Big Picture With RKM: रायपुर: संविधान हत्या दिवस को लेकर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह का ऐलान चौंकाने वाला था। इससे भी ज्यादा हैरान करने वाली बात यह थी कि उन्होंने इसकी जानकारी पूरी तैयारी से दी यानी गजट नोटिफिकेशन के साथ उन्होंने बताया कि उनकी सरकार ने हर साल के 25 जून को अब संविधान हत्या दिवस के तौर पर मनाने का फैसला किया है।
अब समझने वाली बात यह हैं कि संविधान को लेकर मची यह रार कितनी पुरानी है और क्यों है? दरअसल लोकसभा चुनाव से पहले जब भाजपा ने नारा दिया ‘अबकी बार 400 पार’ का तो कांग्रेस ने इसे भुना लिया। उन्होंने प्रचारित किया कि बीजेपी की यह 400 सीटें पाने की कोशिश कुछ और नहीं बल्कि संविधान को बदलने की कोशिश हैं। भाजपा प्रचंड बहुमत के साथ चुनाव जीतकर संविधान में बड़े बदलाव की नियत रखती है। कांग्रेस ने हर वर्ग के बीच इस बात को खूब प्रचारित किया। खासकर समाज के एससी, एसटी और ओबीसी के बीच। और संभवतः भाजपा को भी यह आभास हुआ कि इसे उन्हें खासा चुनावी नुकसान उठाना पड़ा है। जाहिर हैं कांग्रेस के प्रचार और इससे हुए नुकसान बीजेपी को बड़ा घाव दिया।
अब बात अगर फिर से संविधान की करें तो भाजपा के सत्ता में आने के बाद कई ऐसे मौके आएं जब आपातकाल और संविधान की चर्चा सत्ताधारी दल की तरफ से छेड़ी गई। इसका उदाहरण हम राष्ट्रपति के सम्बोधन से समझ सकते हैं जिसमें उन्होंने आपातकाल का जिक्र किया। इसी तरह स्पीकर नियुक्त होने के बाद खुद ओम बिरला ने आपातकाल पर निंदा प्रस्ताव लाया जो कि काफी चौंकाने वाला कदम था। इतना ही नहीं बल्कि भाजपा के सांसदों ने संसद में अपने भाषणों में आपातकाल को शामिल किया जबकि खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने स्पीच में लंबा समय इमरजेंसी का जिक्र करते हुए तमाम बातें कही। जाहिर हैं भाजपा ने योजना तैयार कर ली थी कि वह अब आपातकाल के मुद्दे पर मुखरता से काम करेगी। वह लोगों के बीच जाकर इसे प्रचारित करेगी और बताएगी कि किस तरह से कांग्रेस ने अपने दौर में मानवाधिकारों का उललंघन किया, आम जनों के अधिकारों को छीना, प्रेस की आजादी छीनी और नेताओं को जेल में ठूंस दिया गया।
Big Picture With RKM: अब जब सरकार ने यह बड़ा फैसला ले लिया हैं तो इस दिवस के ऐलान के पीछे की जो वजहें हैं उन्हें पांच बिन्दुओ में समझा जा सकता हैं। पहला कि अब सत्ताधारी भाजपा लोगों के बीच खुद को संविधान रक्षक के तौर पर पेश करना चाहती है। वह बताना चाहती हैं कि कांग्रेस ने आपातकाल लगाकर लोगों के अधिकार छीने, देश के संविधान को नुकसान पहुंचाया और वह उस दौर की याद में इस दिन को मनाने जा रही हैं। वह लोगों को आश्वस्त कराना चाहते हैं कि वह संविधान में किसी तरह का बदलाव नहीं करने वाला।
दूसरा कि सरकार की कोशिश यह बताने की भी हैं। वह 10 सालों तक सत्ता में रही लेकिन उन्होंने किसी भी तरीके से संविधान को नुकसान पहुंचाने की कोशिश नहीं की जबकि कांग्रेस ने इसकी हत्या की, इस संविधान को तार-तार किया।
बात करें तीसरी वजह कि तो चुनाव से लेकर लगातार और अबतक कांग्रेस के नेता राहुल गांधी और अखिलेश यादव के साथ दूसरे विपक्षी दल के नेता हाथों में संविधान लेकर भाजपा को संविधान विरोधी और खुद को पक्षधर बताने में जुटे हुए हैं। तो ऐसे में संविधान हत्या दिवस मनाना भी विपक्ष के इस प्रचार को काउंटर करने की ही एक कोशिश हैं।
