आज हम बात करने जा रहे हैं….रूस यूक्रेन युद्ध की…
रामायण में कथा है कि रावण के खिलाफ युद्ध के लिए बंदर और भालु भी लंका गए थे उनको भरोसा था अपनी जीत का… वे मानते थे कि भगवान राम की ताकत उन्हें बचा लेगी…और जीत उनकी होगी…भरोसे की यही कहानी आज दोहराई गई है…फर्क सिर्फ इतना है कि आज राम नहीं हैं… बल्कि भरोसा दिलाने वाला अमरीका है और युद्ध में उतरने वाला यूक्रेन है… कुछ ऐसे संकेत मिल रहे हैं जिससे लगता है कि अमरीका चाहता था कि रूस यूक्रेन पर आक्रमण कर दे…अमरीका के ही भरोसे यूक्रेन ने रावण जैसे ताकतवर रूस को चुनौती दे डाली और हमला हुआ तो अमरीका भाग खड़ा हुआ है….लेकिन इस घटना से अमरीका के भीतर ही राष्ट्रपति बायडेन भी कमजोर हो गए हैं ।
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हमने पिछले वीडियो में कहा था कि रूस ने दुनियां में अमरीकी वर्चस्व को कम करने और उसके बराबर का कद हासिल करने के लिए इस हमले को अंजाम दिया है…ऐसा करके उसने चीन को भी आगे बढ़ने और दुनियां में नंबर दो बनने से रोक दिया है…अब दुनियां के दो नेताओं की बात होगी तो अमरीका और रूस का ही नाम होगा…अब अकेले अमरीका की दादागिरी नहीं चलेगी…दुनियां अब दो खेमों में साफ नजर आएगी… एक रूस और उसके सहयोगी और दूसरा होगा अमरीका और उसके सहयोगी…अभी हम बताने जा रहे हैं कि बहुत सारी चर्चाओं के बीच कुछ ऐसी चर्चाएं भी दुनियां में आ रही हैं जिनसे ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि खुद अमरीका चाहता था कि रूस यूक्रेन पर आक्रमण कर दे…और इसके लिए उसने यूक्रेन को उकसाया और मदद का भरोसा दिया…कुछ एक्सपर्ट कह रहे हैं कि अमरीका ने यूरोप में अपना तेल और गैस बेचने के लिए यह चाल चली है। पर मामला कुछ और भी लग रहा है…ऐसा लगता है कि चीन को रोकने के लिए अमरीका ने रूस को आगे आने का मौका दिया है…और खुद पीछे हट गया…
ये बात थोड़ी अटपटी लग सकती है पर अमरीका ने पिछले दिनों यूक्रेन के साथ क्या किया और रूस को किस तरह की चेतावनियां दी थीं उसे देखा जाए तो साफ लगता था कि अमरीका यूक्रेन की हर तरह से मदद करने को तैयार है लेकिन रूस ने जिस तरह हमला कर दिया उससे साफ लगता है कि रूस को पूरा भरोसा था कि अमरीका जो धमकी दे रहा है उस पर अमल नहीं करेगा… और युद्ध होने के बाद क्या हुआ…? अमरीका क्यों नहीं उतर रहा है…? क्यों अमरीका भाग गया है… क्यों नाटो ने यूक्रेन की सहायता नहीं की है…ये तमाम सवाल अब उठने लगे हैं….अमरीका की तरह की धमकी रूस ने भी दी थी कि कोई बीच में दखल न दे…तो उसकी धमकी क्यों असरदार दिख रही है….? जबकि अमरीकी धमकी का कोई असर नहीं हुआ…
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इस युद्ध से अमरीका का एकछत्र राज खत्म हुआ है और रूस भी मजबूत होकर उभरा है यह रूस के लिए फायदेमंद सौदा हुआ… लेकिन जो संकेत दुनियां को मिल रहे हैं उससे सवाल उठ रहा है कि क्या अमरीका ने गुपचुप ढंग से इस युद्ध के लिए पृष्ठभूमि तैयार की थी और क्या अमरीका ही चाहता था कि रूस इस युद्ध को शुरू करे….तो फिर पूछा जा सकता है कि ऐसा भला वह क्यों करेगा और इससे उसका क्या फायदा होगा…कहा जा रहा है कि यूरोप को अमरीका अपना तेल और गैस बेचना चाहता है….रूस पर प्रतिबंध के बाद वह यूरोप को अमरीका से तेल लेने के लिए मजबूर कर सकता है पर यह कहने में जितना आसान लग रहा है उतना है नहीं….एक तो यदि ये साबित हो जाए कि अमरीका ने अपना तेल बेचने के लिए यह सब किया है तो यूरोप के देश उससे नाराज होंगे और रूस भी बदला लेने का मौका ढूंढेगा….अभी उसने अमरीका को उसकी हद समझा दी है…पर अंतरराष्ट्रीय राजनीति में कुछ भी हो सकता है…क्या सही है और क्या गलत इसे समझना आसान नहीं होता…यहां दुश्मन और दोस्त की पहचान भी बड़ी मुश्किल होती है…और ये बात तो आपने यूक्रेन के साथ जो हुआ उससे समझ ही लिया है…
