What is electoral bond?: नई दिल्ली। आगामी मई-जून में देशभर में लोकसभा होने वाले है इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी तैयारी में जुटे सभी सियासी दलों को बड़ा झटका दिया हैं। सुप्रीम कोर्ट ने पार्टियों के नए इलेक्टोरल बॉन्ड्स पर प्रतिबन्ध लगा दिया हैं। कोर्ट ने अपने फैसले में इलेक्टोरल बॉन्ड सूचना के अधिकार का उल्लंघन माना है। इसके बाद लोगों के मन में एक सवाल जरूर उठ रहा है कि आखिर इलेक्टोरल बॉन्ड या चुनावी बॉन्ड है क्या? जिसको आज सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक बताते हुए इस पर रोक लगा दी है। साथ ही इस मामले में एसबीआई से तीन हफ्ते के अंदर जबाव मांगा।
What is electoral bond?: इलेक्टोरल बॉन्ड को चुनावी बॉन्ड भी कहा जाता है ये एक प्रकार का वचन पत्र होता है। ये आपको एसबीआई की कुछ ब्रांचों पर किसी भी भारतीय नागरिक या कंपनी को मिलता है। इस बॉन्ड की मदद से कोई भी नागरिक या कॉरपोरेट कंपनी किसी भी राजनीतिक दल को दान दे सकता है।
What is electoral bond?: चुनावी बॉन्ड की शुरूआत 2018 में हुई थी। चुनावी बॉन्ड को फाइनेंशियल (वित्तीय) बिल (2017) के साथ पेश किया गया था। 29 जनवरी, 2018 को नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने चुनावी बॉन्ड योजना 2018 को अधिसूचित किया था।
What is electoral bond?: चुनावी बॉन्ड को खरीदने के लिए सरकार ने जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर की 10 तारीख तय की है। चुनावी बॉन्ड हर तिमाही की शुरुआत में सरकार की ओर से 10 दिनों की अवधि के लिए बिकी के लिए उपलब्ध कराए जाते रहे हैं। लोकसभा चुनाव के साल में सरकार की ओर से 30 दिनों की अतिरिक्त अवधि तय किए जाने का प्लान था।
What is electoral bond?: इस बॉन्ड के जरिए अपनी पसंद की पार्टी को चंदा दिया जा सकता था। चुनावी बॉन्ड की शुरुआत करते हुए सरकार ने दावा किया था इससे राजनीतिक फंडिंग के मामलों में पारदर्शिता बढ़ेगी।
What is electoral bond?: बैंक चुनावी बॉन्ड सिर्फ उन्ही लोगों को देता था जिसका केवाईसी वेरिफाइड होता था। बॉन्ड पर चंदा देने वाले के नाम का जिक्र नहीं होता था। कोई भी भारतीय नागरिक, कॉरपोरेट और अन्य कंपनियां चुनावी बॉन्ड खरीद सकते था और राजनीतिक पार्टियां इस बॉन्ड को बैंक में भुनाकर रकम हासिल कर लेते थे।
What is electoral bond?: राजनीतिक पार्टी को सीधे चंदा देने की जगह चुनावी बॉन्ड के जरिए चंदा देने से, दी गई राशि पर इनकम टैक्स की धारा 80जीजीसी और 80जीजीबी के तहत यह छूट देने का प्रावधान है। हालांकि चुनावी बॉन्ड में निवेश करने वाले को आधिकारिक तौर पर कोई रिटर्न नहीं मिलता था।
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