AIMIM is ‘B’ team of BJP! : नई दिल्ली। देश में लोकसभा चुनाव के लिए अब काफी कम दिन बचे हुए हैं। एनडीए और विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ ने तैयारियां तेज कर दी हैं। चुनाव आते ही AIMIM को BJP की B टीम कहने का दावा अक्सर चर्चा का विषय बनता है लेकिन ऐसा क्यों? इसलिए आज हम AIMIM के चुनावी डेटा का विश्लेषण करके समझेंगे कि आखिर इन आरोपों में कोई सच्चाई है या यह चर्चा केवल खोखली है।
AIMIM is ‘B’ team of BJP! : जैसे हर सिक्के के 2 पहलू होते हैं, वैसे ही विधानसभा चुनावों में भी 2 अलग-अलग पहलू देखने को मिलते हैं। जिसका असर लोकसभा चुनाव पर भी देखा जाता है। इन चर्चाओं की गहराई में जाने से पहले हम बात करेंगे लोकसभा चुनाव 2019 की।
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2019 लोकसभा चुनाव में AIMIM ने 3 सीटों पर उम्मीदवारों को उतारा, जिनमें से 2 सीटों पर जीत मिली और 1 सीट पर हार का सामना करना पड़ा। औरंगाबाद से AIMIM के उम्मीदवार Sayed Imtiyaz Jaleel ने जीत हासिल की, वहीं हैदराबाद से AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने बड़ी राजनीतिक चुनौती के बावजूद जीत दर्ज की। लेकिन किशनगंज से लड़ रहे बिहार AIMIM के प्रेजिडेंट Akhtarul Iman को हार का सामना करना पड़ा। लेकिन बात यहीं खत्म नहीं होती। अब बारी थी 2019 की बिहार विधानसभा उपचुनाव की, जिसमें किशनगंज विधानसभा सीट मौजूदा कांग्रेस विधायक जावेद आलम के मई में लोकसभा के लिए चुने जाने के बाद खाली हो गई थी। यह एकमात्र विधानसभा सीट थी जिसे कांग्रेस आम चुनाव में बिहार से जीत सकी। 5 महीने बाद, कांग्रेस ने जावेद की मां सईदा बानो को इस उम्मीद से मैदान में उतारा कि यह एक आसान जीत होगी। लेकिन जनता को कुछ और ही मंजूर था और कांग्रेस की सईदा तीसरे स्थान पर रहीं, जबकि AIMIM के क़मरुल होदा ने करीब 41 प्रतिशत वोट हासिल करके बिहार की किशनगंज सीट पर AIMIM का परचम लहरा दिया।
इस जीत के बाद AIMIM ने पहली बार बिहार विधानसभा में 20 सीटों पर चुनाव लड़ा। AIMIM ने जिन 20 सीटों पर चुनाव लड़ा, उनमें से NDA सिर्फ 6 सीटों पर सफल रही। इनमें से केवल 1 सीट पर AIMIM के पक्ष में मिले वोट NDA उम्मीदवारों की जीत के अंतर से अधिक थे। रानीगंज एकमात्र सीट थी जहां AIMIM उम्मीदवार रोशन देवी को 2,412 वोट मिले, जो RJD पर JDU की जीत के अंतर से 108 वोट अधिक थे। जोकिहाट ही एक ऐसी सीट थी जहां इन्होने सीधे तौर पर RJD को चुनौती दी थी। यहां AIMIM से शाहनवाज ने RJD से लड़ रहे अपने ही भाई सरफराज को 7383 वोटों से हराया। AIMIM ने शेरघाटी सीट पर भी चुनाव लड़ा, जिस पर एक RJD उम्मीदवार जो भाजपा से निष्कासित सदस्य थे, जीत गए। बड़ी मुस्लिम आबादी वाली एक और सीट औरंगाबाद में, कांग्रेस ने 2018 में रामनवमी के दौरान सांप्रदायिक जुनून भड़काने के आरोपी उम्मीदवार को मैदान में उतारा। तो, ऐसी सीटों पर महागठबंधन के “Secular” वोट कैसे प्रभावित हुए? लेकिन विपक्षी नेता चाहे वो कांग्रेस के हो, सपा के हो या RJD के, कोई भी एक मौका नहीं छोड़ते AIMIM पर बाण खींचने का।
