Maoist Meena Netam: 'जिंदगी से भी बदतर है नक्सलियों की मौत'.. कलम थामने की उम्र में थाम लिया था हथियार, हॉस्टल से भागकर मासूम श्यामबती कैसे बन गई DVCM मीना, पढ़ें |

Maoist Meena Netam: ‘जिंदगी से भी बदतर है नक्सलियों की मौत’.. कलम थामने की उम्र में थाम लिया था हथियार, हॉस्टल से भागकर मासूम श्यामबती कैसे बन गई DVCM मीना, पढ़ें

Who was dvc member maoist meena netam? 25 साल पहले जब मीना घर छोड़कर नक्सल संगठन में शामिल हुई थी तब उसका नाम श्यामबती था। बताया गया कि कक्षा आठवीं में पढ़ने के दौरान ही मीना ने घर छोड़ दिया था।

Edited By :   Modified Date:  October 9, 2024 / 08:46 PM IST, Published Date : October 9, 2024/8:46 pm IST

दंतेवाड़ा: छत्तीसगढ़ में सक्रिय माओवादियों की जिंदगी से जुड़ी कहानियाँ काफी हैरान करती है। बात अगर नक्सली संगठन के छोटे कद के नेताओं की करें तो उनका जीवन और भी दूभर होता है। (Who was dvc member maoist meena netam?) लाल क्रान्ति के बहकावे में आकर वे अपनी पूरी जिंदगी जंगल, पहाड़ों में छिप-छिपकर बिताते हैं। उन पर हर वक़्त पकड़े जाने या फिर मुठभेड़ का खतरा मंडराता रहता है। वे घनी आबादी वाले इलाको से दूर रहते है। जंगलों में न उनके खाने का कोई ठिकाना होता और न ही रहने का। बीमार होने की स्थिति में उन्हें इलाज भी नहीं मिलता और उनकी मौत हो जाती है। संगठन के बड़े नेता हर तरह से उनका शोषण करते है। इस तरह नक्सल गतिविधियों में शामिल रहने तक उनकी जिंदगी बेहद चुनौतीपूर्ण रहती है। इसकी तस्दीक आत्मसमर्पण करने वाले नक्सली खुद ही करते है।

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लेकिन आज हम बात नक्सलियों के मौत के बाद की स्थिति कर रहे है। मुठभेड़ में मारे जाने के बाद पुलिस उनके परिजनों से संपर्क करती है और उन्हें लाश सुपुर्द करती हैं। अक्सर सम्बन्धी या परिजन शव अपने साथ ले जाते है लेकिन जिनकी शिनाख्ती नहीं हो पाती उन शवों का अंतिम संस्कार खुद पुलिस के द्वारा किया जाता हैं। ऐसे में कहा जाता हैं कि नक्सलियों की न ही जिंदगी बेहतर होती और न ही मौत।

आज हम बात इसी तरह की एक महिला नक्सली की कर रहे जिसे बीते 4 अक्टूबर को सुरक्षाबलों के जवानों ने अन्य 30 माओवादियों के साथ ढेर कर दिया था। इस महिला नक्सली का नाम मीना नेताम है। (Who was dvc member maoist meena netam?) वह नारायणपुर जिले मोहंदी गाँव की रहने वाली थी। मीना नक्सल संगठन डीवीसी यानी डिविजनल कमेटी मेंम्बर थी और पूर्वी बस्तर डिवीजन इलाके के नक्सल गतिविधियों में सक्रिय थी। मीना नेताम पर आठ लाख रुपये का इनाम था। उसपर कई मुठभेड़ में शामिल होने के अलावा हत्या, लूट और सुरक्षाबलों के खिलाफ साजिश रचने जैसे गंभीर आरोप थे। पुलिस शव की शिनाख्ती के बाद पुलिस ने मीना के परिजनों से सम्पर्क किया था लेकिन उन्होंने उसका शव लेने से साफ़ इंकार कर दिया। जिसके बाद पुलिस ने ही उसका अंतिम संस्कार किया।

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मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़ मीना नेताम के दो बड़े भाई अगनुराम और रामप्रसाद ने महिला नक्सली मीना का शव स्वीकारने से मना कर दिया था। इतना ही नहीं बल्कि भाइयों ने यहाँ तक कह दिया कि वह मीना को नहीं जानते। ऐसा इसलिए कि 25 साल पहले जब मीना घर छोड़कर नक्सल संगठन में शामिल हुई थी तब उसका नाम श्यामबती था। बताया गया कि कक्षा आठवीं में पढ़ने के दौरान ही मीना ने घर छोड़ दिया था। वह छात्रावास से भाग गई थी जिसके बाद कभी वापस नहीं लौटी। परिजनों ने कहा कि उसके किये के लिए वह मीना को कभी माफ़ नहीं करेंगे।