वर्ष 2025: विपक्ष में कांग्रेस का कद घटेगा या बढ़ेगा, दिल्ली और बिहार से होगा तय |

वर्ष 2025: विपक्ष में कांग्रेस का कद घटेगा या बढ़ेगा, दिल्ली और बिहार से होगा तय

वर्ष 2025: विपक्ष में कांग्रेस का कद घटेगा या बढ़ेगा, दिल्ली और बिहार से होगा तय

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Modified Date: January 1, 2025 / 06:13 PM IST
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Published Date: January 1, 2025 6:13 pm IST

(अनवारुल हक)

नयी दिल्ली, एक जनवरी (भाषा) कांग्रेस के लिए वर्ष 2024 ‘‘कभी खुशी गम, कभी गम’ वाला रहा और अब नया साल उसके लिए चुनौती के साथ नई उम्मीदें जगाने वाला भी हो सकता है। चुनौती दिल्ली और बिहार के विधानसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करने तथा विपक्ष में अपने कद को मजबूत करने की होगी तो बेलगावी में कार्य समिति की घोषणा के मुताबिक संगठन को मजबूत करके और राष्ट्रव्यापी अभियान चलाकर वह भविष्य में अपने लिए संभावनाओं के नए द्वार खोल सकती है।

वर्ष 2024 उसके लिए बेहतर संभावनाओं की उम्मीद जगाने वाला था लेकिन साल के आखिर में महाराष्ट्र, हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनावों ने पार्टी की उम्मीदों पर फिर से ब्रेक लगा दिया।

पिछले दिनों पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने पत्रकारों के साथ ऑफ द रिकॉर्ड बातचीत में 2024 का उल्लेख करते हुए कहा, ‘‘यह हमारे के लिए कभी खुशी, कभी गम वाला साल था।’’

वर्ष 2025 में कांग्रेस के सामने पहली बड़ी चुनौती दिल्ली विधानसभा चुनाव है जहां वह पिछले दो चुनावों से अपना खाता भी नहीं खोल सकी।

उसने दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए अब तक कुल 47 उम्मीदवार घोषित किए हैं और इस सूची से उसने यह संकेत देने का प्रयास किया है कि वह पूरी संजीदगी से चुनाव लड़ने और भाजपा तथा आम आदमी पार्टी से इतर तीसरा ध्रुव बनने का प्रयास करेगी। कांग्रेस ने नई दिल्ली सीट से आप के संयोजक अरविंद केजरीवाल के खिलाफ दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के पुत्र और पूर्व सांसद संदीप दीक्षित को चुनावी मैदान में उतारा है।

कांग्रेस की आक्रामकता का नतीजा है कि आम आदमी पार्टी ने आरोप लगाया कि देश की मुख्य विपक्षी पार्टी दिल्ली में भाजपा की मदद कर रही है। उसने पूर्व केंद्रीय मंत्री अजय माकन के एक बयान से नाराजगी जताते हुए कांग्रेस को ‘इंडिया’ गठबंधन से बाहर निकालने की पैरवी भी की थी।

दिल्ली में अगर कांग्रेस कुछ सीटें जीतने में सफल रहती है तो राष्ट्रीय राजधानी में उसमें नई जान आएगी, लेकिन पिछले चुनावों की तरह विफल रहने पर न सिर्फ दिल्ली, बल्कि ‘इंडिया’ गठबंधन में भी उसकी स्थिति को और धक्का लगेगा।

चुनावी नजरिये से इस साल कांग्रेस के लिए दूसरी बड़ी चुनौती बिहार विधानसभा चुनाव है जो अक्टूबर-नवंबर में संभावित है।

बिहार में कांग्रेस ‘इंडिया’ गठबंधन में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के छोटे भाई की भूमिका में है, लेकिन यदि वहां विपक्षी गठबंधन को सत्ता हासिल करनी है तो इसमें कांग्रेस का चुनावी प्रदर्शन बहुत मायने रखेगा।

वर्ष 2020 के चुनाव में विपक्षी गठबंधन बहुमत से कुछ दूर रह गया था तो उसके लिए कांग्रेस के कमजोर प्रदर्शन को जिम्मेदार माना गया था। उस चुनाव में कांग्रेस 70 सीटों पर लड़ी थी, लेकिन सिर्फ 19 जीत पाई थी।

