Shardiya Navratri 2022: आज से शारदीय नवरात्रि प्रारंभ हो रहा है। घट स्थापना का शुभ मुहूर्त प्रातः काल 6.11 बजे से भी प्रारंभ हो जाएगा। अभिजीत मुहूर्त 11.30 बजे से शुरू होगा। प्रतिपदा तिथि पूरे दिन है। नवरात्रि में इसी तिथि में घट स्थापना की जाती है। सोसायटियों से लेकर मंदिरों में विशेष प्रकार की तैयारी की गई हैं। घरों में जहां श्रद्धालु दुर्गा मां की पूजा करेंगे, वहीं मंदिरों में सुबह से ही मां के दर्शन करने वालों की भीड़ जुटने लगेगी।
● सप्त धान्य (7 तरह के अनाज)
● मिट्टी का एक बर्तन जिसका मुँह चौड़ा हो
● पवित्र स्थान से लायी गयी मिट्टी
● कलश, गंगाजल (उपलब्ध न हो तो सादा जल)
● पत्ते (आम या अशोक के)
● सुपारी
● जटा वाला नारियल
● अक्षत (साबुत चावल)
● लाल वस्त्र
● पुष्प (फ़ूल)
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घटस्थापना की विधि में देवी का षोडशोपचार पूजन किया जाता है। घटस्थापना की विधि के साथ कुछ विशेष उपचार भी किए जाते हैं। पूजाविधि के आरंभ में आचमन, प्राणायाम, देशकाल कथन करते हैं। तदुपरांत व्रत का संकल्प करते हैं। संकल्प के उपरांत श्री महागणपति पू्जन करते हैं। इस पूजन में महागणपति के प्रतीक स्वरूप नारियल रखते हैं। व्रत विधान में कोई बाधा न आए एवं पूजा स्थल पर सात्विक भाव आकृष्ट हो सकें इसलिए यह पूजन किया जाता है। श्री महागणपति पूजन के उपरांत आसन शुद्धि करते समय भूमि पर जल से त्रिकोण बनाते हैं। तदउपरांत उसपर पीढा रखते हैं। आसन शुद्धि के उपरांत शरीर शुद्धि के लिए षडन्यास किया जाता है। तत्पश्चात पूजा सामग्री की शुद्धि करते हैं।
तदुपरांत देवी आवाहन के लिए कुंभ अर्थात कलश से प्रार्थना करते हैं, देव-दानवों द्वारा किए समुद्र मंथन से उत्पन्न हे कुंभ, आपके जल में स्वयं श्रीविष्णु, शंकर, सर्व देवता, पितरों सहित विश्वेदेव सर्व वास करते हैं। श्री देवी मां के आवाहन के लिए मैं आपसे प्रार्थना करता हूं। घट स्थापना करने के पश्चात नवरात्रि व्रत का और एक महत्त्वपूर्ण अंग है अखंडदीप स्थापना।
जिस स्थान पर दीप की स्थापना करनी है, उस भूमि पर वास्तु पुरुष का आवाहन करते हैं। जिस स्थान पर दीप की स्थापना करनी है, उस भूमि पर जल का त्रिकोण बनाते हैं। उस त्रिकोण पर चंदन, फूल एवं अक्षत अर्पण करते हैं। दीप के लिए आधार यंत्र बनाते हैं। तदुपरांत उसपर दीप की स्थापना करते हैं।
दीप प्रज्वलित करते हैं। इस प्रज्वलित दीप का पंचोपचार पूजन करते हैं। नवरात्रि व्रत निर्विघ्न रूप से संपन्न होने के लिए दीप से प्रार्थना करते हैं। कुल की परंपरा के अनुसार इस दीप में घी अथवा तेल का उपयोग करते हैं। कुछ परिवारों में घी के एवं तेल के दोनों ही प्रकार के दीप जलाए रखने की परंपरा है।
कलश से प्रार्थना करने के उपरांत पूर्णपात्र में सर्व देवताओं का आवाहन कर उनका पूजन करते हैं। तदुपरांत आवाहन में कोई त्रुटि रह गई हो, तो क्षमा मांगते हैं। क्षमायाचना करने से पूजक का अहं घटता है तथा देवताओं की कृपा भी अधिक होती है।
कलश पर रखे पूर्णपात्र पर पीला वस्त्र बिछाते हैं। उस पर कुमकुम से नवार्णव यंत्र की आकृति बनाते हैं। मूर्ति, यंत्र और मंत्र ये किसी भी देवता के तीन स्वरूप होते हैं। ये अनुक्रमानुसार अधिक सूक्ष्म होते हैं। नवरात्रि में किए जाने वाले देवीपूजन की यही विशेषता है कि, इसमें मूर्ति, यंत्र और मंत्र इन तीनों का उपयोग किया जाता है। सर्वप्रथम पूर्णपात्र में बनाए नवार्णव यंत्र की आकृति के मध्य में देवी की मूर्ति रखते हैं। मूर्ति की दाईं ओर श्री महाकाली के तथा बाईं ओर श्री महासरस्वती के प्रतीक स्वरूप एक-एक सुपारी रखते हैं। मूर्ति के चारों ओर देवी के नौ रूपों के प्रतीक स्वरूप नौ सुपारियां रखते हैं। अब देवी की मूर्ति में श्री महालक्ष्मी का आवाहन करने के लिए मंत्रोच्चारण के साथ अक्षत अर्पित करते हैं। मूर्ति की दाईं और बाईं ओर रखी सुपारियों पर अक्षत अर्पण कर क्रम के अनुसार श्री महाकाली और श्री महासरस्वती का आवाहन करते हैं। मूर्ति की दाईं ओर रखी सुपारी पर अक्षत अर्पण कर श्री महाकाली और बाईं ओर रखी सुपारी पर श्री महासरस्वती का आवाहन करते हैं। तत्पश्चात नौ सुपारियों पर अक्षत अर्पण कर नवदुर्गा के नौ रूपों का आवाहन करते हैं तथा इनका वंदन करते हैं।