Shahdol Lok Sabha: देश में लोकसभा चुनाव का बिगुल बच चुका है। आज यानि 20 मार्च बुधवार से पहले चरण के लिए नामांकन की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। संसदीय क्षेत्र शहडोल लोकसभा से भाजपा द्वारा अधिकृत प्रत्याशी हिमाद्री सिंह द्वारा बुधवार को अपना नामांकन फार्म जमा कर दिया है। पहले चरण में एमपी की 6 और छत्तीसगढ़ की एक सीटों के साथ देश की की 102 सीटों पर चुनाव होना है। ऐसे में सभी राजनीतिक पार्टियां अपनी जमीन मजबूत करने में जुटी हुई हैं। शहडोल लोकसभा सीट का सियासी सफर कैसा रहा है हम आपको इस लेख में बताएंगे।
शहडोल लोकसभा सीट में आधे से अधिक आदिवासी मतदाता हैं। सुरक्षित शहडोल लोकसभा सीट ऐतिहासिक रूप से भी महत्वपूर्ण रही है। शहडोल कभी रीवा रियासत के अधीन था। ब्रिटिश साम्राज्य के दौरान भी शहडोल, उमरिया और अनूपपुर क्षेत्र में राज परिवारों का वर्चस्व रहा है। वर्ष 1977 के बाद शहडोल लोकसभा क्षेत्र की राजनीति तीन नेताओं-परिवारों से संचालित होती रही है।
इस अपेक्षाकृत पिछड़े इलाके में स्वतंत्रता के बाद से सत्ता की चाबी सीमित जनप्रतिनिधियों और परिवार तक सिमट कर ही रही।शहडोल लोकसभा में 46 वर्षों में 13 बार लोकसभा चुनाव हुए, जिसमें सबसे ज्यादा पांच बार दलपत सिंह परस्ते अलग-अलग पार्टियों के टिकट पर जीतकर लोकसभा पहुंचे। कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री दलबीर सिंह तीन बार सांसद बने, जबकि उनकी पत्नी राजेश नंदिनी सिंह एक बार कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा चुनाव जीतकर परिवार का परचम लहराया। वहीं भाजपा के ज्ञान सिंह भी यहां से दो बार सांसद रह चुके हैं। वर्तमान समय की बात करें तो दलबीर सिंह और राजेश नंदिनी की पुत्री हिमाद्री सिंह भाजपा से यहां की सांसद हैं।
भारतीय जनता पार्टी ने लोकसभा चुनाव 2024 के लिए प्रत्याशियों की सूची जारी की है, जिसमें शहडोल संसदीय क्षेत्र से वर्तमान सांसद हिमाद्री सिंह को लगातार दूसरी बार टिकट दिया गया है। शहडोल से अभी तक कांग्रेस ने 2024 के लिए अपने प्रत्याशी का ऐलान नहीं किया है।
वर्ष 2019 के चुनाव में भाजपा ने कांग्रेस के कद्दावर नेता दलबीर सिंह की बेटी हिमाद्री सिंह को कांग्रेस से लाकर भाजपा से टिकट देकर मैदान में उतारा और हिमाद्री सिंह ने शानदार जीत दर्ज की थी। 2019 में बीजेपी प्रत्याशी हिमाद्रि सिंह को 747,977 वोट मिले थे, जोकि कुल मतदान का 61.42 फीसदी थे। वहीं कांग्रेस प्रत्याशी प्रमिला सिंह को 344,644 वोट मिले थे जोकि 28.3 फीसदी थे। वहीं तीसरे नंबर पर बहन केशकली कोल रही थी जो कि सीपीआई की प्रत्याशी थी उन्हे 33,695 वोट मिले थे जो कि 2.77 फीसदी थे।
शहडोल लोकसभा ने हमेशा उन जनप्रतिनिधियों का चयन किया, जिनमें मतदाताओं को संभावना नजर आई। समाजवादी विचारधारा रखने वाले नेताओं ने भी इस सीट से जीत हासिल की, तो कांग्रेस ने भी लंबे समय तक शहडोल में अपना दबदबा रखा। शहडोल के मतदाता नेताओं को सबक सिखाने में भी पीछे नहीं रहे। दलबीर सिंह और अजीत जोगी जैसे कद्दावर नेताओं को भी यहां हार का मुंह देखना पड़ा। यहीं से केंद्रीय राज्य मंत्री की कुर्सी तक पहुंचे दलबीर सिंह को इसी सीट ने राजनीति के हाशिये पर पहुंचा दिया, तो अजीत जोगी को आखिरकार छत्तीसगढ़ का रुख करना पड़ा। हालाकि यहां आकर अजीत जोगी छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भी बने।
