रायपुरः Politics Started with Mujra in Country लोकसभा चुनाव 2024 अब अपने अंतिम पड़ाव की ओर बढ़ गया है। अब तक छह चरणों में देश के 90 प्रतिशत सीटों पर वोट डाले जा चुके हैं। सातवें चरण में आठ राज्यों की 57 सीटों पर एक जून को वोटिंग होगी। इस पूरे चुनाव के दौरान हमने हर चरण में नए-नए शब्द सुने हैं। सातवें चरण के आते-आते नेताओं ने बयानों की सीमा को पार कर दी। लग रहा है कि इस बार नेताओं की बदजुबानी का नया रिकार्ड बनेगा। मंगलसूत्र, मटन, मुसलमान के बाद अब बात मुजरा तक पहुंच गई है। मुजरे पर महाभारत से आखिर किसकी बनेगी बात? आइए समझते हैं..
Politics Started with Mujra in Country जब चुनावों की घोषणा होती है तो इलेक्शन कमीशन एक बहुत बड़ी प्रेस कॉन्फ्रेंस करता है और उस प्रेस कॉन्फ्रेंस में चुनावों की तारीखों की घोषणा तो होती है। साथ में यह भी बताता है कि नेताओं, पार्टियों, सरकारों और मीडिया को किस तरीके का आचरण चुनावों में करना चाहिए। यहां तक कि वह नेताओं के प्रचार में आचरण कैसा हो? भाषा कैसी हो? इस बात को लेकर भी गाइडलाइन जारी करता है। आयोग की यह अपेक्षा रहती है कि चुनाव प्रचार के दौरान नेता हमेशा जनहित और देशहित में बात करें। नेता जनता के सामने एक ऐसा एजेंडा रखें जिसको देखकर, समझकर जनता वोट देने आए और एक मन बनाए अपना कि हमें इस पार्टी को वोट देना चाहिए। क्योंकि वह हमारे हित में यह काम करने जा रहा है या हमारे देश के हित में यह करने जा रहा है। एक ये आदर्श स्थिति इलेक्शन कमीशन बताता है, लेकिन जैसे ही चुनाव प्रचार शुरू होता है, सब कुछ उलट-पुलट जाता है। इसके ताजा उदाहरण की बात करें तो पीएम मोदी ने बिहार में एक अपने चुनाव प्रचार के दौरान कहा कि यह मुजरा करने वाला विपक्ष है। ये लोग लालटेन लेकर अपने वोट बैंक के लिए मुजरा करते हैं। उनके इस मुजरा वाले कटाक्ष पर सियासत शुरू हो गई। विपक्ष हल्ला कर रहा है कि मोदी को अपनी मर्यादा का ध्यान रखना चाहिए। वे देश के प्रधानमंत्री के पद पर हैं। उनको इस तरह की भाषा का उपयोग नहीं करना चाहिए। लेकिन आपको याद होगा कि पीएम मोदी एक बार कह चुके हैं कि जब 5 साल का शासन मुझे मिलता है तो साढ़े चार साल मैं शासन करता हूं और छ महीने चुनाव के लिए मैं प्योर पॉलिटिक्स करता हूं और अब हम देख ही रहे हैं कि किस तरह की स्थिति है। उनको भी कोई परहेज नहीं है। वे मंगलसूत्र मटन से शुरू हुए थे और अब मुजरा तक आ गए हैं।
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अब बात कर लेते हैं विपक्ष की तो उनके ऊपर उंगली उठाने वाले नेता भी कोई दूध से धुले नहीं है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी अपनी सभाओं में पत्रकारों को चमचा कह रहे हैं। राहुल गांधी की ये भाषा भी ठीक नहीं है। भई अगर प्रधानमंत्री का इंटरव्यू पत्रकारों ने किया है तो उसमें कोई गलत नहीं है। जहां तक मुझे याद है कि पीएम मोदी ने लगभग 60 से 70 इंटरव्यू अभी तक दे चुके हैं और हर तरीके के मीडिया को दिया है। हालांकि यह आकंड़ा कम-ज्यादा हो सकता है। वैसे तो मीडिया में कोई पक्ष-विपक्ष नहीं होना चाहिए, लेकिन आज के दौर के नैरेटिव के हिसाब के उन मीडिया संस्थानों को उन्होंने साक्षात्कार दिया है, जो पक्ष में हैं। उस तरह के मीडिया को भी दिया है, जो उनके खिलाफ बोलते हैं। उनसे हर तरीके के सवाल पूछे गए हैं। वो सवाल भी पूछे गए हैं, जो कि राहुल गांधी अपने मंच से उठा रहे हैं। उनसे बेरोजगारी महंगाई, सांप्रदायिकता, अडानी-अंबानी से उनके रिश्तों या फिर हिंदू-मुसलमान सहित सभी तरह के सवाल उनसे दागे गए हैं। यदि मोदी साक्षात्कार दे रहे हैं तो उसमें आप पत्रकारों की गलती मान रहे हैं।
यदि राहुल गांधी की बात करें तो इस पूरे चुनाव में राहुल गांधी ने एक भी इंटरव्यू पत्रकारों को नहीं दिया है, लेकिन कांग्रेस समेत विपक्ष के नेता हमेशा ये सवाल उठाते रहे हैं कि पीएम मोदी पत्रकारों को इंटरव्यू नहीं देते हैं। पीएम मोदी ने अपने साक्षात्कारों में हर मुद्दों पर बात की। इसमें आप पत्रकारों को क्यों कटघरे में खड़ा कर रहे हैं। उनको चमचा-चमची कहने का आपको हक किसने दिया? पत्रकारों का काम है सवाल पूछने का तो उसने सारे सवाल पूछे। कुल मिलाकर यह कहे कि हर तरफ से यानि पक्ष और विपक्ष की तरफ से इस तरह की भाषा का प्रयोग किया जा रहा है। यह बिल्कुल भी उचित नहीं है। क्या राहुल गांधी की मर्यादा नहीं है कि वो किसी भी पत्रकार को चमचा-चमची कहे? पत्रकार तो न्यूट्रल है, वह सबकी सवाल पूछ रहा है। वो कहते हैं ना कि एवरीथिंग फेयर इज इन लव एंड वॉर तो ये लव तो हो नहीं रहा है। भले ही राहुल गांधी ने कहा था कि वो मोहब्बत की दुकान खोलेंगे। ये तो सियासी लड़ाई है, जिसमें नेता हर तरीके के हथकंडे अपना रहे हैं। लेकिन अंत में मेरा यह कहना है कि नेताओं को मर्यादा का ख्याल रखना चाहिए। उन्हें एक आदर्श उच्च आदर्श स्थापित करना चाहिए, क्योंकि राजनीति में वैसे ही अच्छे लोग नहीं आते हैं। युवा नहीं आते हैं। यदि एक नेता उच्च आदर्श प्रस्तुत करेंगे तो युवा मोटिवेट होंगे और राजनीति में हमें अच्छे लोग मिल सकेंगे।