Morbi bridge collapse: मोरबी: गुजरात के मोरबी पुल हादसे ने पूरे देश को सदमें में ला दिया है, रविवार शाम जिस केबल पुल के टूटने से 143 से ज्यादा लोगों की मौत अब तक हो चुकी है। वह पुल 100 साल से भी ज्यादा पुराना है। अभी हाल ही में मरम्मत और नवीनीकरण के बाद इसे जनता के लिए फिर से खोला गया था। घटना तब हुई जब रविवार शाम करीब साढ़े छह बजे पुल पर क्षमता से कई गुना अधिक लोग पहुंच गए, एकाएक पुल टूटा और करीब 500 लोग मच्छु नदी में गिर गए। मरने वालों में कई बच्चे और महिलाएं भी हैं।
इस घटना के बाद पुल के इतिहास, उसकी मरम्मत और लापरवाही को लेकर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं। इसे एक प्राइवेट फर्म ने लगभग छह महीने तक मरम्मत का काम किया था और 26 अक्टूबर को गुजराती नववर्ष दिवस पर इसे जनता के लिए फिर से खोला गया था।
अनोखी इंजीनियरिंग और बहुत पुराना होने के कारण इस पुल को गुजरात पर्यटन की सूची में रखा गया था। आज यह मौत का पुल के रूप में बदनाम हो रहा है, लेकिन इस ब्रिज की कहानी अनोखी है।
Morbi bridge collapse: इसे एक सस्पेंशन पुल के तौर पर माना जाता है, सस्पेंशन पुल आम पुल से थोड़ा अलग होता है। दोनों सिरों पर मीनारनुमा ढांचों से जुड़े स्टील के तारों से लटकने वाले पुल को सस्पेंशन ब्रिज कहा जाता है। हावड़ा ब्रिज हो या प्रयागराज का नैनी पुल, दिल्ली का सिग्नेचर पुल ये सभी इसी श्रेणी के ब्रिज हैं।
मोरबी पुल की बात करें तो यह कोई आम पुल नहीं था। 1887 के आसपास मोरबी के तत्कालीन राजा वाघजी ठाकोर ने इसे बनवाया था। मोरबी पर उनका शासन 1922 तक रहा। जब लकड़ी के इस पुल का निर्माण किया गया था तो इसमें यूरोप की सबसे आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल हुआ था। बताते हैं कि मोरबी के राजा इसी पुल से होकर दरबार जाते थे। यह पुल दरबारगढ़ पैलेस और नजरबाग पैलेस (शाही महल) को जोड़ता था। बाद में यह दरबारगढ़ पैलेस और लखधीरजी इंजीनियरिंग कॉलेज के बीच कनेक्टिविटी का प्रमुख मार्ग बन गया था।
करीब 1.25 मीटर चौड़ा और 233 मीटर लंबा यह पुल मोरबी की शान था, लोग यहां पहुंचकर यूरोप की तकनीक का अनुभव करते थे। कैमरे वाले फोन आने के बाद सेल्फी का क्रेज बढ़ता गया। रविवार को लोग घूमने के लिए ही पुल पर पहुंचे हुए थे।
जब भी मोरबी में कोई प्रवेश करता, उसे यह सस्पेंशन ब्रिज आकर्षित करता था। नदी के किनारे का वो नजारा लोगों को विक्टोरियन लंदन का एहसास कराता था। राजकोट से 64 किमी दूर स्थित मोरबी में इमारतें 19वीं सदी के यूरोप के टक्कर की बनाई गई थीं। मोरबी के पूर्व शासक अंग्रेजों की तकनीक से इतना प्रभावित थे कि उन्होंने पूरे शहर में उसका इस्तेमाल किया था।
शहर में आगंतुक का वेलकम यही पुल करता था जो 100 साल से भी पहले से अपने विशाल और विहंगम स्वरूप से लोगों को आकर्षित कर रहा था। पूरे शहर में यूरोपीय शैली की छाप नजर आती है। आगे बढ़ने पर ग्रीन चौक चौराहा है, जहां तीन गेट से पहुंचा जा सकता है और हर गेट में राजपूत और इटालियन तकनीक का अक्स नजर आता है।
