Ganesh Visarjan Niyam: गणेश चतुर्थी से शुरू गणेशोत्सव को लेकर भक्तों में उत्साह चरम पर है। दस दिन विधि-विधान से श्रद्धा और आस्था के साथ पूजा करने के बाद उनकी विदाई का दिन आ गया है। मंगलवार यानी आज अनंत चतुर्दशी है। परंपराओं के अनुसार, जिन भक्तों ने अपने घर और पंडालों में बप्पा की मूर्ति स्थापित की है, वे आज बप्पा की मूर्ति का विधि-विधान से विसर्जन कर रहे हैं। लेकिन, क्या आपने कभी सोचा है कि उत्तर भारत में गणेश प्रतिमाओं का विसर्जन करना कितना सही हैं? अगर नहीं तो आइए जानते हैं…
गणेशजी और गणेश चतुर्थी की मान्यता भारत के हर कोने में हैं। सामान्य पूजा में भी सबसे पहले उनकी आराधना की जाती है। वह बुद्धि-विद्या के ही साथ धन-संपदा और शुभता के न सिर्फ प्रतीक हैं, बल्कि उसके दाता भी माने जाते हैं। गणेशजी की पूजा किसी भी शुभ कार्य के पूरी तरह से संपन्न होने के लिए जरूरी मानी जाती है। गणेशजी की मान्यता पूरे देश में एक जैसी ही है। लेकिन, गणेश चतुर्थी का प्रभाव महाराष्ट्र और अन्य दक्षिण भारतीय राज्यों में अधिक देखने को मिलता है। इसके पीछे भी एक खास वजह है।
गणेश विसर्जन करना सिर्फ महाराष्ट्र की नकल?
असल में महाराष्ट्र में गणेश उत्सव के साथ विसर्जन भी एक उत्सव है, जिसमें बड़ी संख्या में लोग उमड़ते हैं। अब गणेश उत्सव का फैलाव उत्तर भारत तक हो गया है। ऐसे में कहा जाता है कि उत्तर भारत में गणेश विसर्जन करना सिर्फ महाराष्ट्र की नकल है, क्योंकि गणेश जी महाराष्ट्र में अतिथि बनकर जाते हैं। इसलिए वहां उनकी विदाई के प्रतीक के तौर पर विसर्जन करते हैं, लेकिन वह लौटकर तो उत्तर भारत में ही आते हैं, इसलिए जब उनका निवास ही यहां है तो विदाई कैसी?
विसर्जन, स्थापना का जरूरी अंग
पौराणिक आख्यानों के आधार पर गणेश जी उत्तर दिशा के लोकपाल-दिग्पाल भी हैं। इसलिए लोगों का तर्क एक बारगी सही भी है, लेकिन पूरी तरह नहीं। अगर आप स्थापना के कॉन्सेप्ट को मानते हैं तो विसर्जन उसका एक जरूरी अंग भी है। स्थापना और विसर्जन का चक्र बिल्कुल वैसा ही जैसा कि जन्म और मृत्यु, सुख और दुख और काल गणना का चक्र। इसलिए अगर देवता की स्थापना की जा रही है तो उसका विसर्जन भी किया जाता है। यह पूजन विधान का अनिवार्य अंग है। इसकी एक बानगी घरों में होने वाले पूजा अनुष्ठान भी हैं, जब हवन आदि होने के बाद देवताओं से उनके अपने स्थान पर जाने का आह्वान किया जाता है।
विसर्जन मंत्र
अर्थः हे देवगणों, आप सभी की मैंने पूजा कि, जैसी मुझे आती थी. आप से प्रार्थना है कि मेरी पूजा को स्वीकार करें और अपने स्थान पर जाएं. वहां से मेरी रक्षा करते रहें, मेरी ईष्ट कामना को पूरा करें और आगे भी मेरे आह्नान को स्वीकार करके मेरे निवास पर आते रहें. इस मंत्र को बोलकर देवताओं का नाम लेकर और उनका बीज मंत्र बोलते हुए उनका विसर्जन किया जाता है।