CM Mohan Yadav’s father passed away : सीएम मोहन यादव के पिता का निधन, आज उज्जैन में होगा अंतिम संस्कार, भाजपा के कई बड़े नेता होंगे शामिल

सीएम मोहन यादव के पिता का निधन, आज उज्जैन में होगा अंतिम संस्कार, CM Mohan Yadav's father passed away, last rites will be held in Ujjain today

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  • Publish Date - September 4, 2024 / 08:04 AM IST,
    Updated On - September 4, 2024 / 02:51 PM IST

भोपालः CM Mohan Yadav’s father passed away मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के पिता पूनमचंद यादव का मंगलवार को निधन हो गया। बीते कुछ दिनों से पूनम चंद यादव की तबीयत खराब चल रही थी। उन्होंने उज्जैन के अस्पताल में 100 साल की उम्र में आखिरी सांस ली। आज उनका अंतिम संस्कार शिप्रा तट पर भूखी माता मंदिर के पास किया जाएगा। मुख्यमंत्री के पिता के निधन पर मध्यप्रदेश सहित देश के तमाम बड़े नेताओं ने दुख जताया है।

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CM Mohan Yadav’s father passed away पिता पूनम चंद यादव के निधन का समाचार सुनते ही मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव भोपाल से उज्जैन पहुंच गए हैं। वह पिता पूनम चंद यादव के निधन पर उज्जैन के गीता कॉलोनी स्थित निवास पर पहुँचे। जानकारी के मुताबिक पूनम चंद यादव की अंतिम यात्रा सुबह 11.30 बजे गीता कॉलोनी,अब्दालपुरा से शुरू होगी होगी। अंतिम संस्कार शिप्रा तट पर भूखी माता मंदिर के पास होगा। अंतिम यात्रा में केंद्रीय मंत्री ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया सहित भाजपा के कई नेता शामिल होंगे।

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क्या बोले मोहन यादव?

पिता के निधन पर सीएम मोहन यादन ने X पर ट्वीट किया है। उन्होंने लिखा- “परम पूज्य पिताजी श्रद्धेय श्री पूनमचंद यादव जी का देवलोकगमन मेरे जीवन की अपूरणीय क्षति है। पिताजी का संघर्षमय एवं नैतिक मूल्यों और सिद्धांतों से परिपूर्ण जीवन हमेशा मर्यादित पथ पर अग्रसर रहने की प्रेरणा प्रदान करता रहा है। आपके दिए संस्कार हमारा सदैव मार्गदर्शन करते रहेंगे। पिताजी के श्रीचरणों में शत शत नमन।”

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100 साल का होने के बाद भी उपज बेचने खुद मंडी जाते थे

यादव समाज से जुड़े लोग बताते हैं कि, पूनमचंद यादव ने अपने जीवन में काफी संघर्ष किया। उन्होंने बेटे नंदू यादव, नारायण यादव, मोहन यादव और बेटी कलावती, शांति देवी को अच्छी शिक्षा दिलाई। संघर्ष के दिनों में उनके पिता रतलाम से उज्जैन आ गए और सबसे पहले हीरा मिल में नौकरी की। इसके बाद शहर के मालीपुरा में भजिया और फ्रीगंज में दाल-बाफले की दुकान लगाई। 100 वर्ष की उम्र होने के बाद भी वे उपज बेचने खुद मंडी जाते थे।

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