'अति गोपनीय' सूचना मध्यस्थता में प्रस्तुत करने के लिए नहीं: दिल्ली उच्च न्यायालय |

‘अति गोपनीय’ सूचना मध्यस्थता में प्रस्तुत करने के लिए नहीं: दिल्ली उच्च न्यायालय

'अति गोपनीय' सूचना मध्यस्थता में प्रस्तुत करने के लिए नहीं: दिल्ली उच्च न्यायालय

:   Modified Date:  September 25, 2024 / 09:47 PM IST, Published Date : September 25, 2024/9:47 pm IST

नयी दिल्ली, 25 सितंबर (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि केंद्र सरकार द्वारा ‘अति गोपनीय’ सूचना के रूप में वर्गीकृत और देश की रक्षा से सीधे तौर पर जुड़ी सूचना को मध्यस्थता कार्यवाही में प्रस्तुत करने के लिए नहीं कहा जा सकता, यहां तक कि सीलबंद लिफाफे में भी नहीं।

अदालत ने कहा कि ‘‘कुछ पहलुओं’’ को ‘‘भारत संघ के विवेक पर छोड़ देना बेहतर है’’।

उच्च न्यायालय ने रक्षा मंत्रालय की परियोजना ‘वर्षा’ के महानिदेशक को पूर्वी तट पर एक ग्रीनफील्ड नौसैनिक अड्डे के विकास के संबंध में एक फर्म के साथ वाणिज्यिक विवाद से उत्पन्न मध्यस्थता कार्यवाही में कुछ संरक्षित रिकॉर्ड प्रस्तुत करने के दायित्व से मुक्त कर दिया।

बाहरी बंदरगाह के निर्माण के लिए दिसंबर 2017 में मेसर्स नवयुग-वान ओर्ड जेवी और परियोजना ‘वर्षा’ के महानिदेशक के बीच एक अनुबंध किया गया था।

हालांकि, पक्षों के बीच कई विवाद और मतभेद पैदा हुए, जिसके परिणामस्वरूप महानिदेशक द्वारा 2022 में करार समाप्त करने का नोटिस जारी किया गया, इसके बाद नवयुग ने मध्यस्थता की राह पकड़ी थी।

महानिदेशक ने कहा कि यदि न्यायाधिकरण द्वारा मांगे जा रहे दस्तावेजों को प्रस्तुत करने की अनुमति दी जाती है, तो यह परियोजना के ब्लूप्रिंट प्रदान करने के समान होगा, जो राष्ट्रीय सुरक्षा के खिलाफ है और आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम के विपरीत है।

न्यायमूर्ति मनोज जैन ने 24 सितंबर को पारित फैसले में कहा कि निस्संदेह किसी भी कार्यवाही में पक्षकारों को समान अवसर प्रदान किया जाना चाहिए, इसके बावजूद राष्ट्रीय सुरक्षा सर्वोपरि है तथा ‘‘इसकी बलि नहीं दी जा सकती’’।

अदालत ने कहा, ‘‘तथ्य यह है कि भारत की रक्षा के संदर्भ में, परियोजना अत्यधिक संवेदनशील और महत्वपूर्ण है जिसे किसी भी कोण से कम नहीं किया जा सकता है।’’

इसने कहा, ‘‘बेशक, कुछ ऐसे पहलू हैं जिन्हें भारत संघ के विवेक पर छोड़ देना बेहतर है। यदि कोई सूचना भारत सरकार द्वारा संरक्षित और ‘अति गोपनीय’ के रूप में वर्गीकृत बताई जाती है और सीधे तौर पर भारत की रक्षा से संबंधित है, तो ऐसे महत्वपूर्ण तथ्य को उचित महत्व दिया जाना चाहिए।’’

अदालत ने कहा, ‘‘इसलिए मेरी राय में मध्यस्थ न्यायाधिकरण को सीलबंद लिफाफे में ऐसे किसी भी दस्तावेज को पेश करने पर जोर नहीं देना चाहिए था।’’

भाषा सुरेश नरेश

नरेश

 

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