अंतरधार्मिक विवाह पर उत्तराखंड के न्यायाधीश को निर्देश: पता करें क्या महिला पति के साथ जाना चाहती है |

अंतरधार्मिक विवाह पर उत्तराखंड के न्यायाधीश को निर्देश: पता करें क्या महिला पति के साथ जाना चाहती है

अंतरधार्मिक विवाह पर उत्तराखंड के न्यायाधीश को निर्देश: पता करें क्या महिला पति के साथ जाना चाहती है

:   Modified Date:  July 3, 2024 / 05:13 PM IST, Published Date : July 3, 2024/5:13 pm IST

नयी दिल्ली, तीन जुलाई (भाषा) एक महिला को दूसरे धर्म के अनुयायी उसके पति के बजाय माता-पिता के साथ रहने की अनुमति देने के छह साल से अधिक समय बाद, उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को एक व्यक्ति की ताजा याचिका पर संज्ञान लिया जिसमें उसने मांग की है कि उसकी पत्नी को उसके अभिभावकों के कब्जे से मुक्त किया जाए। न्यायालय ने सत्र न्यायाधीश से यह पता लगाने को कहा कि क्या वह अब पति के साथ रहना चाहती है।

अंतरधार्मिक विवाह को लेकर विवाद 2018 में शीर्ष अदालत पहुंचा था, जब याचिकाकर्ता मोहम्मद दानिश ने अपनी पत्नी को उसके माता-पिता के संरक्षण से मुक्त करने के निर्देश के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया था। उस समय उसकी पत्नी की उम्र 20 वर्ष थी।

तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने 17 मई, 2018 को महिला को उसके माता-पिता के पास वापस जाने की अनुमति दी थी, जिन्होंने दावा किया था कि दानिश द्वारा प्रस्तुत ‘निकाहनामा’ फर्जी था और उसने उनकी बेटी का अपहरण कर लिया था।

महिला से बातचीत करने के बाद न्यायाधीशों ने उसे उसके माता-पिता के साथ रहने की अनुमति दे दी थी और कहा था कि वयस्क होने के नाते वह अपनी इच्छा के अनुसार जीवन जीने के लिए “स्वतंत्र” है।

महिला ने तब उत्तराखंड के हल्द्वानी जिले में अपने माता-पिता के साथ जाने की इच्छा जताई थी। शीर्ष अदालत ने दानिश द्वारा अपनी पत्नी को पेश करने के लिए दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका का निपटारा कर दिया था, लेकिन उनकी शादी और ‘निकाहनामे’ के पहलू पर कोई चर्चा नहीं की थी।

पीठ ने कहा था, “हमने कुछ पूछताछ की, जिसके बाद हमें पता चला कि उसका दिमाग ठीक है और वह अपने माता-पिता के साथ रहना चाहती है। उपरोक्त बातों को ध्यान में रखते हुए, याचिकाकर्ता द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका निस्तारित की जाती है।”

बुधवार को न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की अवकाश पीठ ने दानिश द्वारा दायर नयी याचिका पर संज्ञान लिया, जिसमें दावा किया गया था कि उसकी पत्नी अब उसके पास वापस आना चाहती है।

पीठ ने कहा, ‘‘इस पर विचार करते हुए हम हल्द्वानी के प्रथम अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश को उस स्थान का दौरा करने और उसका बयान दर्ज करने का निर्देश देते हैं।’’ साथ ही पीठ ने राज्य प्रशासन को उसके आदेशों के अनुपालन में न्यायिक अधिकारी को सहायता प्रदान करने का निर्देश दिया।

पीठ ने न्यायिक अधिकारी को दो सप्ताह के भीतर बयान दर्ज करने और रिपोर्ट दाखिल करने को कहा। इसके एक सप्ताह बाद मामले की सुनवाई होगी।

मई 2018 में युवती के साथ अदालत कक्ष में आए उसके माता-पिता ने आरोप लगाया था कि उसके तथाकथित पति ने उसका अपहरण कर लिया था और एक “फर्जी” निकाहनामा (विवाह अनुबंध) तैयार किया था।

उत्तराखंड सरकार के वकील ने तब अदालत से कहा था कि निकाहनामा और विवाह प्रमाणपत्र फर्जी हैं। उन्होंने दावा किया था कि यह अपहरण का स्पष्ट मामला है और दानिश की याचिका खारिज की जानी चाहिए।

उत्तराखंड पुलिस ने महिला के माता-पिता की शिकायत के बाद कथित अपहरण की प्राथमिकी दर्ज कर उनको 2018 में दिल्ली से गिरफ्तार किया था।

दानिश ने इसके बाद पत्नी से मिलाने के लिये अदालत में याचिका दायर की थी।

भाषा प्रशांत मनीषा

मनीषा

 

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