हाल ही में तेलंगाना विधानसभा चुनाव से पहले ही स्टेट कांग्रेस चीफ और अब मुख्यमंत्री रेवंथ रेड्डी ने भी चुनाव के पहले असदुद्दीन ओवैसी को निशाना बनाते हुए कहा था कि ”हर कोई जानता है कि ओवैसी किसके लिए काम कर रहे हैं। चूंकि कर्नाटक में भी कांग्रेस प्रचंड बहुमत से जीती, इसलिए असदुद्दीन ओवैसी और केसीआर दुखी हैं, जिसका मतलब है कि उन्होंने बीजेपी को जिताने के लिए प्रयास किए”। लेकिन आखिरकार विपक्ष बीजेपी के साथ AIMIM को क्यों जोड़ती है। इन सभी कारणों को समझने के लिए हमें उत्तर प्रदेश चुनाव को याद करना होगा। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM भले ही बिहार जैसा परफॉर्म नहीं कर पाई, लेकिन कई सीटों पर सपा गठबंधन के जीत का खेल जरूर बिगाड़ दिया। सूबे में मुस्लिम मतदाताओं की पहली पसंद सपा जरूर बनी है, लेकिन AIMIM के उमीदवारों ने इतना वोट तो हासिल किए कि बीजेपी के उमीदवारों की जीत आसान बन गई।
बिजनौर, नकुड़, फिरोजाबाद, मुरादाबाद, कुर्सी, जौनपुर जैसी मुस्लिम बहुल सीटों पर बीजेपी कमल खिलाने में कामयाब रही। बिजनौर सदर सीट पर बीजेपी कैंडिडेट सुची मौसम चौधरी को 97165 वोट मिले और सपा-RLD प्रत्याशी नीरज चौधरी को 95720 वोट मिले, जबकि AIMIM के मुनीर अहमद को 2290 वोट मिले हैं। जिसके बाद सपा-गठबंधन को 1445 वोटों से बीजेपी के हाथों हार का सामना करना पड़ा। ओवैसी के उम्मीदवार को मिले वोटों को अगर सपा-गठबंधन में जोड़ देते हैं, तो बीजेपी 845 वोटों से हार जाती। वहीं नकुड़ विधानसभा सीट भी जो मुस्लिम बहुल मानी जाती है। नकुड़ से बीजेपी प्रत्याशी मुकेश चौधरी को 104114 वोट और सपा उम्मीदवार धर्म सिंह सैनी को 103799 वोट मिले हैं। इतना ही नहीं AIMIM प्रत्याशी रिजवाना को 3593 वोट मिले हैं। यहां पर सपा को बीजेपी से महज 315 वोटों से शिकस्त का सामान करना पड़ा है। नकुड़ सीट पर AIMIM सपा गठबंधन के जीत की राह में रोड़ा बने।
इन आंकड़ो से आप समझ ही गए होंगे कि आखिर विपक्ष AIMIM को बीजेपी की ‘बी’ टीम क्यों कहती है? इन आंकड़ों में साफ जाहिर होता है कि AIMIM ने जहां भी अपने प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं वहां बीजेपी को फायदा पहुंचा है। सदन से लेकर जनसभाओं में तक विपक्ष ने AIMIM को बीजेपी की पर्दे के पीछे से मदद करने वाली पार्टी बताया है। अब देखना ये होगा कि आगामी लोकसभा चुनाव में किस पार्टी के आंकडे किस पर भारी पड़ते हैं।