कांग्रेस के लिए बिहार में गठबंधन में चुनाव लड़ने के लिए सम्मानजनक सीटें हासिल करना पहली चुनौती होगी और फिर पिछली बार से बेहतर प्रदर्शन करना दूसरी बड़ी चुनौती होगी। इस तरह से बिहार के नतीजे भी यह तय करेंगे कि विपक्षी धड़े में कांग्रेस का कद घटेगा या बढ़ेगा।

कांग्रेस ने कुछ दिनों पहले कर्नाटक के बेलगावी में ‘संगठन सृजन’ कार्यक्रम की घोषणा की। उसने कहा कि वह हर स्तर पर संगठन को मजबूती देगी तथा नए लोगों को जिम्मेदारी देने के साथ ही जवाबदेही तय की जाएगी।

कार्य समिति की बैठक में कांग्रेस ने ‘संगठन सृजन’ की तत्काल शुरुआत करने का संकल्प लिया और कहा कि बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर के ‘‘अपमान’’ तथा संविधान पर हमले के मुद्दे को गांव-गांव तक पहुंचाने के लिए वह राष्ट्रव्यापी अभियान शुरू करेगी।

उसने कहा कि 13 महीनों तक चलने वाले उसके अभियान के तहत पदयात्राएं करने के साथ ही ब्लॉक, जिला तथा प्रदेश स्तर पर संगोष्ठियों एवं जनसभाओं का आयोजन होगा।

देश की सबसे पुरानी पार्टी ने बीते साल लोकसभा चुनाव में कुल 543 सीट में से 99 सीटें हासिल कीं और अपने गठबंधन के सहयोगियों के साथ मिलकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को वह बहुमत से आंकड़े दूर रोकने में सफल रही।

इससे पहले, वर्ष 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को क्रमश: 44 और 52 सीट हासिल हुईं थी तथा उसे संसद के निचले सदन में नेता प्रतिपक्ष का पद भी नहीं मिल सका था। इस लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी नेता प्रतिपक्ष बने।

लोकसभा चुनाव में तुलनात्मक रूप से अच्छे प्रदर्शन के बाद कांग्रेस के रणनीतिकारों को उम्मीद थी कि विधानसभा चुनावों में पार्टी की स्थिति और मजबूत होगी। लेकिन लोकसभा चुनाव में संविधान को बड़ा मुद्दा बनाने वाली कांग्रेस का विधानसभा चुनावों में प्रदर्शन निराशाजनक था।

कांग्रेस के लिए इस संसदीय चुनाव में बड़ी सफलता यह भी रही कि उसने भाजपा के ‘अबकी बार, 400 पार’ के नारे के मुकाबले के लिए ‘संविधान बदलने’ वाला एक ऐसा विमर्श खड़ा किया कि अनुसूचित जाति और जनजाति के एक बड़े हिस्से का उसे समर्थन मिला।

कांग्रेस अभी हरियाणा की हार से उबरी भी नहीं थी कि महाराष्ट्र में उसे और उसके गठबंधन ‘महा विकास आघाड़ी’ को बड़ा झटका लगा। यह गठबंधन 288 सदस्यीय विधानसभा में करीब 50 सीट ही हासिल कर सका, जबकि भाजपा की अगुवाई वाली ‘महायुति’ ने 230 से अधिक सीट जीतीं।

जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस का प्रदर्शन निराशाजनक रहा, वह दहाई का आंकड़ा भी नहीं छू सकी।

उसके लिए झारखंड विधानसभा चुनाव का नतीजा उत्साहजनक रहा, जहां उसने तमाम अटकलों को दरकिनार करते हुए 16 सीट हासिल कीं और ‘इंडिया’ गठबंधन के एक मजबूत घटक के रूप में उभरी। यह गठबंधन प्रदेश की 81 सदस्यीय विधानसभा में 56 सीट हासिल करके अपनी सत्ता बरकरार रखने में सफल रहा।

बीते वर्ष कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाद्रा की चुनावी पारी का भी आगाज हुआ। वह केरल वायनाड के उपचुनाव में जीत हासिल करके पहली बार लोकसभा पहुंचीं।

भाषा हक हक मनीषा

मनीषा

 

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