नई दिल्ली। men will be pregnant : यह तो हम सब की जानते है कि महिलाएं बच्चों को जन्म देती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि पुरूष भी महिलाओं की तरह बच्चों को जन्म दे सकते है। यह कारनामा पहले भी हो चुका है। 20वीं सदी में एक फिलॉस्फर हुआ करते थे जिन्हे जिन्हें मेडिकल साइंस की दुनिया में जोसेफ फ्लेचर के नाम से जाना जाता है। उन्हें बायोएथिक्स का पितामह कहा जाता है। 1974 में उन्होंने एक किताब लिखी, ‘द एथिक्स ऑफ जेनेटिक कंट्रोल’। जिसमें उन्होंने पुरुषों में यूट्रस ट्रांसप्लांट का आइडिया दिया। उन्होंने कहा कि यूट्रस ट्रांसप्लांट के जरिए पुरुष भी बच्चे पैदा कर सकते हैं। महिलाओं की तरह ही पुरुषों के चेस्ट में भी निपल्स, मैमरी ग्लैंड्स और पिट्यूटरी ग्लैंड्स होती हैं, जिससे वे बच्चे को अपना दूध भी पिला सकते हैं।
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men will be pregnant : हालही में रितेश आने वाली फिल्म में बच्चे के बायोलॉजिकल मदर के किरदार में नजर आएंगे। जिसका नाम ‘मिस्टर मम्मी’ है। इसमें अभिनेता रितेश देशमुख प्रेग्नेंट नजर आ रहे हैं। फिल्म में पत्नी जेनेलिया डिसूजा की तरह ही रितेश देशमुख में भी प्रेग्नेंसी के सारे लक्षण हूबहू दिखते हैं। मर्द को प्रेग्नेंट देखकर लोग ठहाके लगा रहे हैं। लेकिन, क्या होगा अगर पुरुष सच में प्रेग्नेंट होने लगें और बच्चे को जन्म देने में कामयाब हो जाएं ?
men will be pregnant : हैरान मत हों, भविष्य में सच में पुरुष न सिर्फ प्रेग्नेंट हो सकेंगे, बल्कि बच्चों को जन्म देने से लेकर ब्रेस्टफीडिंग तक करा सकेंगे, जो अब तक एक महिला ही कर पाती है। ऐसा हम नहीं, वैज्ञानिक कह रहे हैं। वे लगातार इसके लिए रिसर्च कर रहे हैं और धीरे-धीरे कामयाबी की तरफ भी बढ़ रहे हैं।
men will be pregnant : इस फिल्म में रितेश बच्चे के बायोलॉजिकल मदर के किरदार में हैं। आपको बता दें कि ऐसा पहले भी हो चुका है और वो भी हकीकत में। ऑफिशियल डाक्यूमेंट के नजरिए से देखे तो थॉमस बेट्टी दुनिया के पहले ऐसे पति थे जिन्होंने बेटी को जन्म दिया था। थॉमस का मामला थोड़ा अलग था। थॉमस पहले महिला थे बाद में उन्होंने शादी करने के लिए अपना सेक्स चेंज करा लिया था और वो पुरुष बन गए थे लेकिन इस दौरान उन्होंने अपना गर्भाशय नहीं हटवाया थां हालांकि बच्ची का जन्म ऑपरेशन के जरिए हुआ था और थॉमस अपनी बेटी को दूध नहीं पीला सकते थे।
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महिलाओं और पुरुषों की शरीरिक बनावट में रिप्रॉडक्टिव अंगों के हिसाब से काफी अंतर होता है। बायोएथिक्स की दुनिया में एक वक्त पर जोसेफ फ्लेचर का सिक्का चलता था। इन्हें बायोएथिक्स का पितामह भी कहा गया है। साल 1974 में फ्लेचर ने यूट्रस ट्रांसप्लांट को लेकर एक कॉसेंप्ट दिया। जोसेफ फ्लेचर ने अपनी किताब ‘द एथिक्स ऑफ जेनेटिक कंट्रोल’ में कहा कि यूट्रस ट्रांसप्लांट के जरिए आदमी भी बच्चों को जन्म दे सकते हैं। इसके साथ ही वह बच्चों को दूध भी पिला सकते है।
दुनिया के कई रिप्रॉडक्टिव एंडोक्रिनोलॉजिस्ट भी इस बात को मानते हैं कि इन्फर्टिलिटी के बढ़ते केस की वजह से कल को पुरुषों को भी बच्चों को जन्म देना पड़ सकता है। मेडिकल साइंस हार्मोनल थेरेपी, जेंडर चेंज और रिप्रॉडक्टिव सिस्टम तैयार करने जैसी चीजें इजाद कर चुका है। अगर वह यूट्रस ट्रांसप्लांट को सही से अंजाम दे पाता है तो वो दिन दूर नहीं जब आईवीएफ के जरिए पुरुष भी बच्चे पैदा कर पाएंगे हैं।
मेडिकल साइंस इन 4 चुनौतियों में से 3 को पहले ही पार कर चुकी है। हॉर्मोनल थेरेपी के जरिए इंजेक्शन देकर हॉर्मोंस की कमी पूरी की जा सकती है। सर्जरी के जरिए पुरुषों में जरूरी रिप्रोडक्टिव सिस्टम तैयार किया जा सकता है। फिलहाल इसका इस्तेमाल ट्रांसजेंडर महिलाओं का जेंडर चेंज करने में हो रहा है। स्पर्म को फर्टिलाइज करने के लिए जरूरी ओवरी का विकल्प आईवीएफ के रूप में हमारे सामने मौजूद है। आखिरी चैलेंज है यूट्रस, जो ट्रांसप्लांट के जरिए मिल सकता है।