Big Picture with RKM: रायपुर: न विकास पर, न जनकल्याण के मुद्दों पर और न ही महिला, युवा, किसानों के मुद्दे पर बल्कि झारखंड और महाराष्ट्र का विधानसभा चुनाव बटेंगे तो कटेंगे के नारे के इर्द-गिर्द ही सिमटकर रहा गया है। ये नारा यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने दिया था लेकिन यह नारा अब पूरे चुनाव की धुरी बन चुका है। इस नारे को लेकर मचे रार के पीछे की सियासत को समझने के लिए हमें पिछले दिनों हुए लोकसभा के चुनावों को समझना होगा। तब राहुल गांधी ने अपनी जनसभाओं में जाति जनगणना का राग अलापा था। (How much will the election results of states be affected by BJP’s election slogans?) राहुल गांधी ने अपनी सभाओं में दावा किया था कि जातीय जनगणना के आधार पर जिस जाति लोगों की संख्या जिस अनुपात में होगी उस अनुपात में उन्हें समाज और सियासत में हिस्सेदारी दी जाएगी। इसके साथ उन्होंने यह भी कहा था कि वह इसके लिए सुप्रीम कोर्ट के अधिकतम 50 आरक्षण के दायरे को भी पार कर जायेंगे। चुनावी नतीजों के बाद बीजेपी ने महसूस किया कि कांग्रेस के इस दावे का उन्हें नुकसान उठाना पड़ा। खासकर यूपी और महाराष्ट्र में भाजपा की सीटों में भारी गिरावट दर्ज की गई। ऐसे में अब भाजपा को लगता है कि, जातीय जनगणना के दावे से जो वोटबैंक उनसे दूर हुआ है वह बटेंगे तो कटेंगे के नारे से एकजुट होंगे और फिर से हिन्दू वोटरों को गोलबंद किया जा सकेगा। हालांकि योगी का यह नारा भारत नहीं बल्कि बांग्लादेश के संदर्भ में था जहाँ पिछले दिनों हुए तख्ता पलट के बाद हिन्दू अल्पसंख्यकों के खिलाफ नफरत देखी गई, उनपर और उनके प्रतीकों पर हमले हुए।
अब योगी के इस नारे को भाजपा ने हाथों हाथ ले लिया है। हर सभा में इसकी गूंज सुनी जा सकती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इसी से जुड़ा बयान देते हुए कहा है कि ‘एक रहोगे तो सेफ रहोगे।’ लेकिन दोनों नारों का आशय एक ही हैं।
कांग्रेस में हलचल
Big Picture with RKM: भाजपा के इस नारे ने कांग्रेस के चुनाव प्रचार को प्रभावित किया है। अब तक जो कांग्रेस महाराष्ट्र में जीत को लेकर पूरी तरह आश्वस्त नजर आ रही थी वह भी भाजपा के इस नारे के खिलाफ बयानबाजी करने लगे। अपनी सभा में एआईसीसी के चीफ मल्लिकार्जुन खरगे ने योगी आदित्यनाथ को सीधे निशाने पर लेते हुए उन्हें राजनीति के लिए ही अयोग्य बता दिया। लेकिन यहाँ मल्लिकार्जुन का बयान उन्हें उल्टा पड़ गया और हिन्दू समाज के संतों ने ही उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया। संतों ने एक सुर में मल्लिकार्जुन खरगे के दावे को ख़ारिज करते हुए कहा कि संत भी राजनीती कर सकते है।
नारों पर केंद्रित विधानसभा के चुनाव
अब सवाल उठता है कि आखिर किन वजहों से पूरा चुनाव इन नारों पर आकर टिक गया हैं? क्यों नेता बड़े मुद्दों को पीछे छोड़ नारों पर चुनाव लड़ रहे है? दरअसल कांग्रेस को पिछले दिनों हरियाणा में बड़ी हार का सामना करना पड़ा। (How much will the election results of states be affected by BJP’s election slogans?) कांग्रेस इस राज्य में अपनी जीत को लेकर आश्वस्त थी। लोकसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन ने महाराष्ट्र में शानदार प्रदर्शन किया था। अकेले कांग्रेस ने यहाँ से 13 सीटें हासिल की थी। ऐसे में उन्हें महाराष्ट्र की जीत का भी पूरा भरोसा था। लेकिन भाजपा के ‘बटेंगे तो कटेंगे’ या ‘एक है तो सेफ है’ जैसे नारों से कांग्रेस के आत्मविश्वास को धक्का पहुंचा है। इसलिए कांग्रेस की आक्रामकता की वजह यही है।
Big Picture with RKM: दूसरा बिंदु ये है कि महाराष्ट्र में चुनाव के पहले संभावना जताई जा रही थी कि यहां की राजनीति सियासी दलों में हुई टूटफूट पर केंद्रित रहेगी और इसे प्रभावित करेगी। लेकिन भाजपा के नारों ने इन चुनावों का रुख मोड़ दिया है।