आपको हमने एक और संभावना के बारे में बताया था कि दुनियां में चाइना को नेता के रूप में उभरने से रोकने लिए रूस ने इस अवसर का इस्तेमाल किया है और अब चाइना को रूस के पीछे ही चलना होगा…तो यह तो रूस के लिए फायदे की बात हुई पर अमरीका भला क्यों चाहेगा कि रशिया युद्ध करे और अमरीका की बादशाहत को चुनौती दे…
इस युद्ध को लेकर अमरीका ने एक दिन बाद भी जो रवैया दिखाया है उससे साफ लगता है कि यूक्रेन को भड़काकर उसने उसे युद्ध में धकेला और जब युद्ध हुआ तो उसका साथ अमरीका नहीं दे रहा…राष्ट्रपति बायडेन ने भी कह दिया है कि वे यूक्रेन में सेना नहीं भेज रहे…. रूस युद्ध करे और दुनियां में अमरीका की बराबरी करते हुए उसकी पोजिशन को चुनौती दे… क्या अमरीका यही चाहता है…? आप देखिए हमले के बाद आज रूस मजबूत हुआ है और अमरीका के पीछे हटने के कारण नाटो गठबंधन भी रूस के सामने कमजोर साबित हो गया है…
जो संकेत अब तक मिले हैं उनको देखा जाए तो लगता है कि दरअसल अमरीका के प्रशासन ने चीन को सुपर पॉवर बनकर आगे आने से रोकने के लिए रूस को यह मौका दिया है… अमरीका का प्रशासन चीन को हर हाल में रोकना चाहता है…इसीलिए शायद रूस को आगे आने के लिए उकसाया गया है और रूस सब जानते हुए चूंकि उसको फायदा दिखा तो वह आगे बढ़ गया… हो सकता है कि शायद राष्ट्रपति बायडेन ऐसा नहीं चाहते होंगे पर अमरीकी प्रशासन ने उनको ऐसा करने दबाव डाला होगा…जब हम अमरीकी प्रशासन कहते हैं तो इसमें उनकी खुफिया एजेंसी सीआईए और विदेश विभाग समेत सभी विभागों के अधिकारियों से लेकर उनके जनप्रतिनिधियों को भी शामिल समझना चाहिए…
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एक सवाल ये भी उठता है कि अब रूस को भी अपने टक्कर में खड़ा करके और दुनियां को शीतयुद्ध वाले दौर में ले जाकर भला अमरीका को क्या हासिल होगा…तो इसका जवाब फिलहाल यही समझ आता है कि चीन जैसे विरोधी से टकराने की जगह रूस से जूझना अमरीका को ज्यादा आसान लगता है…रूस के साथ दशकों तक टकराव के हालात बने रहे थे पर सीधा टकराव कभी नहीं हुआ है….जबकि चीन के साथ अमरीका की तनातनी कभी भी खतरनाक रूप ले सकती है ऐसा लगता है….रूस यदि चीन के बॉस के रोल में आ जाए तो चीन पर नकेल कसना या उसे हद में रखना शायद आसान हो जाएगा…पर चीन ही बॉस के रोल में हो तो उसे रोकना नामुमकिन होगा…हो सकता है तेल गैस बेचने की तुलना में अमरीका इस मुद्दे को ज्यादा महत्व दे… पर जो भी हो इतना तो तय है कि रूस को हमले के लिए उकसाने के आरोप से अब अमरीका नहीं बच सकता है…उसने यूक्रेन को आश्वासन नहीं दिया होता तो यूक्रेन बहुत पहले ही समझौते पर उतर गया होता और आज शांति से जी रहा होता….खैर अब यही उम्मीद करते हैं कि चूंकि रूस ने अपनी ताकत दुनियां को दिखा दी है और चीन को उसकी औकात में ला दिया है तो अब इस युद्ध की जरूरत खत्म हो गई है…ऐसे में हो सकता है एकाध दिन बाद हम शांति होता देखें
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