इस बीच शहडोल लोकसभा में कांग्रेस ने बीच में कई प्रयोग किए, लेकिन हर बार शहडोल के मतदाताओं ने नकार दिया। कांग्रेस से वर्ष 1977 में धनशाह, वर्ष 1980 में कुंदन शाह, वर्ष 1991 में हेमवंत पोर्ते, वर्ष 1999 में अजीत जोगी और वर्ष 2019 में प्रमिला सिंह ने चुनाव लड़ा, लेकिन किसी को सफलता नहीं मिली।
शहडोल की राजनीति में परिवारों के वर्चस्व की लड़ाई में कई अनूठे संयोग भी बने। भाजपा ने वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में नए चेहरे नरेंद्र सिंह मरावी को अवसर दिया। उन चेहरों से परहेज किया जो समय-समय पर सांसद या प्रत्याशी बनते रहे हैं। वर्ष 2009 के चुनाव में नरेंद्र सिंह मरावी के सामने हिमाद्री सिंह की मां राजेश नंदिनी सिंह कांग्रेस की उम्मीदवार थीं। उन्होंने नरेंद्र सिंह मरावी को हरा दिया। बाद में संयोग कुछ ऐसा बना कि नरेंद्र सिंह मरावी का विवाह हिमाद्री से हो गया और वे राजेश नंदिनी के दामाद बन गए। नरेंद्र सिंह मरावी वर्तमान सांसद हिमाद्री सिंह के पति हैं।
कांग्रेस ने साल 2019 में हिमाद्री सिंह को शहडोल से टिकट देने का मन बना चुकी थी, लेकिन उनके सामने शर्त रख दी कि वह पति नरेंद्र सिंह मरावी को पार्टी में शामिल कराएं। लेकिन हिमाद्री सिंह ऐसा करने के लिए तैयार नहीं हुईं। अंतत: उन्होंने कांग्रेस को छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया। भाजपा ने हिमाद्री सिंह को टिकट दिया। हिमाद्री को भाजपा ने इसलिए पार्टी में शामिल कराया था कि वे अपने गृह क्षेत्र पुष्पराजगढ़ में कांग्रेस का सफाया कर देंगी लेकिन ऐसा नहीं हो पाया है। विधानसभा चुनाव में अनूपपुर जिले के तीन विधानसभा क्षेत्रों में से दो में भाजपा की बड़ी जीत हुई लेकिन पुष्पराजगढ़ विधानसभा से कांग्रेस के ही फुंदेलाल सिंह मार्को तीसरी बार लगातार विधायक चुने गए।
शहडोल लोकसभा का रोचक मुकाबला जब सामने आया जब वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने कांग्रेस के कद्दावर नेता दलबीर सिंह की बेटी हिमाद्री सिंह को मैदान में उतारा, वहीं कांग्रेस ने भाजपा की बागी नेत्री प्रमिला सिंह को अपना उम्मीदवार बना दिया। हालाकि इसमें मोदी लहर ने कमाल किया और हिमाद्री चुनाव बड़े अंतर से जीत गईं।
शहडोल में वर्ष 1971 का लोकसभा चुनाव भी बड़ा उलटफेर वाला रहा। रीवा राजघराने के पूर्व महाराजा मार्तंड सिंह के समर्थन से निर्दलीय उम्मीदवार धनशाह प्रधान ने चुनावी जंग जीत ली थी। उस समय कांग्रेस और भाजपा समेत बड़े राजनीतिक दलों के लिए यह बड़ा झटका था।
शहडोल क्षेत्र में वर्ष 1952 से 1962 तक समाजवादी विचारधारा के प्रत्याशियों का बोलबाला रहा। सात में से पांच विधानसभा सीटें लंबे समय तक इसी विचारधारा वाले जनप्रतिनिधियों के पास रहीं। वर्ष 1962 के बाद कांग्रेस ने यहां अपनी पकड़ मजबूत की। भाजपा यहां पर लंबे समय तक जीत से वंचित रही। लेकिन वर्ष 1996 में अटल बिहारी वाजवेयी के चमत्कारिक व्यक्तित्व के समय भाजपा ने कांग्रेस का किला ढहा दिया। हालांकि, वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की राजेश नंदिनी सिंह ने भाजपा उम्मीदवार को हरा दिया और एक बार फिर सीट कांग्रेस के कब्जे में चली गई।
कुल मतदाता-17,12,640
पुरुष मतदाता-8,72,872
महिला मतदाता-8,39,738
थर्ड जेंडर-30
शहडोल लोकसभा सीट में आठ विधानसभा क्षेत्र – जयसिंहनगर, जैतपुर, मानपुर, बांधवगढ़, अनूपपुर, कोतमा, पुष्पराजगढ़, बड़वारा शामिल हैं।