Jallikattu Competition 2025:

Jallikattu Competition 2025: 11 सौ सांड.. काबू पाने मैदान पर उतरे 900 प्रतिभागी, जानलेवा खेल ‘जल्लीकट्टू’ की शुरुआत, जीतने वाले को मिलेगा इतना ईनाम

Jallikattu Competition 2025: 11 सौ सांड.. काबू पाने मैदान पर उतरे 900 प्रतिभागी, जानलेवा खेल 'जल्लीकट्टू' की शुरुआत

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Modified Date: January 14, 2025 / 08:38 AM IST
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Published Date: January 14, 2025 8:37 am IST

Jallikattu Competition 2025: तमिलनाडु। मदुरै जिले के अवनियापुरम में जल्लीकट्टू प्रतियोगिता शुरू हो गई है। बता दें कि, इस आयोजन में 1,100 बैल और 900 बैल-पालक भाग लेंगे, जिसमें सख्त नियम और सुरक्षा उपाय लागू होंगे। सर्वश्रेष्ठ बैल को 11 लाख रुपये का ट्रैक्टर दिया जाएगा, जबकि सर्वश्रेष्ठ बैल-पालक को 8 लाख रुपये की कार और अन्य पुरस्कार दिए जाएंगे।

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जल्लीकट्टू की प्राचीन परंपरा

जल्लीकट्टू विशुद्ध ग्रामीण खेल है, जो तमिलनाडु की प्राचीन परंपरा से जुड़ा है. कुछ लोग इसका इतिहास ढाई हजार वर्ष पुराना बताते हैं। खेल की शुरुआत ई.पू. 400-100 के बीच मानते हैं, जिसे तमिल शास्त्रीय काल कहा जाता है। तमिल संस्कृति के जानकार बताते हैं कि यह खेल अय्यर लोगों में प्रचलित था, जो तमिलनाडु के मुल्लै नामक भूभाग में रहते थे, जो अभी का मदुरई इलाका है। सांड के सींग में जो कपड़े से सिक्का बांधा जाता है, वहीं इसके मूल में है।

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जल्लीकट्टू का अर्थ

कहा जाता है कि, ‘जल्ली’ शब्द दरअसल तमिल के ‘सल्ली’ से बना है, जिसका अर्थ ‘सिक्का’ है और कट्टू का अर्थ ‘बांधा हुआ’ होता है। कई स्थानों पर शादी के स्वयंवर के तौर पर सांड पकड़ने की परपंरा का उल्लेख मिलता है। कभी शौर्य और वीरता का पर्याय रहा यह उत्सव अब महज खेल और मनोरंजन के रुप में परिवर्तित हो चुका है। लेकिन, तमिल लोगों में इसका क्रेज जबर्दस्त है।

कैसे खेलते हैं जल्लीकट्टू

जल्लीकट्टू एक साहसिक खेल है, जिसमें एक सांड को वश में करने का प्रयास किया जाता है। विशेष तरीके से प्रशिक्षित सांडों को एक बंद स्थान से छोड़ा जाता है, बाहर खेलने वालों की फौज मुस्तैद खड़ी रहती है। बेरिकेटिंग से बाहर बड़ी संख्या में दर्शक इसका आनंद उठाने के लिए जमे रहते हैं। जैसे ही सांड छोड़ा जाता है, वह भागते हुए बाहर निकलता है, लोग उसे पकड़ने के लिए टूट पड़ते हैं। असली काम सांड के कूबड़ को पकड़कर उसे रोकना और फिर सींग में कपड़े से बंधे सिक्के को निकालना होता है। लेकिन, बिगड़ैल और गुस्सैल सांड को काबू में करना आसान नहीं होता।

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इस खेल में अधिकांश को असफलता हाथ लगती है और कई लोग इस कोशिश में चोटिल भी हो जाते है। कइ लोगों की तो जान भी चली जाती है। लेकिन, परंपरा और रोमांच से जुड़े इस खेल के प्रति खिलाड़ियों और दर्शकों का जुनून गजब का होता है, जो इस खेल में विजयी होते हैं उन्हें ईनाम भी मिलता है।

 

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जल्लीकट्टू क्यों मनाया जाता है?

जल्लीकट्टू, जिसे सल्लिकट्टू के नाम से भी जाना जाता है, तमिलनाडु का एक पारंपरिक खेल है जो पोंगल के तीसरे दिन - मट्टू पोंगल दिवस पर मनाया जाता है।

क्या है जलीकट्टू?

जल्लीकट्टू एक साहसिक खेल है, जिसमें एक सांड को वश में करने का प्रयास किया जाता है।

जल्लीकट्टू के दौरान सुरक्षा उपाय क्या होते हैं?

प्रतियोगिता में सख्त नियम लागू किए जाते हैं। बैल-पालकों और दर्शकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए मेडिकल टीमें, बैरिकेडिंग, और अधिकारियों की तैनाती की जाती है।
 
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