प्रक्रिया के पल-पल का रिकॉर्ड रखा जाएगा।
सिंह ने बताया कि कचरे के भस्म होने और हानिकारक तत्वों से मुक्त होने के बाद इसके ठोस अवशेष (राख) को दो परतों वाली मजबूत ‘मेम्ब्रेन’ (झिल्ली) से ढककर ‘लैंडफिल साइट’ में दफनाया जाएगा ताकि यह अपशिष्ट किसी भी तरह मिट्टी और पानी के संपर्क में न आ सके।
उन्होंने कहा कि कचरे को प्रदेश सरकार, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की निगरानी में विशेषज्ञों का दल सुरक्षित तरीके से नष्ट करेगा और इसकी विस्तृत रिपोर्ट उच्च न्यायालय में प्रस्तुत की जाएगी।
स्थानीय लोगों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं के एक तबके का दावा है कि ‘यूनियन कार्बाइड’ के 10 टन कचरे को वर्ष 2015 में पीथमपुर की अपशिष्ट निपटान इकाई में परीक्षण के तौर पर नष्ट किए जाने के बाद आस-पास के गांवों की मिट्टी, भूमिगत जल और जल स्रोत प्रदूषित हो गए हैं।
गैस राहत और पुनर्वास विभाग के निदेशक सिंह ने इस दावे को गलत बताते हुए कहा, ‘2015 के इस परीक्षण की रिपोर्ट और सारी आपत्तियों की जांच के बाद ही पीथमपुर की अपशिष्ट निपटान इकाई में ‘यूनियन कार्बाइड’ के कारखाने के 337 टन कचरे को नष्ट करने का फैसला किया गया है। इस इकाई में कचरे को सुरक्षित तरीके से नष्ट करने के सारे इंतजाम हैं और चिंता की कोई भी बात नहीं है।’’
भाषा हर्ष सिम्मी
सिम्मी
(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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