जगदलपुरः Bejod Bastar : छत्तीसगढ़ में सरकार किसानों की आजीविका पर सबसे ज्यादा ध्यान दे रही है और इसके लिए बस्तर सबसे चुनौतीपूर्ण रहा है, पर मुख्यमंत्री की पहल बस्तर के किसानों के लिए नई संभावनाएं लेकर आई है। इसके लिए ऐसे क्षेत्र को चुना गया जो नक्सल दहशत और मुश्किल इलाके के तौर पर जाना जाता था। जहां खेती किसानी हमेशा ही स्थानीय लोगों के लिए नामुमकिन सी बात थी लोगों को पलायन और बेरोजगारी से जूझना पड़ता था। अब ऐसे पहाड़ी क्षेत्रों पर बस्तर कॉफी की खुशबू महक रही है जहां पहले बारूद की गंध ने युवाओं को गुमराह कर रखा था।
Bejod Bastar : सरकार ने बस्तर की आम जनजीवन में शामिल सामूहिकता के भाव को ध्यान में रखते हुए सामूहिक खेती के प्रयोग के तौर पर बस्तर के झीरम, दरभा, डिलमिली, ककालगुर इरिकपाल ,की पहाड़ियों को कॉफी के लिए तैयार करना शुरू किया है। यहां स्थानीय किसानों को सामूहिक तौर पर काफी उत्पादन से जोड़ा जा रहा है। आमतौर पर समुद्री तल से 500 मीटर की ऊंचाई काफी के पौधों के लिए जरूरी होती है। दरभा विकासखंड के अधिकांश गांवों में यह ऊंचाई 687 से 800 मीटर ऊंचाई तक है। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के हॉर्टिकल्चर विभाग के कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर के पी सिंह बताते हैं कि छत्तीसगढ़ में बस्तर कॉफी उत्पादन के लिए अनुकूल है, क्योंकि यहां 500 मीटर से ज्यादा ऊंची पहाड़ियां हैं और खेती के लिए पर्याप्त स्लोप पहाड़ियों पर मिलता है। उद्यानिकी विभाग और जिला प्रशासन के सहयोग से 300 एकड़ से अधिक पर कॉफी का उत्पादन अभी शुरु हो चुका है। जिन विश्व प्रसिद्ध कॉफी की किस्म का उत्पादन यहां पर किया जा रहा है जिसमें कॉफी अरेबिका, सेमरेमन, चन्द्रगिरी द्वारफ़, कॉफी रुबस्टा प्रमुख है।
Bejod Bastar : सरकार का खेती और किसान परिवार की आजीविका दोनों पर ध्यान है, जिससे काफी के इन बागानों को तैयार करने में लगे किसानों के परिवार की महिलाओं समूह से जोड़ा गया है। मनरेगा और डीएमएफटी की मदद से इन्हें नियमित रोजगार दिया जा रहा है। दरभा में जहां कॉफी की खेती की जा रही है। वहां आम, कटहल, सीताफल और काली मिर्च की भी खेती होगी। काफी के पौधे को छांव की जरूरत होती है लिहाजा इसके लिए सिलेटेंट के पेड़ लगाए जा रहे हैं, ताकि यहां बराबर छावं मिल सके। इन्हीं पेड़ों में काली मिर्च के पौधे को जोड़ा गया है ताकि वे इसके सहारे बढ़ सके बस्तर के नक्सल प्रभावित किसानों के चेहरे में कॉफी से होने वाली कमाई की मुस्कान देखी जा सकती है। खासतौर पर ग्रामीण इलाकों में महिला किसानों ने सरकार की इस पहल का स्वागत किया है। वो फाइनल प्रायोगिक तौर पर खेती का उत्पादन सफल होने के बाद बस्तर कॉफी ब्रांड से इस कॉफी का बाहरी बाजार में वितरण किया जाएगा। यह ब्रांड तैयार हो चुका है और उसकी कॉपी भी बाजार में मिल रही है। जल्द ही बस्तर में कॉफी का रकबा 5000 एकड़ तक पहुंचाया जाएगा जिसमें सैकड़ों आदिवासी किसानों को रोजगार मिल सकेगा और अपने खेत से मुनाफा भी हो सकेगा।
Bejod Bastar : बस्तर के जिन इलाकों से कभी बारूद की गंध आती थी आज वहां कॉफी की खुशबू की महक है। झीरम, दरभा, डिलमिली, इरिकापाल जैसे दुर्गम इलाके में जहां खेती-किसानी करना नामुमकिन था। लोगों पलायन और बेरोजगारी का दंश झेलने मजबूर थे, वहां उद्यानिकी विभाग और जिला प्रशासन की मदद से अरेबिका और रूबस्टा जैसी विश्व प्रसिद्ध कॉफी का उत्पादन हो रहा है। मौजूदा वक्त में यहां 300 एकड़ से अधिक भूमि पर कॉफी का रकबा है जिसे 5 हजार एकड़ तक करने का लक्ष्य है। कॉफी की खेती से न केवल आदिवासी किसानों की जिंदगी संवर रही है बल्कि देश में बस्तर की पहचान कॉफी हब के तौर पर हो रहा है।