(फाइल फोटो के साथ)
नयी दिल्ली, 27 दिसंबर (भाषा) संयमित और शांत स्वभाव के नेता, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को उर्दू शेरो-शायरी में गहरी रुचि थी और लोकसभा में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की नेता सुषमा स्वराज के साथ उनकी ये शायराना नोकझोंक सोशल मीडिया पर सबसे ज्यादा देखी जाने वाली संसदीय बहसों में शुमार की जाती है।
2011 में संसद में एक तीखी बहस के दौरान लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा ने भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरी प्रधानमंत्री सिंह के नेतृत्व वाली सरकार पर निशाना साधने के लिए वाराणसी में जन्मे शायर शहाब जाफरी के ‘शेर’ का सहारा लिया था।
उन्होंने बहस के दौरान शेर पढ़ते हुए कहा:
‘‘तू इधर उधर की न बात कर,
ये बता कि काफिला क्यों लुटा;
हमें रहजनों से गीला नहीं, तेरी रहबरी का सवाल है।’’
सिंह ने सुषमा के शेर का तल्खी भरे अंदाज में जवाब देने के बजाय अपने शांत लहजे में बड़ी विनम्रता से अल्लामा इकबाल का शेर पढ़ा जिससे सदन में पैदा सारा तनाव ही खत्म हो गया।
उन्होंने शेर कहा:
‘‘माना कि तेरी दीद के काबिल नहीं हूं मैं,
तू मेरा शौक देख, मेरा इंतजार देख।’’
साहित्य में रुचि रखने वाले दोनों नेताओं का 2013 में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर बहस के दौरान एक बार फिर आमना सामना हुआ।
सिंह ने सबसे पहले निशाना साधने के लिए मिर्जा गालिब का शेर चुना।
उन्होंने कहा:
‘‘हम को उनसे वफा की है उम्मीद,
जो नहीं जानते वफा क्या है’’।
स्वराज ने अपनी अनोखी शैली में इसके जवाब में अधिक समकालीन बशीर बद्र का शेर चुना और कहा:
, ‘‘कुछ तो मजबूरियां रही होंगी,
यूं कोई बेवफा नहीं होता।’’
जब संवाददाताओं ने उनकी सरकार पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों के बारे में सिंह से सवाल पूछे थे तो उन्होंने इसी तरह के शायराना अंदाज में जवाब दिया था।
उन्होंने कहा था:
‘‘हजारों जवाबों से अच्छी है मेरी खामोशी,
जो कई सवालों की आबरू ढक लेती है’’।
भारत के आर्थिक सुधारों के जनक और राजनीति की मुश्किल भरी दुनिया में आम सहमति बनाने वाले डॉ. सिंह का बृहस्पतिवार देर रात दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में निधन हो गया। वह 92 वर्ष के थे।
भाषा सुरभि नरेश
नरेश
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