लखनऊ: जीरो टॉलरेंस नीति के तहत काम कर रही सरकार ने प्रदेश के 1000 अधिकारियों—कर्मचारियों को काम से निकालने का नोटिस जारी कर दिया है। सीएम योगी आदित्यनाथ ने भ्रष्ट और अयोग्य कर्मचारियों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति देने का फैसला लिया है। इसी के तहत सभी कर्मचारियों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति का नोटिस जारी किया गया है। बताया जा रहा है कि अनिवार्य सेवानिवृत्ति के इस आदेश में कई आईएएस अधिकारियों का नाम भी शामिल है। इस बारे में केंद्र को भी सूचित कर दिया गया है।
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सूत्रों के हवाले से मिली जानकारी के अनुसार अनिवार्य सेवानिवृत्ति के लिए बनाई गई सूची में परिवहन विभाग में विभिन्न कैडरों के 37, राजस्व विभाग के 36 और बेसिक शिक्षा विभाग के 26 कर्मियों का नाम शामिल है। बताया गया कि जांच के दौरान सूची में शामिल सभी अधिकारी और कर्मचारी अयोग्य पाए गए थे। इसी के चलते सरकार ने उनके खिलाफ ऐसा फैसला लिया है।
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पंचायती राज विभाग के 25 अधिकारियों के अलावा लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) के 18, श्रम विभाग और संस्थानिक वित्त विभाग में 16-16 और वाणिज्यिक कर विभाग में 16 लोगों को जबरन सेवानिवृत्ति दे दी गई है। नियुक्ति विभाग के सूत्रों ने कहा कि विदेश के असाइनमेंट्स पर अतिरिक्त समय तक रहने के कारण पांच आईएएस अधिकारियों को पहले ही सेवानिवृत्त मान लिया गया है। ये अधिकारी शिशिर प्रियदर्शी (1980 बैच) अतुल बगाई (1983 बैच), अरुण आर्य (1985 बैच), संजय भाटिया (1990 बैच) और रीता सिंह (1997 बैच) हैं।
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मुख्यमंत्री ने यह भी निर्देश दिया है कि भ्रष्ट अधिकारियों को दंड के तौर पर प्रतीक्षा सूची में रखा जाना चाहिए। राज्य सरकार ने निलंबित चल रहे प्रांतीय सिविल सेवा (पीसीएस) अधिकारियों के खिलाफ भी जांच शुरू कर दी है। इनमें घनश्याम सिंह, राजकुमार द्विवेदी, छोटेलाल मिश्रा, अंजू कटियार, विजय प्रकाश तिवारी, शैलेंद्र कुमार, राज कुमार, सत्यम मिश्रा, देवेंद्र कुमार और सौजन्य कुमार विकास हैं। टर्मिनेट किए गए पीसीएस में अशोक कुमार शुक्ला, अशोक कुमार लाल और रणधीर सिंह दुहान हैं, वहीं प्रभु दयाल का डिमोशन कर उन्हें उप जिलाधिकारी से तहसीलदार बना दिया गया है और गिरीश चंद्र श्रीवास्तव का भी डिमोशन कर दिया गया है।
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