देवेंद्र चतुर्वेदी, छतरपुर/ खजुराहो। तबले और मृदंग की थाप, घुंघरुओं की झंकार, और सुघड़ भाव भंगिमाओं से लबरेज नृत्य की प्रस्तुतियां खजुराहो नृत्य महोत्सव में रोज देखने को मिल रही हैं। यहां की फिजां में आनंद का एक अनूठा रंग तारी है, चंदेलों के बनाये वैभवशाली मंदिरों की आभा में जब घुंघरू रुनझुन करते हैं तो मंदिरों पर उत्कीर्ण पाषाण प्रतिमाएं जीवंत हो उठती हैं। ये सारा मंजर एक ऐसा कोलाज़ बनाता है जिसके सब रंग चटकीले होते हैं। आज छठे दिन भी यह अदभुत आनंद लोगों ने शिद्दत से महसूस किया। आज जननी मुरली के भरतनाट्यम, वैजयंती काशी और उनके साथियों के कुचिपुड़ी, निवेदिता पंड्या व सौम्य बोस की कथक ओडिसी जुगलबंदी, एवं गजेंद्र कुमार पंडा व उनके साथियों की ओडिसी नृत्य प्रस्तुतियों ने समारोह को और ऊंचाई पर पहुंचा दिया।
आज के कार्यक्रम का आगाज़ बेंगलोर से आईं जननी मुरली के भरतनाट्यम से हुआ। जननी एक प्रतिभाशाली नृत्यांगना हैं। गुरु, शोधार्थी ओर कोरियोग्राफर के रूप में उनकी पहचान है। उनकी आज की प्रस्तुति पौराणिक आख्यान पर आधारित थी। उन्होंने भगवान स्कन्द जिन्हें हम कार्तिकेय के नाम से भी जानते हैं और भगवान कृष्ण की समानता को नृत्य के जरिये पेश किया। अरुल्ल यानि कृपा नाम की इस प्रस्तुति में जननी ने स्कन्द और कृष्ण के सौंदर्य उनके जन्म की कथा को बेहतरीन नृत्यभिनयों से पेश किया। दोनों ही योद्धा हैं स्कन्द ने सूरपदनम का तो कृष्ण ने कंस का बध किया और लोगों को उनके अत्याचारों से मुक्ति दिलाई। स्कन्द ओंकार के उपदेशक हैं तो कृष्ण गीता के। जननी ने अपने नृत्य में दोनोंकी समानता को अंग संचालन और नृत्यभावों से बड़े ही सलीके से पेश किया। इस प्रस्तुति में नटवांगम पर गुरु श्रीमती पद्मा मुरली, गायन पर आर रघुराम, मृदंग पर कार्तिक विदात्री, एवं बांसुरी पर राकेश दास ने साथ दिया। ताल और संगीत रचना श्री हरि रंगास्वामी और नरसिम्हा मूर्ति की थी।
दूसरी प्रस्तुति कुचिपुड़ी नृत्य की रही। कलाकार थीं वैजयंती काशी और उनके साथी। वैजयंती काशी गुरु शिष्य परम्परा की सुंदर कड़ी हैं।उन्होंने अनेक शिष्य शिष्याएं तैयार की हैं। उन्होंने अदीबो अल अदीबा यानि ” देखो उधर भी” नृत्य रचना से अपने नृत्य की शुरुआत की। इस प्रस्तुति में देखो उधर भी से आशय भगवान वेंकटेश्वर के सौंदर्य श्रीदेवी भूदेवी के सौंदर्य और कृपा से है। नृत्य में वैजयंती और उनके साथियों ने अन्नामचारी की रचना श्री हरिवासम जो एकताल में निबद्ध थी ,पर अपने नृत्यभावों और पद संचालन से इस प्रस्तुति को बेजोड़ बनाया। वैजयंती जी ने अगली प्रस्तुति पूतना वध की दी, और समापन तरंगम से किया।नृत्य संरचना खुद वैजयंती की थी जबकि संगीतबमनोज वशिष्ठ, पी रमा और कार्तिक का था। इन प्रस्तुतियों में प्रतीक्षा काशी, हिमा वैष्णवी दीक्षा शंकर, अभिग्ना, गुरु राजू,नेहा और अश्विनी ने भी साथ दिया।
तीसरी प्रस्तुति में कथक और ओडिसी की जुगलबंदी देखने को मिली। कलाकार थे निवेदिता पंडया और सौम्य बोस। निवेदिता कथक करती हैं और सौम्य ओडिसी। दोनों ने अपने नृत्य की शुरुआत कस्तूरी तिलकम से की। राग मधुवंती में कहरवा के भजनी ठेके पर काव्य रचना ” कस्तूरी तिलकम ललाट पटले वक्षस्थले कौस्तुभकम’ पर उन्होंने भगवान कृष्ण के श्रृंगारिक स्वरूप को नृत्यभावों से साकार करने का प्रयास किया। अगली प्रस्तुति में निवेदिता ने रायगढ़ शैली में कथक का शुद्ध स्वरूप पेश किया ।इसमे उन्होंने तीनताल में कुछ तोड़े टुकड़े, परनें, तिहाइयाँ, चक्करदार तिहाइयों की ओजपूर्ण प्रस्तुति दी। राग सरस्वती के नगमे पर यह प्रस्तुति और खिल उठी। इसके बाद सौम्य ने ओडिसी में पल्लवी की प्रस्तूती दी। ये भी शुद्ध नृत्य है, राग हंसध्वनि में एक ताल पर दी गई यह प्रस्तुति भी ओजपूर्ण थी। अगली प्रस्तुति में दोनों ने आदि शंकराचार्य कृत अर्धनारीश्वर की शानदार प्रस्तुति दी। राग और ताल मलिका से सजी यह नृत्य रचना केलुचरण महापात्रा की थी जबकि संगीत भुवनेश्वर मिश्रा का था। नृत्य का समापन आपने तीन ताल में कलावती के एक तराने से किया। इस प्रस्तुति में तबले पर मृणाल नागर, महदल पर एकलव्य मृदुली, सितार पर स्मिता बाजपेयी, वायलिन पर रामेशचंद्रदास, और गायन पर विनोद विहारी पांडा ने साथ दिया।
आज की सभा का समापन भुवनेश्वर के गजेंद्र कुमार पंडा और उनके साथियों के ओडिसी नृत्य से हुआ। गजेंद्र पंडा त्रिधारा नाम से ओडिसी का संस्थान संचालित करते हैं और बड़ी संख्या में युवा पीढ़ी को नृत्य सिखाते हैं। उन्होंने गणनायक प्रस्तुति से अपने नृत्य की शुरुआत की । इसमें उन्होंने गणेश जी को साकार करने का प्रयास किया। राग सोहनी में एकताल की रचना -” जय जय हे जय जय हे गणनायक” पर उन्होंने बड़ा ही मनोहारी नृत्य पेश किया। अगली प्रस्तुति मान उद्धारण की थी। जगन्नाथ जी के भजन -” मान उद्धारण कर हे तारण ” पर उन्होंने गज, और द्रोपदी सहित भगवान के कई भक्तों के उद्धार की लीला को भावों में पिरोकर पेश किया। त्रिपटा ताल में यह एकल प्रस्तुति थी। समापन पर आपने जोगिनी जोग रूपा नृत्य रचना पेश की।राग ताल मालिका में सजी इस प्रस्तुति में भगवान शिव और डिवॉन के नृत्य की कथा थी। गजेंद्र कुमार पंडा की यह प्रतुतियाँ बेहद पसंद की गईं।
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