(लेमुएल लाल )
भोपाल, तीन दिसंबर (भाषा) भोपाल गैस त्रासदी के चालीस साल बाद भी इसके पीड़ितों को न्याय नहीं मिल पाया है। इस मामले में करीब 25 साल तक 19 न्यायाधीशों ने सुनवाई की और 2010 के फैसले के खिलाफ अपील पर अब तक नौ न्यायाधीश सुनवाई कर चुके हैं।
वर्ष 1984 में दो और तीन दिसंबर की दरमियानी रात ‘यूनियन कार्बाइड’ के कीटनाशक संयंत्र से अत्यधिक जहरीली गैस ‘मिथाइल आइसोसाइनेट’ (एमआईसी) का रिसाव होने से 5,479 लोगों की मौत हो गई और पांच लाख से अधिक लोग अपंग हो गए।
मामले से जुड़े एक वकील ने बताया कि सात जून 2010 को अधीनस्थ अदालत द्वारा दोषी ठहराए गए सात लोगों में से तीन की मृत्यु हो चुकी है जिनमें ‘यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड’ (यूसीआईएल) के पूर्व अध्यक्ष केशुब महिंद्रा, यूसीआईएल के पूर्व प्रबंध निदेशक विजय प्रभाकर गोखले और यूसीआईएल भोपाल के एक डिविजन के अधीक्षक केवी शेट्टी शामिल हैं।
इन दोषियों को भारतीय दंड संहिता की धारा 304-ए (लापरवाही से मौत), 304-द्वितीय (गैर इरादतन हत्या), 336, 337 और 338 (घोर लापरवाही) के तहत दोषी ठहराया गया था।
अदालत ने सात दोषियों को दो साल कैद की सजा सुनाई और उन पर 1,01,750 रुपये का जुर्माना लगाया।
मामले में फैसले के बाद अभियोजन एजेंसी केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने दोषियों के लिए कड़ी सजा की मांग करते हुए उच्चतम न्यायालय में सुधारात्मक याचिका दायर की लेकिन शीर्ष अदालत ने इसे खारिज कर दिया।
जमानत पर रिहा दोषियों ने 2010 के फैसले को चुनौती देते हुए अपील दायर की जिसमें कहा गया था कि वे निर्दोष हैं उन्हें बरी किया जाना चाहिए।
वकील ने बताया कि अभियोजन पक्ष ने भी प्रत्येक मौत के आधार पर दोषियों की सजा बढ़ाने का अनुरोध करते हुए अपील दायर की।
फोन पर संपर्क करने पर सीबीआई के वकील सियाराम मीणा ने मामले की स्थिति पर बात करने से इनकार कर दिया और कहा कि उन्हें मीडिया के साथ कोई भी विवरण साझा करने का अधिकार नहीं है।
अपील की सुनवाई 2010 में शुरू हुई।
जिला एवं सत्र न्यायाधीश सुभाष काकड़े ने 2011 तक अपील की सुनवाई की। मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय में न्यायाधीश के रूप में उनकी पदोन्नति के बाद सत्र न्यायाधीश सुषमा खोसला ने सेवानिवृत्त होने से पहले 2015 तक अपीलीय न्यायालय की अध्यक्षता की।
उनके बाद, न्यायाधीश राजीव दुबे ने उच्च न्यायालय में पदोन्नत होने से पहले अप्रैल 2015 से अक्टूबर 2016 तक मामले में सुनवाई की। इसके बाद, सत्र न्यायाधीश शैलेंद्र शुक्ला आए और उन्होंने उच्च न्यायालय में पदोन्नत होने से पहले नवंबर 2018 तक अपीलों की सुनवाई की।
उनके बाद, सत्र न्यायाधीश राजेंद्र वर्मा ने जून 2021 तक सुनवाई की और फिर वह भी उच्च न्यायालय में पदोन्नत हो गए। उनके बाद, गिरिबाला सिंह ने सेवानिवृत्त होने से पहले फरवरी 2023 तक मामले की सुनवाई की।
