विवेक पटैया/भोपाल: मोदी अबकी बार 400 पार तो एमपी बीजेपी मिशन-29 के लक्ष्य को लेकर चुनावी मैदान में है, लेकिन बीजेपी की इस मंजिल में सबसे बड़ा रोड़ा छिंदवाड़ा है। इसे कमलनाथ का अभेद्य किला भी कहा जाता है। इस किले में सेंधमारी के लिए बीजेपी कोई कसर नहीं छोड़ रही। बड़े बड़े नेताओं के साथ मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव भी छिंदवाड़ा का तुफानी दौरा कर रहे हैं, हालांकि छिंदवाड़ा के सियासी इतिहास पर नजर डालें तो यहां बीजेपी सिर्फ एक बार जीत का स्वाद चख पाई है। हालांकि इस बार बीजेपी का दावा है कि छिंदवाड़ा अब मोदीमय हो चुका है।
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लोकसभा चुनाव से ऐन पहले कांग्रेस को उस वक्त बड़ा झटका लगा, जब छिंदवाड़ा में कमलनाथ के सबसे मजबूत हाथ माने जाने वाले विधायक कमलेश शाह बीजेपी में शामिल हो गए। पहली बार छिंदवाड़ा जिले से कोई विधायक बीजेपी के पाले में गया। मध्यप्रदेश में छिंदवाड़ा वो इकलौती सीट है जहां पर कांग्रेस का कब्जा है। ऐसे में अमरवाड़ा से तीन बार के विधायक और गोंडवाना समाज से आने वाले कमलेश शाह के को बीजेपी में शामिल कर मुख्यमंत्री मोहन यादव ने कमलनाथ के गढ़ में बड़ी सेंध लगाई है।
बीजेपी जानती है कि अगर उसे मिशन-29 फतह करना है तो उसे कमलनाथ का गढ़ यानी छिंदवाड़ा जीतना होगा। यही वजह है कि बीजेपी ने मिशन छिंदवाड़ा के लिए पूरी ताकत झोंक दी है। बीजेपी के दिग्गज नेता छिंदवाड़ा में सक्रिय हैं। खुद मुख्यमंत्री मोहन यादव भी तुफानी दौरा कर रहे हैं। इसके अलावा बीजेपी लगातार कमलनाथ के समर्थक और करीबी नेताओँ को अपने पाले में ला रही है। हाल के दिनों में नजर डालें तो कमलनाथ के बेहद करीबी दीपक सक्सेना ने कमलनाथ से दूरी बना ली है। दीपक सक्सेना के बेटे अजय सक्सेना बीजेपी में शामिल हो चुके हैं। 2 हजार से अधिक कार्यकर्ताओँ के साथ पूर्व विधायक चौधरी गंभीर सिंह रघुवंशी ने साथ छोड़ा। कुछ दिन पहले कमलनाथ के करीबी रहे सैयद जाफर ने भी बीजेपी की सदस्यता ले ली है। अब अमरवाड़ा से आदिवासी नेता कमलेश शाह के बीजेपी में आने से नकुलनाथ की मुश्किलें बढ़नी तय है। हालांकि कांग्रेस इससे इत्तेफाक नहीं रखती।
एक तरफ बीजेपी मिशन छिंदवाड़ा के लिए कमर कस चुकी । कांग्रेस के सबसे मजबूत गढ़ को जीतने तमाम सियासी दांवपेंच चल रही है, लेकिन छिंदवाड़ा का सियासी इतिहास बताता है कि बीजेपी की राह इतनी आसान नहीं है। 1971 से लेकर 1996 तक यहां की जनता ने कांग्रेस के कैंडिडेट को सांसद चुना। उसके बाद 1997 में हुए उपचुनाव में सिर्फ एक बार बीजेपी जीती। उसके बाद 1998 से 2014 तक कांग्रेस की टिकट पर कमलनाथ चुनाव जीते। अब उनके बेटे नकुलनाथ यहां से सांसद हैं। बहरहाल कमलेश प्रताप शाह के इस्तीफा देने के बाद मध्यप्रदेश में कांग्रेस के 65 ही विधायक बचे हैं। खैर विधानसभा में तो इसका बहुत ज्यादा असर नहीं पड़ने वाला, लेकिन लोकसभा चुनाव में बीजेपी के लिए बड़ी रणनीतिक जीत है। अब बीजेपी कमलनाथ को उनके गढ़ में मात देने में कामयाब होगी या नहीं ये तो सिर्फ 4 जून को पता चलेगा।
बुधनी में कांग्रेस तो विजयपुर में भाजपा आगे
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