संस्कारधानी में जंगी सियासत! आदिवासी वर्ग को कौन कितना लुभा पाया? |Conflict politics in Sanskardhani! Who was able to woo the tribal class to what extent?

संस्कारधानी में जंगी सियासत! आदिवासी वर्ग को कौन कितना लुभा पाया?

संस्कारधानी में जंगी सियासत! ! Conflict politics in Sanskardhani! Who was able to woo the tribal class to what extent?

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:57 PM IST, Published Date : September 18, 2021/10:55 pm IST

भोपाल: महाकौशल में आज आदिवासी नायकों के सम्मान से जुड़े कई आयोजन हुए, जिसके मूल में दिखी खुद को आदिवासियों का सच्चा हितैषी बताने की होड़। भाजपा के दिग्गज रणनीतिकार केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने आदिवासी बलिदानी राजाओं को नमन करने के साथ-साथ कांग्रेस पर जमकर निशाना साथा। तो कांग्रेस की ओर से भी पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह और कांतिलाल भूरिया ने भाजपा को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ी। कांग्रेस ने आदिवासियों पर जुल्म की याद दिलाई ने तो भाजपा ने आजादी के बाद से आदिवासियों की उपेक्षा कर सिर्फ वोट बैंक के तौर पर उनका इस्तेमाल किए जाने का आरोप मढ़ा। कुल जमा संदेश ये हम हैं सबसे बड़े आदिवासी हितैषी। आखिर ये होड़ क्यों और इसमें कामयाब कौन रहा?

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देश के गृहमंत्री अमित शाह ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ-साथ एक दर्जन मंत्रियों सहित गोंड राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह के बलिदान दिवस पर उन्हें श्रद्धांजलि दी। अभी तक तो ये कार्यक्रम सादगीपूर्ण तरीके से मनाया जाता रहा था। लेकिन इस बार बीजेपी के सबसे बड़े रणनीतिकार अमित शाह की यहां मौजूदगी के सियासी मायने निकाले जा रहे हैं। दरअसल देश में करीब 10 करोड़ आदिवासी हैं जिन्हें कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक माना जाता है। अब बीजेपी इस वर्ग के नायकों के नाम पर आयोजन कर इस वर्ग को साधना चाहती है। कहा ये भी जा रहा है कि बीजेपी ऐसे कार्यक्रमों के जरिए खुद पर लगे मध्यमवर्गीय और अगड़ों की पार्टी के लेबल को भी हटाना चाहती है। विधानसभा चुनाव के लिहाज से देखें तो मध्यप्रदेश में 84 सीटों पर आदिवासी असरकारक भूमिका में हैं। शायद यही वजह है कि अमित शाह ने आदिवासी हितों की बात करते हुए कांग्रेस को जमकर निशाने पर लिया।

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दूसरी तरफ कांग्रेस भी आदिवासी वोट बैंक को खुद से छिटकने देना नहीं चाहती। कुछ दिन पहले ही प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने बड़वानी में आदिवासी सम्मेलन किया था। पार्टी ने विधानसभा में भी आदिवासियों का मुद्दा जोर शोर से उठाया था। 2018 में पार्टी को आदिवासी सीटों पर मिला बड़ा फायदा नेमावर और नीमच जैसी घटनाओं पर कांग्रेस ने प्रदेशभर में मुखर प्रदर्शन किए। अमित शाह के वार पर पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और विधायक कांतिलाल भूरिया ने मोर्चा संभालते हुए शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह को श्रद्धांजलि देने के साथ-साथ एक प्रेस कांफ्रेंस कर सरकार को कटघरे में खड़ा किया।

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साफ है कि दोनों दलों में आदिवासियों का हितैषी बनने की होड़ है। वजह साफ है प्रदेश में करीब दो करोड़ आदिवासी बसते हैं, जिसमें 60 लाख भील, 51 लाख गोंड और 12 लाख कोल हैं। अलावा इसके ये माना जाता है कि इनके वोट किसी भी पार्टी को एकतरफा ही मिलते हैं। बड़ा सवाल ये कि आदिवासी वर्ग को कौन कितना लुभा पाया?

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