Crisis on small parties in MP, getting cleared in Lok Sabha elections

SarkarOnIBC24 : मध्यप्रदेश में छोटे दलों पर संकट, लोकसभा चुनाव में हो रहा सुपड़ा साफ, आखिर इससे किसे मिल रहा फायदा? देखें ये वीडियो

मध्यप्रदेश में छोटे दलों पर संकट, लोकसभा चुनाव में हो रहा सुपड़ा साफ, Crisis on small parties in MP, getting cleared in Lok Sabha elections

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Modified Date: March 24, 2024 / 12:24 AM IST
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Published Date: March 24, 2024 12:24 am IST

विवेक पटैया/भोपालः SarkarOnIBC24 मध्यप्रदेश को लोकतंत्र का आदर्श उदाहरण कहा जाए तो गलत नहीं होगा। मध्यप्रदेश में हमेशा से दो पार्टियों का वर्चस्व रहा है। प्रदेश की जनता ने कभी किसी तीसरी पार्टी को इतनी तवज्जो नहीं दी कि वो त्रिशंकू विधानसभा की स्थिति पैदा कर दे और सरकार बनाने के लिए जोड़-तोड़ करना पड़े। मध्यप्रदेश में छोटे दलों और निर्दलीय प्रत्याशियों का जनाधार लगातार घट रहा है। मध्यप्रदेश की सियासत में इसके क्या मायने हैं, इस खबर के जरिए समझते हैं।

SarkarOnIBC24  मध्यप्रदेश की राजनीति में दो ही पार्टियों कांग्रेस और बीजेपी का दबदबा है। हालांकि विधानसभा चुनाव में छोटी पार्टियां दो- चार सीटें जीतकर अपनी मौजूदगी दर्ज कराती रही है, लेकिन जब बात आती है लोकसभा चुनाव की तो छोटे दल और निर्दलीय अपने वजूद के लिए संघर्ष करते नजर आते हैं। बीजेपी जहां इससे खुश है तो वहीं कांग्रेस टेंशन में है। आप सोच रहे होंगे की आखिर ऐसा क्यों है तो चलिए आपको समझाते हैं इसका सियासी गणित…

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कई पार्टियों का घटा वोट प्रतिशत

दरअसल 1996 के लोकसभा चुनाव में छोटी पार्टियों और निर्दलीय प्रत्याशियों का वोट प्रतिशत करीब 17.5 फीसदी था। 2019 में यह घटकर 4 फीसदी पर आ गया है। प्रदेश में बसपा, सपा और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी का मत प्रतिशत गिरा है। वहीं निर्दलीय उम्मीदवारों की बात करें तो उन्हें 2019 के लोकसभा चुनाव में 1.9 प्रतिशत वोट मिले थे। जबकि 2014 में ये प्रतिशत 1.8 फीसदी था। साफ है छोटी पार्टी और निर्दलीय प्रत्याशियों के लिए मध्यप्रदेश में अपनी जगह बनाना आसान नहीं है।

2019 में 80 दलों ने उतारे थे प्रत्याशी

MP में निर्दलीय समेत छोटे दलों का वोटिंग प्रतिशत 1996 में 17.57 फीसदी था जो 1998 में घटकर 3.35 फीसदी, 1999 में 2.54 फीसदी, 2004 में 6.29 प्रतिशत, 2009 में 6.70 प्रतिशत तो 2014 में 4.2 फीसदी और 2019 के लोकसभा चुनाव में ये 4.31 प्रतिशत ही रहा, जबकि इस लोकसभा चुनाव में 80 दलों ने अपने प्रत्याशी उतारे थे…

कई नेताओं ने थाम लिया दूसरे दलों का दाम

विधानसभा चुनाव के आंकड़ों पर नजर डाले तो साफ है कि हर चुनाव में 4 से 8 निर्दलीय उम्मीदवार जीतकर आए हैं, जिन्होंने बाद में दूसरे दलों का दामन थाम लिया। मध्यप्रदेश के निर्दलीय प्रत्याशियों को मिले वोट की तुलना अगर दूसरे राज्यों से करे तो चौंकाने वाली जानकारी सामने आती है। 2019 के लोकसभा चुनाव में तमिलनाडु में निर्दलीयों को सबसे ज्यादा 7.2 फीसदी वोट मिले थे, जबकि जम्मू-कश्मीर में 6% बिहार में 5.2% झारखंड- 4% असम में 4.2%, केरल- 4, महाराष्ट्र- 3.7 फीसदी, तेलंगाना- 3, गुजरात- 2.18 प्रतिशत तो मध्य प्रदेश में निर्दलीय को 1.9 फीसदी वोट ही मिला है।

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‘बीजेपी का फायदा तो कांग्रेस को घाटा’

जानकार बताते हैं कि मध्यप्रदेश में छोटे दलों के जनाधार के कम होने का फायदा बीजेपी को मिल रहा है। इन दलों का वोट बीजेपी में शिफ्ट हो रहा है, हालांकि बीजेपी और कांग्रेस इसका श्रेय मध्यप्रदेश के जागरूक नागरिकों को देते हैं, जो प्रदेश के विकास में राष्ट्रीय दलों की अहमियत समझते हैं। छोटे दलों और निर्दलीय प्रत्याशियों का घटता जनाधार बेशक कांग्रेस के लिए चिंता का सबब है, क्योंकि ये दल और निर्दलीय हमेशा से कांग्रेस का साथ देते आए हैं। प्रदेश की सियासत के इस ट्रेंड को देखते हुए इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि कहीं इस लोकसभा चुनाव में छोटे सियासी दलों का सुपड़ा ही साफ ना हो जाए।

 

 
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