Bhind Lok Sabha Election 2024

Bhind Lok Sabha Election 2024: भिंड में क्या फिर से खिलेगा कमल का फूल? या मजबूत होगा फूल सिंह बरैया का ‘हाथ’? जानें ताजा समीकरण

Bhind Lok Sabha Election 2024: भिंड में क्या फिर से खिलेगा कमल का फूल? या मजबूत होगा फूल सिंह बरैया का ‘हाथ’? जानें ताजा समीकरण

Edited By :   Modified Date:  May 5, 2024 / 07:25 PM IST, Published Date : May 5, 2024/7:25 pm IST

Bhind Lok Sabha Election 2024: भिंड। देश भर में लोकसभा चुनाव का माहौल बना हुआ है। दो चरणों पर मतदान हो चूका हैं और तीसरे चरण के लिए 7 मई को मतदान होना है। बता दें कि 7 मई को आम चुनाव के लिए तीसरे चरण की वोटिंग होगी, जिसमें 12 राज्यों के 94 लोकसभा क्षेत्रों में वोट डाले जाएंगे। वहीं मध्य प्रदेश की बात करें तो यहां 8 लोकसभा सीटों पर मतदान होंगे। जिनमें मुरैना, भिंड, ग्वालियर, गुना, सागर, विदिशा, भोपाल और राजगढ़ है। जानकारी मुताबिक बीजेपी 2019 में 28 सीटें जीतने के बाद इस बार 29 सीट के लिए प्लान बना रही है। तो वहीं विधानसभा की रिकवरी के लिए कांग्रेस ने पूरा जोर लगा दिया है। चलिए समझते हैं भिंड लोकसभा सीट का क्या है समीकरण और उसका इतिहास…

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भिंड लोकसभा सीट का इतिहास

कांग्रेस ने पहली बार इस सीट पर 1980 जीत दर्ज की थी। इसके बाद एक बार फिर से कांग्रेस के कृष्ण सिंह जुदेव ने 1984 में जीत दर्ज की थी। इस बार उन्होंने भाजपा की राजकुमारी वसुंधरा राजे को मात देकर जीत दर्ज की थी। इसके बाद नसुंधरा कभी भी मध्य प्रदेश वापस लौट कर नहीं आई। वहीं, 1989 के बाद भाजपा यहां से लगातार जीत हासिल करती आ रही है। जानकारी के मुताबिक भिंड लोकसभा सीट पिछले 35 वर्षों से भाजपा का अभेद्य किला बना हुआ है। यहां 1989 के बाद भाजपा कभी नहीं हारी। वहीं कांग्रेस को इस सीट पर हमेशा दूसरे स्थान रहा। यानी कांग्रेस यहां मुख्य विपक्षी दल तो है, लेकिन जीत पाने में लगातार नाकाम रही है। इस सीट से भाजपा के संस्थापक सदस्यों में से एक विजयाराजे सिंधिया 1971 में लोकसभा के लिए निर्वाचित हुई थी। लेकिन, 1984 में कांग्रेस की लहर में उनकी बेटी वसुंघरा हार गई थी। लेकिन, 1989 के बाद से लगातार यहां से भाजपा को मिल रही जीत को देखते हुए ये कहा जा सकता है कि यहां भाजपा का पलड़ा भारी है।

वैसे तो समय-समय पर कांग्रेस ने प्रयास तो किए हैं लेकिन चुनाव मैदान में जातिगत समीकरणों के आधार पर प्रत्याशी धराशाई हुए हैं। इस बार समीकरण कुछ बदलते नजर आ रहे हैं क्योंकि संध्या राय का 5 साल का कार्यकाल के दौरान भिंड जिले में कोई बड़े विकास कार्य नहीं हुए। कार्यकाल में कम आना-जाना रहा है। इस बार कांग्रेस भी पूरी दम लगा रही है, उसके साथ ही कांग्रेस के प्रत्याशी इस इलाके के रहने वाले हैं। इसका बड़ा फायदा मिल रहा है। आरक्षित सीट होने की वजह से लोगों के दिलचस्पी कम हैं।