सस्पेंशन ब्रिज शानदार इंजीनियरिंग का उदाहरण रहा है। यह बताता है कि आज से डेढ़ सौ साल से भी पहले मोरबी के राजा की सोच कितनी प्रगतिशील और साइंटिफिक हुआ करती थी। मोरबी की एक अलग पहचान बनाने के लिए इस यूनिक ब्रिज का निर्माण किया गया था।
Morbi bridge collapse: आज इस पुल का टूटना हमें 1979 की मच्छु बांध त्रासदी की यादें दिलाता है। 1979 की आपदा में हजारों लोगों के मारे जाने की आशंका थी, जब भीषण बारिश के बाद मच्छु नदी पर बना बांध टूट गया था तारीख 11 अगस्त की थी और साल 1979 था। ईद दिन मच्छू नदी के कारण पूरा शहर श्मशान में बदल गया था। शहर में लगातार बारिश हो रही थी। जिससे स्थानीय नदियों में बाढ़ आ गई टी और मच्छू डैम ओवरफ्लो हो गया था। इससे कुछ ही देर में पूरे शहर में तबाही मच गई थी। 11 अगस्त 1979 को दोपहर सवा तीन बजे डैम टूट गया और 15 मिनट में ही डैम के पानी ने पूरे शहर को अपनी चपेट में ले लिया था। देखते ही देखते मकान और इमारतें गिर गईं, जिससे लोगों को संभलने और बचने का कोई मौका भी नहीं मिला।
इस हादसे में लगभग 1500 मौतें हुई थीं। इसके अलावा 13000 से ज्यादा जानवरों की भी मौत हुई। यह आंकड़ा तो सरकारी कागजों के अनुसार है। असल आंकड़ा इससे भी ज्यादा था। बाढ़ की वजह से पूरे शहर का भयानक मंजर था। क्या इंसान और क्या जानवर, बाढ़ के पानी की वजह से सभी असहाय नजर आ रहे थे। इंसानों से लेकर जानवरों के शव खंभों तक पर लटके हुए थे। हादसे में पूरा शहर मलबे में तब्दील हो चुका था और चारों ओर सिर्फ लाशें ही दिखाई दे रही थीं।
मोरबी की मच्छु नदी पर बने झूला पुल के गिरने को लेकर बड़े सवाल खड़े हो रहे हैं। आखिरकार इस घटना के पीछे जिम्मेदार लोगों ने जरा सी भी संवेदनशीलता दिखाई होती तो इतने बड़े हादसे को रोका जा सकता था। जब पुल की क्षमता उतनी नहीं थी कि उस पर इतने लोग एक साथ जा सकें या फिर वह इतना भार वहन कर सके तो किसकी इजाजत से इतने लोग वहां पर एक साथ पहुंच गए।
मोरबी पुल हादसे का जिम्मेदार कौन ?
बिना फिटनेस सर्टिफिकेट कैसे खुला पुल ?
किसकी इजाजत से पुल खोला गया?
पुल पर क्षमता से ज्यादा लोग कैसे पहुंंचे ?
भीड़ काबू करने के इंतजाम क्या थे या थे ही नहीं ?
मोरबी हादसे को लेकर दोषियों के खिलाफ केस दर्ज किया गया है। इसमें आईपीसी की 304, 308, 114 लगाई गई हैं। गृह राज्य मंत्री हर्ष संघवी ने ट्वीट के जरिए इसकी जानकारी दी। मोरबी के इस ऐतिहासिक पुल को हाल ही में ओरेवा नाम की कंपनी ने लिया था। टेंडर की शर्तों के अनुसार कंपनी को अगले 15 सालों तक इस पुल का रखरखाव करना था। कंपनी ने सात महीने की मरम्मत के बाद इस 26 नंवबर को लोगों के लिए खोला था।
प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि अंग्रेजों के समय का यह ‘हैंगिंग ब्रिज’ जब टूटा तो उस समय कई महिलाएं और बच्चे वहां पर थे। इससे लोग नीचे पानी में गिर गए। स्थानीय लोग बता रहे हैं कि हादसे से ठीक पहले कुछ लोग पुल पर कूद रहे थे और उसके बड़े तारों को खींच रहे थे। हो सकता है कि भारी भीड़ के कारण पुल टूटकर गिर गया हो। पुल गिरने के चलते लोग एक दूसरे के ऊपर गिर पड़े। दीपावली की छुट्टी और रविवार होने के कारण इस मशहूर पुल पर पर्यटकों की भीड़ उमड़ी हुई थी।
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