(गौरव सैनी)
नयी दिल्ली, 14 नवंबर (भाषा) भारत ने बृहस्पतिवार को कहा कि विकसित देशों को 2030 तक विकासशील देशों को हर साल कम से कम 1,300 अरब अमेरिकी डॉलर उपलब्ध कराने के लिए प्रतिबद्ध होना चाहिए और अजरबैजान में संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन में जिस नये जलवायु वित्त पैकेज पर बातचीत की जा रही है, उसे ‘‘निवेश लक्ष्य’’ नहीं बनाया जा सकता।
अजरबैजान की राजधानी बाकू में संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन में जलवायु वित्त पर छठे उच्च स्तरीय संवाद में समान विचारधारा वाले विकासशील देशों (एलएमडीसी) की ओर से भारत ने इस बात पर जोर दिया कि विकासशील देशों को ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के लिए यह सहायता अनुदान, रियायती वित्तपोषण और गैर-ऋण सहायता के माध्यम से मिलनी चाहिए।
इसने कहा कि नया जलवायु वित्त पैकेज या नया सामूहिक लक्ष्य (एनसीक्यूजी) – जो इस वर्ष के संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन के लिए सर्वोच्च प्राथमिकता है – को विकासशील देशों की उभरती प्राथमिकताओं के अनुरूप होना चाहिए तथा उन प्रतिबंधात्मक शर्तों से मुक्त होना चाहिए जो उनके विकास में बाधक हो सकती हैं।
भारत दुनिया की सबसे तेजी से विकसित हो रही प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में एक है, जिसका प्रति व्यक्ति उत्सर्जन मात्र 2.9 टन कार्बन डाइऑक्साइड है, जो वैश्विक औसत से काफी कम है।
भारतीय वार्ताकार नरेश पाल गंगवार ने कहा, ‘‘विकसित देशों को अनुदान, रियायती वित्त और गैर-ऋण प्रेरित समर्थन के माध्यम से 2030 तक हर साल कम से कम 1,300 अरब अमेरिकी डॉलर प्रदान करने और जुटाने के लिए प्रतिबद्ध होने की आवश्यकता है।’’
केंद्रीय पर्यावरण एवं वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय में संयुक्त सचिव ने कहा कि यह समर्थन ब्राजील में होने वाले सीओपी30 की ओर बढ़ने के लिए महत्वपूर्ण है, जहां सभी देशों से अपेक्षा की जाती है कि वे अपने अद्यतन राष्ट्रीय लक्ष्य या राष्ट्रीय जलवायु योजनाएं प्रस्तुत करेंगे।
गंगवार ने कहा, ‘‘इस परिणाम को प्राप्त करने से हमारे वैश्विक जलवायु प्रयासों में सार्थक प्रगति के लिए एक ठोस आधार तैयार होगा।’’
भारत ने यह भी कहा कि एनसीक्यूजी को निवेश लक्ष्य में नहीं बदला जा सकता। साथ ही यह भी कहा, ‘‘पेरिस समझौते में यह स्पष्ट है कि जलवायु वित्त कौन उपलब्ध कराएगा और उसे कौन जुटाएगा – यह विकसित देश हैं।’’
इसने कहा कि संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन और उसके पेरिस समझौते के दायरे से बाहर किसी भी नए लक्ष्य के तत्वों को शामिल करना ‘‘अस्वीकार्य’’ है।
भारत ने कहा, ‘‘हमें पेरिस समझौते और उसके प्रावधानों पर फिर से बातचीत की कोई गुंजाइश नहीं नजर आती।’’
विकासशील देशों का तर्क है कि संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन और पेरिस समझौते के तहत, उनके लिए जलवायु वित्त जुटाना विकसित देशों की जिम्मेदारी है।
हालांकि, विकसित देश एक ‘‘वैश्विक निवेश लक्ष्य’’ के लिए जोर दे रहे हैं, जिसके लिए सरकारों, निजी कंपनियों और निवेशकों सहित विभिन्न स्रोतों से धन जुटाया जाएगा।
वित्तीय और तकनीकी प्रतिबद्धताओं पर विकसित देशों के प्रदर्शन को ‘‘निराशाजनक’’ बताते हुए भारत ने कहा कि 2009 में वादा किया गया 100 अरब अमेरिकी डॉलर का लक्ष्य पहले से ही अपर्याप्त है और पूरा नहीं किया गया है।
वर्ष 2009 में सीओपी 15 में, विकसित देशों ने 2020 तक विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद करने के लिए प्रति वर्ष 100 अरब अमेरिकी डॉलर जुटाने का संकल्प लिया था। हालांकि, यह लक्ष्य 2022 में पूरा हो पाया, जिसमें ऋण कुल जलवायु वित्त पोषण का लगभग 70 प्रतिशत था।
एनसीक्यूजी अगले साल 100 अरब अमेरिकी डालर लक्ष्य की जगह लेने वाला है।
भाषा सुभाष रंजन
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