Who is responsible for the Hathras satsang incident?

The Big Picture With RKM: हाथरस में हाहाकार! 121 लोगों की मौत जिम्मेदार कौन, आखिर कब सबक लेगा प्रशासन?

हाथरस में हाहाकार! 121 लोगों की मौत जिम्मेदार कौन? Who is responsible for the Hathras satsang incident? Read

Edited By :   Modified Date:  July 4, 2024 / 12:58 AM IST, Published Date : July 4, 2024/12:58 am IST

रायपुरः Hathras satsang incident उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले में नारायण साकार हरि भोले बाबा के सत्संग के दौरान मंगलवार को भगदड़ मचने से 121 लोगों की मौत हो गई। इनमें ज्यादातर महिलाएं और बच्चे हैं। कई लोग अभी भी  घायल हैं, जिनका इलाज चल रहा है। सीएम योगी खुद मौके पर पहुंचे और घटना के संबंध में जानकारी ली। दिनभर जांच, दौरे और अन्य गतिविधियां होती रही। विपक्षी नेताओं ने इसे लेकर सरकार को घेरने की कोशिश की। इन सबके बीच सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर इस हादसे का जिम्मेदार कौन है? क्या इस हादसे के बाद प्रशासन सबक लेगी कि आने वाले दिनों में ऐसी घटना ना हो?

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Hathras satsang incident हाथरस में हुए हादसे को लेकर मोटे तौर पर दो बातें कही जा सकती है पहली बात तो यह है कि ऐसी जगहों पर वे लोग जाते हैं, जिनके जीवन अंधकार होता है। वे इसे हटाने के लिए रोशनी ढूंढने के लिए जाते हैं या फिर वे किसी चमत्कार की आशा से जाते हैं। इसे हिंदी के मशहूर लेखक हरिशंकर परसाई जी की टार्च बेचने वाले कहानी के जरिए समझा जा सकता है। कहानी में दो दोस्त एक चौराहे पर टॉर्च बेचते थे। एक दिन एक दोस्त को कुछ अनंत ज्ञान की प्राप्ति हुई और वह वहां से यह कहकर चला गया कि 5 साल बाद हम दोनों फिर से मिलेंगे तो देखना कि मैं कहां रहूंगा और तू कहां रहेगा? इसके बाद एक दोस्त तो टॉर्च बेचता रहा। अब एक दिन वह टॉर्च बेचने के बाद अपने घर जा रहा था तो उसने देखा कि एक मैदान में बहुत बड़ा आयोजन हो रहा है। वह अंदर जाकर देखा कि मंच पर एक लंबी दाढ़ी वाले संत बैठे हैं और बड़ी संख्या में लोग वहां उनका प्रवचन सुन रहे हैं। उसे लगा तो सही कि इसे मैंने कहीं देखा हुआ है, लेकिन वह चुपाचाप बैठकर उसकी बात सुनने लगा। मंच पर मौजूद संत बता रहे थे कि देखिए आपके जीवन में जो इतना अंधकार है, उसमें रोशनी और प्रकाश आप कर सकते हैं। जिस तरह से आजकल साधू-बाबा कर रहे हैं, ठीक वैसे ही वे संत कर रहे थे। प्रवचन के बाद वह संत जब कार से वापस जाने लगा तो टॉर्च बेचने वाले लड़के की उनसे मुलाकात हुई। बातचीत के बाद दोनों मिल गए। टॉर्च  बेचने वाले दोस्त ने संत बने दोस्त से कहा कि यार तुम ये ऐसे कैसे टॉर्च बेचने लग गए। दूसरे ने कहा कि मैं टॉर्च नहीं बेचता हूं। पहले दोस्त ने कहा कि तू टॉर्च ही बेच रहा है, मैं सीधी-सीधी बात बोलता हूं कि भाई अगर आप अंधेरे में हैं, आप रोशनी के लिए मेरी टॉर्च जलाइए। तू भी यही बात बोल रहा है। फर्क सिर्फ इतना है कि तुम घुमा-फिरा के कहते हो और मैं अपनी बात सीधी-सीधी कहता हूं। संत बने दोस्त ने कहा कि मैं अध्यात्म की टॉर्च बेचता हूं, लेकिन अब वह हाथ में पकड़ने वाली प्रोडक्ट नहीं है। मैं लोगों में अपने बोलने की शक्ति से अंदरूनी ज्ञान जगाता हूं और उनको एक आध्यात्मिक टॉर्च में दे देता हूं। कुछ इसी तरह का परिदृश्य आज भी देखने को मिलता है। सारे बाबा यही करते हैं। मैं यह कहना चाहता हूं कि भैया चमत्कार आप खुद भी कर सकते हैं। हाल में वर्ल्ड कप का फाइनल मुकाबला इसका उदाहरण है। एक समय सबको यही लग रहा था कि अब कोई चमत्कार हमें विश्व विजेता बना सकता है। मैदान पर मौजूद भारतीय खिलाड़ियों ने मेहनत और रणनीति रूपी चमत्कार किया। सूर्यकुमार यादव ने मिलर का कैच लिया तो सबने कहा कि देखो यह चमत्कार हो गया। दुनिया में कोई व्यक्ति दूसरे में जीवन चमत्कार नहीं कर सकता है। चमत्कार और जीवन में रोशनी करने का दावा करने वाले बाबा केवल बेवकूफ बनाते हैं। ये चमत्कार खुद को करना होता है, बस उसका आत्मबोध होना चाहिए। भले ही यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यानाथ ने हाथरस मामले को लेकर हर तरह की जांच कराने का आदेश दिया हो, लेकिन इन साधु संतों के आयोजन में भीड़ लगनी ही लगनी है और अगर भीड़ में कुछ गड़बड़ हो गई तो कोई प्रशासन, कोई मुख्यमंत्री नहीं बचा सकता है।

