Big Picture With RKM: रायपुर: अब लगता है कि झूठ, फरेब और मिलावट ही शुद्ध रह गया है। बाकी और कुछ भी शुद्ध नही रह गया है, यहां तक भगवान का प्रसाद भी नहीं। और वह प्रसाद भी किस भगवान का जिसका अपना इतिहास और पुरानी परम्परा है। तिरुपति के प्रसाद का इतिहास 300 साल पुराना है। इस प्रसाद के लिए विशेष रसोई होते हैं जहां 6 हजार ब्राह्मण रसोइये हर दिन 3 लाख लड्डू के प्रसाद बनाते है। (How can the purity of Prasad be maintained in India?) एक अनुमान के मुताबिक सिर्फ प्रसाद से ही मंदिर प्रबंधन को हर साल 500 करोड़ की कमाई होती है। हर लड्डू बेहद शुद्ध होता हैं और सन 1715 से इसकी शुद्धता बरकरार भी रही है। इसकी पवित्रता और शुद्धता का अंदाजा सिर्फ इस बात से लगाया जा सकता है कि बीते 300 सालों में सिर्फ छह बार ही इसके रेसिपी में बदलाव किया गया है। यह बदलाव भी समय के आधार पर किया गया ताकि इसकी पहुंच दूर-दूर और ज्यादा से ज्यादा लोगों तक सुनिश्चित किया जा सके। शुद्ध देसी घी से बनने वाले इन लड्डुओं के प्रसाद का स्वाद बेजोड़ होता हैं। इसमें सूखे मेवे के साथ बेसन का भी उपयोग किया जाता है। इतना ही नहीं इन लडुओं की सुगंध भी शानदार होती है और यही वजह है कि इन्हे दिव्य प्रसादम कहा जाता है। इस प्रसाद को घर बैठे दुनिया के किसी भी कोने में मंगाया जा सकता है। यह भारत जितना ही विदेशों में भी मशहूर है और बड़े पैमाने पर इन्हे विदेश भी भेजा जाता है।
अब हैरानी की बात यह है कि ऐसे दिव्य प्रसाद के साथ भी गड़बड़ी हो गई। लेकिन यह धोखा और गड़बड़ी सिर्फ प्रसाद के साथ नहीं बल्कि खुद भगवान और उनके भक्तों के साथ धोखा है। प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने दावा किया हैं कि उनकी सरकार की जांच में हैरान करने वाली रिपोर्ट सामने आई है। लड्डुओं के लिए इस्तेमाल होने वाले घी में मिलावट पाई गई हैं। इसके घी में जानवरों की चर्बी और मछली के तेल की मिलावट की गई है। इससे शाकाहार भक्तों को गहरा आघात लगा है। जैसे ही इस मिलावट का खुलासा हुआ सियासी और धार्मिक दोनों ही तरह के घमासान शुरू हो गए।
हम मानते हैं कि जिन्होंने भी इस कृत्य को अंजाम दिया वह निंदनीय है, घटिया कृत्य है। मजबूत तरीके से पूरे जीवन शाकाहार का निर्वहन करने वाले सनातनियों को यह प्रसाद खिलाकर उनका धर्म भ्रष्ट किया गया। (How can the purity of Prasad be maintained in India?) आपने उन्हें जानवरों की चर्बी वाला प्रसाद खिलाया है। यह सनातनियों के आस्था के साथ खिलवाड़ है, उन्हें चोट पहुंचाना है। यह भगवान के साथ उनके भक्तों क साथ भी धोखा है।
इस प्रसाद के ख्याति की बात करें तो ऐतिहासिक और पारम्परिक होने के साथ इसे जीआई टैग भी हासिल हो चुका है। इससे ही इस प्रसाद के वैभव को समझा जा सकता हैं कि अब दुनिया में कोई भी मठ-मंदिर इस प्रसाद की कॉपी नहीं कर सकते। ऐसे में मिलावट की ख़बरों से सीधे तौर पर लोगों के धार्मिक आस्था को गहरा धक्का पहुंचता है।
मिलावट के इस सनसनीखेज खुलासे के बाद अब दूसरे मंदिरों के प्रसाद भी संदिग्ध हो गए हैं, संदेह के घेरे में आ गए है। ऐसे में जो भक्त इन प्रसादो को ग्रहण करेगा उसके मन में इसे लेकर पहले से ही शक रहेगा कि कही ये अशुद्ध न हो, इनमें भी जानवरों की चर्बी न मिली हुई हो। बात मंदिर के भव्यता और पहचान की करें तो तिरुपति का यह मंदिर सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिलब्ध है। ऐसे में अब तिरुपति के प्रसाद के साथ मंदिर के पहचान को भी धक्का लगा है, दाग लगा है।
अब हमें इसे चेतावनी के तौर पर लेना चाहिए। सरकार को चाहिए कि एफएसएसएआई के द्वारा या अन्य संस्था की देखरेख में इन प्रसादो के लिए कड़े मानक तय किये जाये। समय -समय पर इनकी जांच हो। (How can the purity of Prasad be maintained in India?) इनका पूरा पैरामीटर तय हो। दूसरा की इन प्रसादो से होने वाली आय का अधिकाधिक खर्च इसकी शुद्धता को बनाये रहने और इसके निर्माण में आधुनिकता को अपनाने में किया जाना चाहिए।