प्रचंड हार के बाद फिर MP नहीं लौटी वसुंधरा

वैसे बता दें कि शुरू से ही भिंड लोकसभा सीट बड़ा ही दिलचस्प सीट रहा है। यहां कांग्रेस ने भले ही एंट्री की थी, लेकिन भाजपा ने यहां अपना जड़ जमाया। बताते चले कि इस सीट से जुड़ी एक रोचक बात ये है कि राजस्थान की सीएम रह चुकी वसुंधरा राजे ने 1984 में यहां से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा था, लेकिन वह इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस के फेवर में उपजी लहर में हार गई थी। राज परिवार के वसुंधरा को मात देने वाले कृष्ण सिंह जूदेव बेहद सामान्य पृष्ठभूमि से थे। उनकी खास बात ये थी कि वे चुनाव प्रचार में भावुक हो जाते थे। यही भावुकता उनके काम आई और वो चुनाव जीत गए।

आपको बता दें कि जूदेव को वसुंधरा के भाई माधवराव सिंधिया राजनीति में लेकर आए थे। इस सीट से कांग्रेस के इतिहास की बात करें तो कांग्रेस ने पहली बार इस सीट पर 1980 में जीत दर्ज की थी। इसके बाद एक बार फिर से कांग्रेस के कृष्ण सिंह जुदेव ने 1984 में जीत दर्ज की थी। इस बार उन्होंने भाजपा की राजकुमारी वसुंधरा राजे को मात देकर जीत दर्ज की थी। इसके बाद नसुंधरा कभी भी मध्य प्रदेश की राजनीति में वापस लौट कर नहीं आई। वहीं, 1989 के बाद भाजपा यहां से लगातार जीत हासिल करती आ रही है।

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भिंड लोकसभा सीट के चुनावी मुद्दे और समीकरण

इस रोचक सीट से 7 उम्मीदवार खड़े हो रहे हैं और यहां मतदान केंद्र 2183 है। वहीं इस सीट से बीजेपी उम्मीदवार संध्या राय और कांग्रेस उम्मीदवार फूलसिंह बरैया को चुनावी मैदान में उतारा गया है। वैसे इतिहास के अनुसार भिंड लोकसभा सीट में भले ही भाजपा का पलड़ा भारी हो लेकिन अब भी यहां आम लोगों के मुद्दे कम नहीं हैं। भाजपा के भारी पलड़ा के साथ यहां का मुद्दा भी उतना ही भारी है। चुनाव के दौरान यहां के लोकल मुद्दों पर ज्यादा फोकस दिया जा रहा है। जैसे बिजली, पानी, सड़क, शिक्षा और रोजगार एक बड़ा मुद्दा है। आम लोगों के अनुसार सड़क की बात करें तो भिंड ग्वालियर की एक रोड है जिसे लोग मौत की रोड बोलते हैं। यहां लाइन हाईवे की मांग कर रहे हैं जो अभी तक पूरी नहीं हुई है। और बताएं तो यहां युवाओं में बेरोजगारी का मुद्दा भी है। सालों से यहां भाजपा राज कर रही है लेकिन आम जनता के ये मुद्दे अब तक इनसे सुलझ नहीं सके हैं। इसमें सवाल अब ये उठता है कि क्या फिर से भाजपा आने के बाद इस बार आम जनता की समस्या का हल हो पाएगा? क्या बेरोजगार युवाओं को रोजगार की गारंटी देगी भाजपा?

भिंड का समझें जातीय समीकरण

Bhind Lok Sabha Election 2024: वहीं भिंड की जातीय समीकरण की बात करें तो यहां जाति का समीकरण अहम मायने रखते हैं। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार यहां पर करीब 3-3 लाख क्षत्रिय-ब्राह्मण वोट बैंक है। दलित वोट बैंक प्रतिशत के हिसाब से यहां पर सबसे ज्यादा यानी करीब साढ़े तीन लाख है। वोट बैंक में अन्य जातियों की बात की जाए तो आदिवासी और अल्पसंख्यक करीब साढ़े चार लाख और धाकड़, किरार, गुर्जर, कशवाह, रावत समाज करीब-करीब 3 लाख है। यहां पर जातिगत समीकरण ज्यादा मायनें नहीं रखते हैं क्योंकि इनका मिला जुला असर दिखाई देता है।

 

 

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