ऋतिक रोशन की फिल्म ‘सुपर 30’ रिलीज हो चुकी है फिल्म को विकास बहल ने डायरेक्ट किया है। फिल्म में ऋतिक रोशन, पंकज त्रिपाठी, आदित्य श्रीवास्तव, मृणाल ठाकुर लीड रोल में हैं, फिल्म की कहानी बिहार के ‘सुपर 30’ कोचिंग संस्थान के संस्थापक आनंद कुमार की लाइफ से इंस्पायर है।
फिल्म कहानी शुरु होती है आनंद कुमार (ऋतिक रोशन) से, जिसे शिक्षामंत्री रामसिंह (पंकज त्रिपाठी) गोल्ड मेडल देते हैं, उससे ढेर सारे वादे करते हैं कि जरूरत आने पर वो उनकी हर संभव मदद करेंगे, क्योंकि वो देश और बिहार की शान हैं।
अब आनंद कुमार मैथमेटिशियन बनने के लिए अपने खुद के फॉर्मिले बनाते हैं, इसी बीच आनंद की लाइफ का सबसे खुशी का पल आता है, जब उसे ऑस्कफॉर्ड न्यूनिवर्सिटी में पढ़ाने का मौका मिलता है लेकिन गरीबी के चलते आनंद वहां तक नहीं पहुंच पाता। ऊधर, उसका दिल टूट जाता है ऐसे में आनंद कुमार की गरीबी का फायदा उठाते हैं एक कोचिंग संस्थान के टीचर लल्लन सिंह, अब आनंद बच्चों को आईआईटी की कोचिंग देते हैं. लेकिन, उन्हें अहसास होता कि राजा का बेटा राजा बन रहा है लेकिन जो हकदार है उसे हक नहीं मिल रहा है, ऐसे में वो डिसाइड करते हैं कि वो खुद गरीब बच्चों को आईआईटी कोचिंग देंगे वो भी फ्री में। अब उनकी सुपर 30 बनने में कौन-कौन सी परेशानियां आती हैं, एजुकेशन सिस्टम में कैसे छोल होता है, इसी बीच ‘सुपर 30’ की नींव आनंद कैसे रखते हैं, ये जानने के लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी।
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अब बात ऋतिक रोशन की- जो ढाई साल बाद फिल्म में लौट हैं, इससे पहले उन्हें साल 2017 में काबिल में देखा गया था और अब उनकी फिल्म ‘सुपर 30’ रिलीज हुई है। फिल्म में आनंद कुमार के रोल में ऋतिक को एक्सेप्ट करने में दर्शकों को थोड़ा वक्त लगता है, क्योंकि आपने ऋतिक को कभी ऐसे रोल में नहीं देखा। मतलब आपने हमेशा ऋतिक को नाचते और रोमांस करते सुपर हीरो वाली इमेज में देखा है। लेकिन, ‘सुपर 30’ में ऋतिक का कंपलिट मेटओवर हो गया है, ग्रीक गॉड जैसे ऋतिक डस्की लुक वाले आम आदमी बनकर सड़क पर पापड़ बेचते दिख रहे हैं, ये हजम करना थोड़ा मुश्किल। वहीं, उनके एक्सेंट को लेकर काफी चर्चा हो रही थी। बिहार बोली बोलने के लिए उन्होंने काफी मेहनत की है, लेकिन वो बोल नहीं पा रहे थे। यही कारण था कि डायरेक्टर ने उन्हें लंबे डायलॉग्स नहीं दिए। उनपर जबरन बिहारी टोन थोपी गई है, जो निराश करती है, फिल्म में पंकज त्रिपाठी ने एजुकेशन मिनिस्टर के रोल में जान डाली है। वहीं, मृणाल ठाकुर अपने छोटे से रोल में जमीं हैं, आदित्य श्रीवास्तव भी रोल में जमे हैं। विकास बहल ने अपनी तरफ से कोशिश की है बायोपिक में जान डालने की, लेकिन आनंद कुमार की लाइफ को दिखाने में वो काफी पिछड़ गए हैं। फिल्म का पहला पार्ट दमदार है लेकिन सेकेंड हाफ में भटक जाती है, ड्रामा ज्यादा डाल दिया गया है। वहीं, आनंद कुमार के डार्क लुक में ऋतिक रोशन से ऑडियन्स से कनेक्ट नहीं हो पाता, आनंद कुमार के टीचिंग एक्सेंट को सीखने के लिए ऋतिक ने जमकर मेहनत की है, कुल मिलाकर कहा जाए तो इस फिल्म के जरिए बॉलीवुड के ग्रीक गॉड का कंपलिट मेकओवर किया गया है।
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अब बात फिल्म की कमजोर कड़ी की, हर फिल्म परफेक्ट नहीं बनती, उसमें कुछ ना कुछ कमी जरूर रहती है, ‘सुपर 30’ में भी कमियां हैं। फिल्म का सबसे दमदार डायलॉग है कि राजा का बेटा राजा नहीं बनेगा, जो हदकार वही राजा बनेगा। तो भईया बॉलीवुडवालों को ये कौन बताएगा कि स्टार का बेटा हर रोल नहीं कर सकता जो हकदार है उसे ही करना चाहिए।
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सीधी बात नो बकवास : दर्शकों को ये फिल्म देखनी चाहिए एजुकेशन सिस्टम की खामियों के लिए और टीचर्स को भी देखनी चाहिए जो कोचिंग माफियाओं के जाल में फंस जाते हैं और मोटी फीस के चक्कर में हकदार को हक नहीं दिला पाते, ये एक मोटिवेशनल स्टोरी है, जो फैमिली के साथ आप देख सकते हैं।
फिल्म 3 स्टार /5 स्टार
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