Ramzan me Roza rakhne ke niyam सभी धर्मो के अपने अलग महीने होते हैं, उसमे कई परंपरायें सम्मिलित होती हैं। कई मान्यतायें भी शामिल होती हैं लेकिन सभी का उद्देश्य ख़ुशी औए एकता होता हैं। ऐसे ही रमज़ान का अपना एक महत्व होता हैं, जो इस्लामिक देशो में बड़े जोरो शोरो ने मनाया जाता हैं। यह मुस्लिम संस्कृति का एक बहुत ही महान महिना होता है, जिसके नियम बहुत कठिन होते हैं, जो इंसान में सहन शीलता को बढ़ाते हैं।
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रमज़ान का महिना बहुत ही पवित्र माना जाता हैं, यह इस्लामिक केलेंडर के नौवे महीने में आता हैं। मुस्लिम धर्म में चाँद का अत्याधिक महत्व होता हैं। इस्लामिक कैलेंडर में चाँद के अनुसार महीने के दिन गाने गाये जाते हैं, जो कि 30 या 29 होते हैं, इस तरह 10 दिन कम होते जाते हैं जिससे रमज़ान का महिना भी Ramzan me Roza rakhne ke niyam अंग्रेजी कैलेंडर के मुताबिक प्रति वर्ष 10 दिन पहले आता हैं। रमज़ान के महीने को बहुत ही पावन माना जाता हैं। रमज़ान अपने कठोर नियमो के लिए पुरे विश्व में जाना जाता है।05 अप्रैल को सहरी प्रातः 4:46 बजे और इफ्तार सायं 06:44 किया जाना है।
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मौलाना अशरफ बताते हैं कि रोजा मकरूह होने यानी टूट जाने के कई कारण हो सकते हैं। इनमें आंखों का पर्दा भी Ramzan me Roza rakhne ke niyam एक अहम चीज है। यानी रोजा रखने के बाद अगर रोजेदार किसी को गलत निगाहों से देखते हैं तो इससे रोजा मकरूह हो सकता है। इसके अलावा झूठ बोलने या पीठ पीछे बुराई करने से भी रोजा टूट सकता है।
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सेहरी के बाद या इफ्तार से पहले जानबूझकर कुछ भी खा लेने वाले या पानी पीने वाले लोगों का रोजा भी टूट जाता है। इसके साथ ही रोजेदार के दांत Ramzan me Roza rakhne ke niyam में अगर कुछ खाना फंसा हुआ है और वह उसे अंदर निगल लेता है तो इससे भी रोजा मकरूह हो सकता है। वहीं, किसी को गाली देना, अपशब्द कहना या बिना बीमारी गैरजरूरी इंजेक्शन लगवाने से भी रोजा टूट सकता है।