Raksha Bandhan 2023

Raksha Bandhan 2023: भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक है ये मंदिर, धरती फटी और उसमें समा गए थे भाई-बहन, मुगल शासन काल से जुड़ा है इतिहास

Raksha Bandhan 2023: भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक है ये मंदिर, धरती फटी और उसमें समा गए थे भाई-बहन, मुगल शासन काल से जुड़ा है इतिहास

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Modified Date: August 30, 2023 / 01:55 PM IST
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Published Date: August 30, 2023 1:53 pm IST

Raksha Bandhan 2023: बिहार के इस अनोखे मंदिर में बहने अपने भाइयों की खुशहाली, तरक्की और सलामती के लिए पूजा करती हैं। इस ऐतिहासिक जगह पर भाई-बहन माथा टेकने आते हैं और अपने रिश्ते की सलामती के लिए मन्नत मांगते हैं। यह अनोखा मंदिर बिहार के सीवान जिले के भीखाबांध गांव में है। इस मंदिर से दिलचस्प कहानी भी जुड़ी हुई है।

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बिहार के सीवान में स्थित ‘भैया-बहिनी मंदिर’

इस मंदिर को भाई और बहन के प्रेम का प्रतिक माना जाता है। इस अति प्राचीन मंदिर को ‘भैया-बहिनी मंदिर’ नाम से जाना जाता है। भैया-बहिनी नामक इस मंदिर में न तो किसी भगवान की मूर्ति है और ना कोई तस्वीर। बल्कि मंदिर के बीचों-बीच मिट्टी का एक ढेर मात्र है। बहनें इसी मिट्टी के पिंड और मंदिर के बाहर लगे बरगद के पेड़ों की पूजा कर अपने भाइयों की सलामती, उन्नति और लंबी उम्र की कामना करती हैं। रक्षाबंधन पर मंदिर में श्रद्धालुओं का जमावड़ा लग जाता है और ये श्रद्धालु और कोई नहीं बल्कि अपने भाइयों से अटूट प्यार और स्नेह रखने वाली उनकी बहनें होती हैं। यह मंदिर चारों ओर से बरगद के पेड़ों के बीच पांच-छ बीघे के भू-खंड में बना हुआ है।

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मुगल शासन काल से जुड़ी है इस मंदिर की कहानी

इस भैया-बहिनी मंदिर के बारे में कहा जाता है कि मुगल शासन काल के दौरान यहां से गुजर रहे दो भाई-बहनों पर डाकुओं और बदमाशों की नजर पड़ी। भाई अपनी बहन की डोली लेकर जा रहा था तभी कुछ मुगल सैनिक उनके पास आए और डोली को आगे जाने से रोक दिया। वे मुगल सैनिक उसकी बहन से दुर्व्यवहार कर रहे थे और उसके भाई से यह सब देखा नहीं गया तो वह मुगलों से अपनी बहन की रक्षा करने के लिए उनसे भिड़ गया। बहन की रक्षा करते-करते वह कुर्बान हो गया। यह सब देख बहन ने भगवान से प्रार्थना की और वह अपने भाई के साथ धरती में समा गई।

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समाधियों पर उग आया बरगद का पेड़

काफी समय बीतने के बाद दोनों की समाधियों पर दो बरगद के पेड़ उग आये जो की आपस में एक–दूसरे से जुड़े हुए थे। लोगों ने उन बरगद के पेड़ों को उन्हीं भाई-बहनों का रूप मानकर वहां एक छोटा सा मंदिर बनाकर पूजा-अर्चना करनी शुरू कर दी और यह धीरे-धीरे बहनों के आस्था का केंद्र बन गया।

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