भोपाल: मध्यप्रदेश विधानसभा का 4 दिवसीय मानसून सत्र हंगामे और शोर-शराबे के बीच डेढ़ दिन में ही सिमट गया। पहले दिन आदिवासी दिवस पर छुट्टी, तो दूसरे दिन ओबीसी आरक्षण और महंगाई के मुद्दे पर कांग्रेस विधायकों ने सदन में जमकर हंगामा किया। विपक्ष के हर आरोपों का जबाब सत्ताधारी बीजेपी ने भी उसी अंदाज में दिया। हंगामे और शोर-शराबे के बीच सरकार ने कई महत्वपूर्ण विधेयकों को मंजूरी दी और अनुपूरक बजट भी पास करा किया। लेकिन सवाल ये है कि आखिर मानसून सत्र से जनता को हासिल क्या हुआ? आखिर तिकड़मों में ही क्यों उलझ जाता है विधानसभा का सत्र?
ये हंगामा मध्यप्रदेश के सर्वोच्च सदन में हुआ, जिसे लोकतंत्र का मंदिर कहा जाता है, जहां विधायकों को प्रदेश की जनता की आवाज उठाने के लिए भेजा जाता है। लेकिन इस हंगामे और शोर शराबे ने जनता की आवाज को दबाकर रख दिया। जी हां मध्यप्रदेश विधानसभा का मानसून सत्र दूसरे ही दिन हंगामे की वजह अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया। ये सबसे छोटा सत्र रहा, जो डेढ़ दिन में सिर्फ 3 घंटे चला। ओबीसी और दलितों का मुद्दा उठाकर कांग्रेस ने सदन में जम कर हंगामा किया। प्रदेश की राजनीति में सबसे बड़े वर्ग ओबीसी और दूसरे बड़े वर्ग आदिवासियों के मुद्दे पर मचे हंगामे का जबाब सत्ताधारी बीजेपी ने उसी अंदाज में दिया।
सदन में शोर शराबे और हंगामे के बीच सरकार ने अनुपूरक बजट और दो संशोधन विधेयक पास करा लिया। वैसे इस बार विधानसभा में चर्चा तो प्रदेश में बाढ़, जहरीली शराब से मौत, दलित अत्याचार पर होनी थी, लेकिन आदिवासी दिवस और ओबीसी आरक्षण के मुद्दे पर मचे हंगामे ने बाकी सारे मुद्दों को गौण कर दिया। दूसरे दिन सत्र की शुरुआत में महंगाई के मुद्दे पर विपक्ष ने सरकार को जमकर घेरा। प्रश्नकाल के दौरान पेट्रोल-डीजल के दामों को लेकर पूछे गए सवाल पर चर्चा के दौरान नेता प्रतिपक्ष कमलनाथ ने ये मुद्दा उठाया। इसको लेकर सदन में हंगामा तब शुरू हो गया, जब वित्त मंत्री जगदीश देवड़ा ने ये कहा कि पेट्रोल-डीजल के दाम कमलनाथ सरकार के समय बढ़े थे। इसके बाद कोरोना से जुड़े जरूरी सवाल आने से पहले प्रश्नकाल की कार्यवाही स्थगित कर दी गई, विधानसभा की कार्यवाही फिर शुरू होते ही ओबीसी आरक्षण पर मचे हंगामे ने पूरे विधानसभा सत्र को ही खत्म कर दिया।
वैसे तो विधानसभा का मानसून सत्र 12 अगस्त तक प्रस्तावित था, लेकिन सत्र के दो दिनों में जो कुछ घटा। उसे देखकर ये कहना गलत नहीं होगा कि बीजेपी और कांग्रेस ने प्रदेश की 47 आदिवासी बाहुल्य विधानसभा सीट और ओबीसी की 52 फीसदी आबादी को लेकर अभी से 2023 के चुनाव की नींव तैयार कर ली है। कांग्रेस जहां इन मुद्दों को सदन से बाहर सड़क पर ले जाने की तैयारी में है, तो बीजेपी सरकार कोर्ट के जरिये खुद को इस वर्ग का सबसे बड़ा हितेषी बताते हुए कांग्रेस के खिलाफ काउंटर अटैक की तैयार कर रही है। लेकिन सियासी दांवपेच के बीच बड़ा सवाल ये है कि ऐसे सत्र से जनता का क्या फायदा हो रहा है?
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