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नहीं होता नियमों का सख्ती से पालन

इस तरह के आयोजन को लेकर नियम तो बने हुए हैं, लेकिन उसका सख्ती से पालन नहीं होता है। छत्तीसगढ़ की बात करें तो अप्रैल 2022 से इस तरह के आयोजनों को लेकर नियम बना हुआ हैं। यह नियम केवल साधु-संतों के लिए नहीं हैं, बल्कि आम आदमी और राजनीतिक दलों के लिए भी है। प्रशासन की ओर से एक फॉर्मेट में फार्म दिया जाता है, जिसमें आयोजन करने वाले संस्था का नाम, प्रदर्शन का स्वरूप और दिनांक को शामिल करना होता है। इसके अलावा आयोजन या फिर प्रदर्शन में शामिल होने वाले व्यक्तियों की अनुमानित संख्या और वे लोग कहां और कौन से साधन से आएंगे, इसकी जानकारी देनी होती है। जिस फार्म में ये जानकारी भरकर दी जाती है, उसमें कुल 19 शर्ते भी लिखी होती है, लेकिन इन शर्तों का पालन नहीं होता है। इसके कई उदाहरण देखें जा सकते हैं। हाल में सरकार की ओर से पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री और पंडित प्रदीप मिश्रा की कथा के लिए परमिशन दी गई थी। परमिशन लेटर में केवल जनरल शर्तों का जिक्र किया गया था। उसमें कहीं ऐसा नहीं लिखा गया था कि अनुमानित संख्या से ज्यादा लोग आ गए तो आप क्या करेंगे? प्रशासन क्या करेगा? अगर कोई आपात स्थिति बन जाती है तो क्या कदम उठाए जाएंगे? क्या मेडिकल सेंटर, एंबुलेंस जैसी व्यवस्था की गई है? हाथरस में कुछ ऐसा ही हुआ। आयोजकों ने जितनी संख्या में लोगों के शामिल होने की परमिशन मांगी थी, उससे ज्यादा लोग आ गए। दावा किया गया है कि 50 हजार लोगों की परमिशन थी, लेकिन ढाई लाख लोग पहुंच गए। प्रशासन अगर पूरी मुस्तैदी भी कर लें तो केवल पांच प्रतिशत ही फोर्स वहां पर भेजेगा। लेकिन प्रशासन के पास तो भी जवानों की कमी है। ऐसे में वॉलिटियर्स लोगों की सहायता ली जाती है। इस तरह के बड़े आयोजनों के लिए शर्तों के साथ परमिशन तो दी जाती है, लेकिन कोई जिम्मेदार अधिकारी मौके पर जाकर निरीक्षण नहीं करते हैं। मैंने इसके लिए आयोजकों से भी बात की, उन्होंने जवाब दिया कि प्रशासन चेक नहीं करता है। मैंने खुद भी देखा हैं कि बड़े आयोजनों में एंबुलेंस या अन्य व्यवस्थाएं नहीं रहती है। कुल मिलाकर बात यह है कि अंधकार के लिए रोशनी ढूंढनी है तो आप उसके लिए खुद सक्षम है। अपने जीवन में चमत्कार आप खुद कर सकते हैं।

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121 लोगों की मौत एक शर्मनाक घटना

अगर आप चमत्कार पाने के लिए ऐसे स्थलों पर जाएंगे तो भीड़ जुटेगी और किसी भी प्रकार की आपात स्थिति बनी तो कोई भी सरकार या प्रशासन कुछ नहीं कर पाएगी और हाथरस जैसी घटनाओं की पुनरावृत्ति फिर से होगी। क्योंकि प्रशासन इस चीज के लिए सक्षम ही नहीं है। अगर किसी आयोजक ने 50 हजार या एक लाख लोगों की अनुमति मांगी है और वहां पर 2 लाख पहुंच जाएं तो कोई ऐसी व्यवस्था प्रशासन नहीं करता कि हाथरस घटना जैसी स्थिति से निपटा जा सके। चूंकि इस तरह के आयोजनों में शामिल होने वाले लोग दो पहिया या चार पहिया वाहनों के जरिए आते हैं। रास्ता जाम हो जाता है। हाथरस में ऐसा ही हुआ। वहां पर तीन किलोमीटर तक जाम लग गया और एंबुलेंस घटनास्थल तक पहुंच ही नहीं पाई। प्रशासन को इस तरह के आयोजन के लिए मुस्तैद रहना चाहिए। हाथरस में 121 लोगों की मौत बहुत ही शर्मनाक है। हमें आत्मचिंतन करना होगा कि क्या इस तरीके आयोजन में जाना चाहिए? आप ये मान के चलिए कि इसको आगे भी कोई नहीं रोक पाएगा। लोगों को इन सबके चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए। अपने कर्म में ज्यादा विश्वास रखना चाहिए।

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