भोपाल : Bhopal Gas Tragedy: 2-3 दिसंबर 1984 की दरमियानी रात हुए गैस कांड का जख्म आज भी पीड़ितों के जहन में है और यह जख्म हर साल बरसी आने पर ताजे हो उठते है। गैस कांड के 38 साल बाद भी गैस पीड़ित आज भी कई तरह की बीमारियों से जूझ रहे है, जिनके इलाज की व्यवस्था करने का दावा तो मप्र सरकार करती है लेकिन अव्यवस्थाओं के फेर में उलझ कर गैस पीड़ितों को न तो इलाज मिल पाता है और न ही जरूरी व्यवस्था।
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Bhopal Gas Tragedy: मप्र सरकार ने गैस पीड़ितों का इलाज आयुष्मान योजना के तहत इलाज कराने की व्यवस्था तो की है पर कागजों और नियमों के फेर में उलझ कर गैस पीड़ितों को इस योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा है। इस बारे में गैस पीड़ितों के लिए काम करने वाली सामाजिक कार्यकर्ता ने बताया कि कई गैस विक्टिम ऐसे है जिन्हें वह दिक्कतें है जो आयुष्मान योजना के दायरे में नहीं है। कई गैस पीड़ित ऐसे है जो गरीबी रेखा के नीचे नहीं आते है। इन्हीं सब शर्तों में उलझ कर गैस पीड़ित अपने इलाज के लिए अस्पताल से अस्पताल भटकते रहते है। सुप्रीम कोर्ट ने मप्र सरकार को निर्देश दिए थे कि सभी गैस पीड़ितों का इलाज मुफ्त होना चाहिए पर प्रदेश सरकार के पेचीदा फैसलों के कारण गैस पीड़ित परेशान ज्यादा हुए है।
Bhopal Gas Tragedy: बता दें कि, 2 दिसंबर, 1984 की रात को यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड (यूसीआईएल) के कीटनाशक कारखाने से निकलने वाली गैस के कारण 15 हजार से अधिक लोगों की मौत हुई। रासायनिक विज्ञान की भाषा में गैस को मिथाइल आइसोसाइनेट (एमआईसी) नाम दिया गया। 38 साल पहले लीक हुई गैस के कारण मंजर ऐसा खौफनाक बना मानो पूरा भोपाल शहर गैस चैंबर में बदल गया हो। यह भारत की पहली बड़ी औद्योगिक आपदा थी।
Bhopal Gas Tragedy: रिपोर्ट्स के मुताबिक कम से कम 30 टन मिथाइल आइसोसाइनेट गैस के कारण 15,000 से अधिक लोगों की मौत के अलावा 6,00,000 से अधिक श्रमिकों की सेहत पर भयानक असर हुआ। भोपाल गैस त्रासदी को दुनिया की सबसे भीषण औद्योगिक आपदा के रूप में जाना जाता है। त्रासदी से पहले चेतावनी की घंटी मिलने के बावजूद प्रबंधकों और कीटनाशक कारखाने की लापरवाही के कारण हजारों मासूम लोग काल के गाल में समा गए।
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