चौथी जो वजह है वह वज़ह सबसे बड़ी है, अहम हैं। कांग्रेस सत्ताधारी दल भाजपा से भी ज्यादा हमलावर उनके नेता और प्रधानमंत्री नरेंद्र रही है, उनके फैसलों पर सवाल उठाती रही है। कांग्रेस समेत विपक्ष का आरोप हैं कि पीएम मोदी ने देशभर में अघोषित आपातकाल लागू कर दिया हैं। इसके लिए वे सरकारी एजेंसियों के दुरूपयोग का हवाला देते रहे हैं। उनका आरोप हैं कि पीएम विपक्ष के खिलाफ सीबीआई और ईडी जैसे जांच एजेंसियों का इस्तेमाल हथियार के तौर पर करते हैं, उन्हें परेशान करने के लिए करते हैं। इसके लिए वे विपक्षी नेताओं पर झूठे मुकदमे करते और उन्हें जेल में डालते हैं। तो इस दिवस के जरिये लोगों के सामने फिर से एक बार 25 जून 1975 यानि आपातकाल की यादें ताजा करना चाहती है। कांग्रेस को संविधान विरोधी के तौर पेश करना चाहती हैं।
Big Picture With RKM: पांचवी वजह संभवतः आरक्षण से जुड़ी हो सकती है ऐसा वह मानते हैं। इस चुनाव में एससी, एसटी और ओबीसी का बड़ा वर्ग भाजपा से छिटका हैं। खासकर इस वर्ग में आरक्षण के समीक्षा या इनमें बदलाव की आशंका ने इस वर्गों को प्रभावित किया। तो संविधान हत्या दिवस के तौर पर भाजपा की कोशिश इन वर्गों को भी संविधान की रक्षा और उसकी देखभाल के प्रति आश्वस्त करने की है।
अब सवाल उठता है संविधान को मुद्दा बनाये जाने की, सियासत के लिए इसे हथियार के तौर पर इसे इस्तेमाल किये जानें की। सवाल यह हैं कि, क्या यह आज के युवा मतदाता के लिए यह कदम प्रभावकारी होगा? क्या वह संविधान में बदलाव जैसे मुद्दों पर मतदान करेगा? और क्या नौकरी, रोजगार, महंगाई जैसे मुद्दे उसके लिए गौण हो जायेंगे? शायद नहीं। आपताकाल को पांच दशक यानी 50 साल बीत चुके हैं। उस दौर के मतदाताओं को छोड़ भी दिया जायें तो इसकी सम्भावना नगण्य हैं कि आज का युवा अपना वोट ऐसे मुद्दों से प्रभावित होकर करेगा।
इस मुद्दे के प्रभाव से जुड़ा दूसरा सवाल यह हैं कि, अब जब भाजपा ने संविधान को इतना बड़ा मुद्दा बना दिया हैं तो क्या आने वाला बजट सत्र भी इस मामले को लेकर पैदा होने वाले संभावित हंगामे की भेंट चढ़ जाएगा? क्या संविधान को लेकर मची लड़ाई के बीच जनता के मुद्दे पीछे छूट जायेंगे? तीसरा सवाल कि संविधान हत्या दिवस मनाने के ऐलान से क्या बीजेपी और सरकार कांग्रेस और उसके प्रचार को काउंटर कर पायेगी? शायद हाँ। इस दिवस के तौर पर सरकार ने अपने पास भी हथियार तैयार कर लिया है, अब वह संविधान से जुड़े सवालों पर जवाब दे पायेगी।
बहरहाल हम मानते हैं कि हर किसी को संविधान का सम्मान करना चाहिए। संविधान हमारी आत्मा हैं। इसका सम्मान ही असल लोकतंत्र का सम्मान लेकिन हम यह भी मानते हैं कि संविधान में समय, काल और परिस्थति के अनुसार बदलाव होते रहे हैं और होने चाहिए। संविधान में संशोधन हमेशा होते रहे हैं। 70 सालों पहले संविधान में तब की जरूरतों के अनुसार बातों को समाहित किया गया और आज परिस्थिति में बदलाव हुए, आमूल-चूल परिवर्तन हुए हैं तो वह बदलाव के पक्षधर भी हैं। जहां तक हमारे संविधान की बात हैं तो यह व्यापक है, जनहितैषी, लोकस्पर्शी हैं लेकिन इस पर फैसला हम नहीं हमारे नेता लेंगे। वही बतायेंगे कि हम ‘संविधान हत्या दिवस’ मनाएंगे या नहीं।