'Arya Samaj' ki sthapna kab hui

Maharshi Dayanand Saraswati Birth Anniversary : महर्षि दयानंद सरस्वती ने जाने कब और कैसे की थी ‘आर्य समाज’ की स्थापना…

Maharshi Dayanand Saraswati Birth Anniversary : महर्षि दयानंद सरस्वती ने जाने कब और कैसे की थी 'आर्य समाज' की स्थापना...

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Modified Date: February 12, 2023 / 06:17 PM IST
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Published Date: February 12, 2023 6:13 pm IST

नई दिल्ली । Maharshi Dayanand Saraswati Birth Anniversary आज महर्षि दयानंद सरस्वती की 200वीं जयंती है। महर्षि दयानंद सरस्वती ने देश के उत्थान के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। यही कारण है कि लोग स्वामी दयानंद सरस्वती को आज भी पूज्य भाव से याद करते है। उन्होंने भले ही अपने भौतिक शरीर का दशकों पहले त्याग कर दिया हो लेकिन उनकी सोच और उनकी विचार आज भी मानव समाज के बीच जीवित है। शायद यही महर्षि दयानंद सरस्वती की सबसे बड़ी पूंजी है।

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‘Arya Samaj’ ki sthapna kab hui महर्षि दयानंद सरस्वती ने 1846 में मात्र 21 वर्ष की आयु में सन्यासी जीवन का चुनाव किया और अपने घर से विदा ली। उनमे जीवन सच को जानने की इच्छा प्रबल थी, जिस कारण उन्हें सांसारिक जीवन व्यर्थ दिखाई दे रहा था, इसलिए ही इन्होने अपने विवाह के प्रस्ताव को ना बोल दिया। इस विषय पर इनके और इनके पिता के मध्य कई विवाद भी हुए पर इनकी प्रबल इच्छा और दृढता के आगे इनके पिता को झुकना पड़ा। उन्होंने आत्म ज्ञान की प्राप्ति के लिए अपना घर छोड़ दिया और स्वयं को ज्ञान के जरिये मूलशंकर तिवारी से महर्षि दयानंद सरस्वती बनाया।

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Maharshi Dayanand Saraswati Birth Anniversary 1846 में घर से निकलने के बाद उन्होंने सबसे पहले अंग्रेजो के खिलाफ बोलना प्रारम्भ किया, उन्होंने देश भ्रमण के दौरान यह पाया, कि लोगो में भी अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आक्रोश हैं, बस उन्हें उचित मार्गदर्शन की जरुरत है, इसलिए उन्होंने लोगो को एकत्र करने का कार्य किया। 1863 से 1875 ई. तक स्वामी जी देश का भ्रमण करके अपने विचारों का प्रचार करते रहें। उन्होंने वेदों के प्रचार का बीडा उठाया और इस काम को पूरा करने के लिए संभवत: 7 या 10 अप्रैल 1875 ई. को ‘आर्य समाज’ नामक संस्था की स्थापना की। शीघ्र ही इसकी शाखाएं देश-भर में फैल गई। देश के सांस्कृतिक और राष्ट्रीय नवजागरण में आर्य समाज की बहुत बड़ी देन रही है।

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‘Arya Samaj’ ki sthapna kab hui  हिन्दू समाज को इससे नई चेतना मिली और अनेक संस्कारगत कुरीतियों से छुटकारा मिला। स्वामी जी एकेश्वरवाद में विश्वास करते थे। उन्होंने जातिवाद और बाल-विवाह का विरोध किया और नारी शिक्षा तथा विधवा विवाह को प्रोत्साहित किया। उनका कहना था कि किसी भी अहिन्दू को हिन्दू धर्म में लिया जा सकता है। इससे हिंदुओं का धर्म परिवर्तन रूक गया।

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