नई दिल्ली | नागरिकता संशोधन विधेयक (Citizenship Amendment Bill 2019) को आज गृहमंत्री अमित शाह लोकसभा में पेश करेंगे, जिसको लेकर संसद में जोरदार हंगामे के आसार हैं। कांग्रेस समेत कई विपक्षी पार्टियां इस बिल का प्रचंड विरोध कर रही हैं। वहीं, NDA से अभी-अभी अलग हुई शिवसेना केन्द्र सरकार के इस बिल का समर्थन कर रही है।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर ने नागरिकता संशोधन विधेयक का विरोध करते हुए कहा कि इसका संसद से पारित होना राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की सोच पर मोहम्मद अली जिन्ना की सोच की जीत होगी। धार्मिक आधार पर नागरिकता प्रदान करने से भारत,पाकिस्तान का हिंदुत्व संस्करण बन जाएगा। उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा सरकार एक समुदाय को देश से बाहर करना चाहती है।
पूर्वोत्तर राज्यों में इस विधेयक का विरोध शुरू हो गया है। कई लोग व संगठन इसका यह कहते हुए विरोध कर रहे हैं कि यह 1985 के असम समझौता के प्रावधानों का उल्लंघन है। इस समझौते में तय हुआ था कि 24 मार्च 1971 तक के सभी अवैध अप्रवासियों को देश के बाहर किया जाएगा, भले ही वे किसी भी धर्म को मानते हों। नॉर्थ ईस्ट स्टूडेंट्स ऑर्गेनाइजेश ने 10 दिसंबर को पूर्वोत्तर में विधेयक के विरोध में 11 घंटे के बंद का आह्वान किया है।
नागरिकता संशोधन बिल नागरिकता अधिनियम 1955 के प्रावधानों को बदलने के लिए पेश किया जा रहा है, जिससे नागरिकता प्रदान करने से संबंधित नियमों में बदलाव होगा। नागरिकता बिल में इस संशोधन से बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए हिंदुओं के साथ ही सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाइयों के लिए बगैर वैध दस्तावेजों के भी भारतीय नागरिकता हासिल करने का रास्ता साफ हो जाएगा।
इस विधेयक में नागरिकता अधिनियम 1955 में संशोधन किया गया, नागरिकता अधिनियम 1955 के अनुसार, भारत की नागरिकता के लिए आवेदक का पिछले 14 साल में 11 साल तक भारत में निवास करना आवश्यक है। लेकिन संशोधन में इन तीन देशों से आने वाले हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी, और ईसाई समुदाय के लोगों के लिए इस 11 साल की अवधि को घटाकर छह साल कर दिया गया है।