सत्र न्यायाधीश मनोज कुमार श्रीवास्तव ने उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल के रूप में नियुक्त होने से पहले नवंबर 2023 तक मामले की सुनवाई की। उनके बाद सत्र न्यायाधीश अमिताभ मिश्रा अक्टूबर 2024 तक सुनवाई करते रहे, उसके बाद उनका कटनी जिला न्यायालय में तबादला कर दिया गया।
फिलहाल जिला एवं सत्र न्यायाधीश मनोज कुमार श्रीवास्तव ने उच्च न्यायालय से भोपाल जिला न्यायालय में वापस आकर मामले की सुनवाई फिर से शुरू कर दी है।
अपील पर 2010 की सुनवाई से पहले, दिसंबर 1987 में आरोपपत्र दाखिल होने के बाद भोपाल गैस त्रासदी मामले में 19 न्यायाधीशों ने सुनवाई की थी।
सीबीआई ने एक दिसंबर 1987 को यहां मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (सीजेएम) ए सिसोदिया की अदालत में आरोपपत्र दाखिल किया था।
सीजेएम आर सी मिश्रा ने 30 सितंबर 1988 से मामले की सुनवाई की। उनके बाद लाल सिंह भाटी ने जुलाई 1989 से नवंबर 1991 तक मामले की सुनवाई की। इसके बाद सीजेएम गुलाब शर्मा ने 22 जून 1992 को इसे सत्र न्यायालय को भेज दिया।
इसके बाद, 13 जुलाई 1992 से सत्र न्यायाधीश एस पी खरे ने इसकी सुनवाई की।
यह मामला 17 जुलाई 1992 और 29 नवंबर 1995 को दो और न्यायाधीशों के समक्ष आया। सत्र न्यायाधीश आर.जी. फड़के ने 24 सितंबर 1996 से मामले की सुनवाई की और उच्चतम न्यायालय द्वारा 1996 में आरोपों को हल्का किए जाने के बाद मामले को सीजेएम की अदालतों में वापस भेज दिया गया।
न्यायिक मजिस्ट्रेट मोहन पी तिवारी के समक्ष 21 फरवरी 2009 को आने से पहले सात और न्यायाधीशों ने मामले की सुनवाई की। उन्होंने आठ आरोपियों को दोषी करार दिया।
तत्कालीन सीजेएम मोहन पी तिवारी ने सातों आरोपियों को दो साल की कैद की सजा सुनाई और उन पर 1,01,750 रुपये का जुर्माना लगाया।
भोपाल गैस त्रासदी में प्राथमिकी तीन दिसंबर 1984 को दर्ज की गई थी और मामला छह दिसंबर 1984 को सीबीआई को सौंप दिया गया था।
फैसला आने के कुछ ही मिनटों बाद, तत्कालीन केंद्रीय कानून मंत्री एम वीरप्पा मोइली ने नयी दिल्ली में संवाददाताओं से बातचीत में फैसला आने में लगे इतने लंबे समय को लेकर चिंता व्यक्त की थी। उन्होंने ऐसे मामलों की त्वरित सुनवाई और उचित जांच सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर भी जोर दिया।
उन्होंने उस समय कहा था, ‘‘यह एक ऐसा मामला है जहां न्याय में देरी हुई और व्यावहारिक रूप से न्याय नहीं मिला।’’
उन्होंने कहा कि ऐसा दोबारा नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा था कि उचित जांच करके दोषियों को सजा मिलनी चाहिए तथा अधिकतम सजा सुनिश्चित की जानी चाहिए। उन्होंने यह भी कहा था कि त्वरित अदालतों की जरूरत है।
मंत्री ने इस त्रासदी को एक विशेष उद्योग की गलती के कारण गंभीर आपदा बताया था।
इस बीच, भोपाल के एक प्रसिद्ध वकील ने कहा कि उच्च न्यायालय को अपील के लिए एक न्यायाधीश नियुक्त करना चाहिए, ताकि इसका जल्द निपटारा हो सके।
भाषा दिमो
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